मोहम्मद रफ़ी को गुरु मानकर चले महेंद्र कपूर और बन गए सबके चहीते गायक

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Death Anniversary Of Mahendra Kapoor: जो भी गीत उनकी झोली में आए वो बेमिसाल हो गए फिर चाहे वो ,”आप आए तो ख़्याल-ए- दिल ए नाशाद आया…” फिल्म ‘गुमराह’ से , हो “मेरा प्यार वो है. …”- ‘ये रात फिर ना आएगी ‘, फिल्म से, या “बदल जाए अगर माली..'”फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ से या फिर “ये कली जब तलक फूल बनके खिले…”- ‘आये दिन बहार के’ फिल्म से ,” बीते हुए लम्हों….”फिल्म ‘निकाह’ से हो ,या फिर 1967 की फिल्म ‘हमराज़’ के दिलकश गाने हों जैसे – “किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है….” ,”नीले गगन के तले….”और “तुम अगर साथ देने का वादा करो ….” .यूँ तो उनकी आवाज़ कई अभिनेताओं पर जचती थी पर अभिनेता मनोज कुमार की आवाज़ के रूप में वो खूब पसंद किए गए और देशभक्ति गीतों को भी एक अलग जोश देते रहे जिनमें , ‘उपकार’ फिल्म का गीत” मेरे देश की धरती सोना उगले” …, “भारत का रहनेवाला हूँ. ..” – ‘पूरब और पश्चिम’ से और “अब के बरस. ..” फिल्म ‘क्रांति’ से सबसे ज़्यादा पसंद किए गए ।

कैसे गूंजी हर भारतीय घर में उनकी आवाज़ :-

फिर गीत “अथ श्री महाभारत कथा अथ श्री महाभारत कथा आ….” गाकर वो “महाभारत “धारावाहिक की तरह क़रीब क़रीब हर भारतवासी के घर में गूंजे और शीरी की मानिंद उनकी मीठी आवाज़ हमारे दिलों में घुल गई ।
जी हां ये थे महेंद्र कपूर जो मोहम्मद रफी साहब को अपना गुरु मानते थे उनके जैसा ही गाना चाहते थे पर ऊपर वाले ने उन्हें भी कुछ कम खूबियों से नहीं नवाज़ा था इसलिए मो . रफ़ी साहब जैसे ही सुर लगाने के बावजूद उनकी आवाज़ को एक अलग पहचान मिली।

वी. शांताराम ने दिया पहला मौका :-

महेंद्र कपूर का जन्म 9 जनवरी 1934 को अमृतसर में हुआ था , लेकिन मो. रफी के गाने सुनकर उनके मन में भी गायक बनने की ऐसी ख़्वाहिश जगी कि वो बॉम्बे ही चले गए ।
उन्होंने पंडित हुस्नलाल, पंडित जगन्नाथ बुआ, उस्ताद नियाज़ अहमद खान, उस्ताद अब्दुल रहमान खान और पंडित तुलसीदास शर्मा जैसे शास्त्रीय गायकों से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया और तभी मो. रफ़ी की गायिकी को आधार मानकर ऐसा गाया कि मेट्रो मर्फी अखिल भारतीय गायन प्रतियोगिता जीत ली , जिससे वी. शांताराम बहोत प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी 1958 की फिल्म “नवरंग” में बतौर पार्श्व गायक उन्हें चुन लिया इस तरह से बतौर गायक उनकी शुरुआत हुई, जिसमें उन्होंने, सी. रामचंद्र के संगीत निर्देशन में “आधा है चंद्रमा रात आधी…”,गीत गाया और इसके बाद ‘धूल का फूल’ , ‘गुमराह’ , ‘वक़्त’ , ‘हमराज़’ , ‘धुंध’ , ‘निकाह’ और ‘आवाम’ जैसी फिल्मों में आपने एक से बढ़कर एक बेमिसाल गीत गाए।

मनोज कुमार की वजह से सपना हुआ सच :-

फिर वो घड़ी भी आई जिसका उन्हें इंतज़ार था दरअसल हुआ यूं कि 1967 की फ़िल्म ‘आदमी ‘का गीत “कैसी हसीन आज बहारों की रात” उन्हें गाने के लिए मिला जिसे मो. रफ़ी और तलत महमूद ने गाया था , जिसमें दिलीप कुमार के लिए मो .रफी और मनोज कुमार के लिए तलत की आवाज़ को चुना गया था पर मनोज कुमार अपने गाने केवल महेंद्र कपूर से ही गवाना चाहते थे इसलिए गीत को फिर से रिकॉर्ड किया गया जिसमें तलत की जगह महेंद्र जी ने मनोज कुमार के लिए गाया और महेंद्र कपूर का मो.रफी के साथ गाने का सपना सच हो गया। हिंदी के अलावा उन्होंने गुजराती , पंजाबी , भोजपुरी और मराठी फिल्मों में सबसे ज़्यादा गीत गए मराठी में, वो दादा कोंडके की सभी फिल्मों में उनकी आवाज़ बने और बहुत लोकप्रिय हुए ।

उनका गाया हर गीत हो गया नायाब :-

1972 – में महेंद्र कपूर साहब को ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया और आपने सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के लिए ‘राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार’ 1968 में जीता – गीत “मेरे देश की धरती ..” – फिल्म ‘उपकार’ के लिए। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों की बात करें तो
1964 आपने जीता – “चलो एक बार…” – फिल्म ‘गुमराह’ के लिए 1968 में -“नीले गगन के तले” – फिल्म हमराज़ में
और 1975 में – “और नहीं बस और नहीं…” – ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के गीत में।
कुछ और ख़ास पुरस्कारों से भी आपको नवाज़ा गया जिसमें एक ख़ास मक़ाम रखते हैं ,1967 में “मियां तानसेन पुरस्कार” –
2000 में “बॉलीवुड म्यूज़िक अवार्ड्स- न्यूयॉर्क” – लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2002 – को “लता मंगेशकर पुरस्कार” – और
2008 – को “महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार” – लाइफ टाइम अचीवमेंट ,इन सब अवार्डों के साथ उनकी आवाज़ और गीतों की अदायगी से सजा नग़्मों का ये दिलनशीं कारवां 74 साल की उम्र में थम गया और 27 सितंबर, 2008 को वो इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन वो हमारे दिलों में हमेशा बीते हुए लम्हों की दिलकश खनक बनके साथ रहेंगे ।

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