तलवार और बंदूकें के साथ क्यों सो रहे हैं मणिपुर के लोग?

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‘मणिपुर (Manipur) में हिंसा और लड़ाई को एक साल होने वाला है. सरकार अब तक इसे नहीं नहीं रोक पाई. हम लोग डरकर जीते हैं. परिवार को साथ नहीं रख पा रहे. बच्चों की पढाई रुक गई है.बिजनेस थप है. कमाई की बात तो क्या करूं। हम लोग 10 साल पीछे चले गए हैं. हर हाल में जी लेंगे, बस सरकार शांति करवा दे.’

मणिपुर (Manipur) के आखिरी गांव मोरे में रहने वाले केशव तमिल कम्युनिटी से हैं. म्यांमार बॉर्डर से सटा मोरे गाँव कभी टूरिस्ट से भरा रहता था,अब सिर्फ सन्नटा है. जले घर हैं और हर तरफ हिंसा कके निशान। ये हिंसा मैतई और कुकी के बीच 3 मई 2023,यानी 11 महीने से चल रही है. मैतई इम्फाल में रहते हैं और हिल एरिया कुकी का घर है. दोनों कम्युनिटी के बीच सेना के जवान हैं,ताकि दंगे न हों.

इन 11 महीनों में मणिपुर (Manipur) में मर्डर, रेप,गैंगरेप की सैकड़ों घटनाएं हो चुकी। 200 से ज्यादा लोग मारे गाये। 4 हजार से ज्यादा घर जला दिए गए. 70 हजार घर लोगों को घर छोड़ना पड़ा. हालत ऐसी है कि लापता लोगों की अब तक लाशें मिल रही हैं. फरवरी में 17 साल के नगांगोम नेवी की डेडबॉडी चंदेल जिले के सोकोम गांव में मिली। पिछले साल 28 मई को सेरोउ और सुगनु गांवों पर हमला हुआ था. तभी से नेवी लापता था.

हिंसा की वजह से काम ठप, पैसे-पैसे के मोहताज हुए लोग

तेंगनूपाल जिले के मोरे गांव में कुकी और मैतई दोनों साथ रहते थे. कुकी आबादी ज्यादा थी. हिंसा शुरू हुई तो मैतई गांव छोड़कर चले गए. कुकी में गुस्सा इतना था कि मैतई के खाली घरों में आग लगा दी. अब गांव में मुस्लिम,तमिल और कुकी समुदाय के लोग ही बचे हैं.

गांव में रहने वाली सलीमा कहती है, ‘जब से हिंसा शुरू है, हमारा काम रुक गया. पहले हम सामान बेचने इंफाल जाते थे. वहां से सामान लाते और गांव में बेचते थे. अब ऐसा नहीं कर सकते। अगर वहां से कुछ सामान खरीदकर यहां ले आओ तो गांववाले नाराज होते हैं. दूसरी तरफ भी यही हाल है. हमें समझ नहीं आता कि क्या करें।’

बॉर्डर बंद,म्यांमार से सामान लाकर बेचने वालों के सामने भूखा मरने की नौबत

केंद्र सरकार ने 8 फरवरी, 2024 को म्यांमार के साथ फ्री मूवमेंट रेजीम, यानी FMR समझौता खत्म कर दिया। इस समझौते के तहत तय एरिया तक भारत और म्यांमार के लोग आना-जाना कर सकते थे. अब ये बंद है.

गांव के अशरफ कहते हैं, ‘मोरे के लोग बॉर्डर की दूसरी तरफ से सामान लाकर यहां बेचते थे. अब बॉर्डर बंद है. इधर खेती नहीं होती। बॉर्डर खुलना बहुत जरुरी है, नहीं तो हम भूखे मर जाएंगे।’

अबिलेग कुकी समुदाय से आती हैं. लोगों के कपड़े सिलकर घर चलाती हैं. वे कहती हैं, ‘पहले सब बहुत अच्छा था. हम घर के लिए सामान लेने या घूमने के लिए म्यांमार चले जाते थे. अब हम एक ही जगह पर कैद हैं.’

इसके अलावा यहां बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है. मणिपुर मुस्लिम कॉउंसिल के प्रसीडेंट मोहम्मद रजाउद्दीन भी मोरे में रहते हैं. वे बताते हैं कि पानी की कमी गांव की बड़ी समसया है.

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