Malegaon Bomb Blast: पूर्व ATS अधिकारी ने कांग्रेस की ‘हिन्दू आतंकवाद’ की साजिश बेनकाब कर दी

Malegaon Bomb Blast Former ATS officer Statement About Congress: 2008 के मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में विशेष एनआईए कोर्ट ने सभी सात आरोपियों, जिनमें पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Sadhvi Pragya Singh Thakur) और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित (Lt. Col. Prasad Purohit) शामिल हैं, को बरी कर दिया (Malegaon blast acquittal)। इस फैसले ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जिसने कथित तौर पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ (Hindu Aatankwad) का नैरेटिव सेट करने के लिए जांच एजेंसियों पर दबाव डाला था (Congress Hindu terror narrative)।

बीजेपी नेताओं का दावा है कि यह कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण (Congress Muslim appeasement politics) की रणनीति का हिस्सा था, जिसका मकसद दुनिया भर में हिन्दुओं को आतंकवादी के रूप में बदनाम करना था। 17 साल पहले, 29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक में एक मोटरसाइकिल पर रखे बम विस्फोट में 6 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए (2008 Malegaon bomb blast)। उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार थी और केंद्र में यूपीए सत्ता में थी।

महाराष्ट्र एटीएस ने जांच शुरू की और साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और अभिनव भारत संगठन से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया। पहली बार ‘हिन्दू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ (Saffron terror) जैसे शब्दों को सार्वजनिक और राजनीतिक विमर्श में लाया गया। बीजेपी का आरोप है कि यह सब कांग्रेस के इशारे पर हुआ, जिसने मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए हिन्दू समाज को निशाना बनाया (Congress vote bank politics)। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका (Lack of evidence Malegaon case)। मोटरसाइकिल, जो साध्वी प्रज्ञा के नाम पर थी, के स्वामित्व का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला, न ही कर्नल पुरोहित के पास आरडीएक्स होने या बम बनाने का कोई प्रमाण मिला। कोर्ट ने यह भी पाया कि जांच में कई गड़बड़ियां थीं, जैसे कि घटनास्थल को ठीक से सुरक्षित न करना और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेरफेर । इसके अलावा, एक एटीएस अधिकारी पर फर्जी सबूत पेश करने का आरोप लगा, जिसके खिलाफ कोर्ट ने जांच के आदेश दिए।

पूर्व ATS अधिकारी ने कांग्रेस को एक्सपोस कर दिया

पूर्व महाराष्ट्र एटीएस इंस्पेक्टर महबूब मुजावर (Mehboob Mujawar ATS About Malegaon Blast) ने मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में सनसनीखेज खुलासे किए हैं, जो तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ‘हिन्दू आतंकवाद’ थ्योरी की पोल खोलते हैं । मुजावर ने दावा किया कि उन्हें तत्कालीन एटीएस प्रमुख परमबीर सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat Connection Malegaon Blast) को इस मामले में फंसाने का आदेश दिया था

उनका कहना है कि यह आदेश ‘भगवा आतंकवाद’ (Saffron terror narrative) को स्थापित करने के लिए था, जो पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित था। मुजावर ने इन आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए गए, जिसने उनके 40 साल के करियर को बर्बाद कर दिया (False cases against Mujawar)।

मुजावर ने यह भी आरोप लगाया कि एटीएस ने दो संदिग्धों, संदीप डांगे और राम कलसांगरा, (Sandeep Dange, Ram Kalsangra) की हत्या कर दी थी, लेकिन उन्हें रिकॉर्ड में जीवित दिखाया गया । उन्होंने दावा किया कि इन दोनों को 2008 में भोपाल से पकड़ा गया था और मुंबई में 26/11 हमले के दिन गोली मार दी गई थी (ATS extrajudicial killings)। मुजावर को इन मृत संदिग्धों की तलाश के लिए कर्नाटक भेजा गया, ताकि यह दिखाया जाए कि वे अभी भी फरार हैं। जब उन्होंने इस साजिश का विरोध किया, तो उन्हें निलंबित कर दिया गया (Mujawar suspended for resistance)। उनके पास अपने दावों के समर्थन में दस्तावेजी सबूत होने का दावा है, जो कांग्रेस सरकार और एटीएस की मिलीभगत को उजागर करता है

बीजेपी ने कांग्रेस नेताओं, खासकर दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी, से माफी की मांग की है, जिन्होंने कथित तौर पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ शब्द को बढ़ावा दिया (Digvijaya Singh Hindu terror)।विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले ने कांग्रेस की उस रणनीति को उजागर किया, जिसके तहत वह मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए हिन्दुओं को निशाना बनाती थी। मालेगांव मामले में निर्दोषों की रिहाई ने साबित किया कि ‘हिन्दू आतंकवाद’ का नैरेटिव एक राजनीतिक साजिश थी, जिसका मकसद हिन्दू समाज और बीजेपी के उभरते नेताओं को बदनाम करना था। यह फैसला न केवल कानूनी, बल्कि वैचारिक स्तर पर भी एक बड़ा झटका है, जो कांग्रेस की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।

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