लोकसभा चुनाव 2024,कहीं भगवा,कहीं राष्ट्रवाद,कहीं बेरोज़गारी,गरीबी और कहीं साम्रज्यवाद।ये सब बातें चलती रहती हैं,बातें चलते चलते कभी यूँ भी होता है कि चुनाव आयोग अपना लेटर पकड़ा देता है.इन सब के बीच नज़र जाकर ठहर गयी महाराष्ट्र में.यहाँ 19 अप्रैल से मतदान शुरू हुए हैं जो 20 मई तक चलेंगे.बीती 7 मई को बीबीसी मराठी के एक पत्रकार ने शिवसेना के युवा नेता आदित्य उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू लिया।आदित्य ठाकरे शिवसेना के युवा नेता,मुंबई से महाराष्ट्र लेजिस्लेटिव असेंबली के MLA और महाराष्ट्र के 19 वें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे और बालासाहब ठाकरे के पोते हैं.इंटरव्यू में आदित्य ने हिंदुत्व के सवाल पर कहा कि उन्हें कोई ये नहीं बताएगा कि इनकी पार्टी हिन्दू है या नहीं।उन्होंने कहा उनका हिंदुत्व है मन में राम हाथ को काम.बात तो ये मुझे मुनासिब लगी.लेकिन यहाँ से एक और बात जो हमेशा से उत्साह का विषय रही है वो है महाराष्ट्र,हिंदुत्व और राष्ट्रवाद।महाराष्ट्र और राष्ट्रवाद आपस में गहरे से जुड़े हुए हैं.यहाँ का राष्ट्रवाद धार्मिक रहा है,और धार्मिक से अर्थ संकीर्ण नहीं है यहाँ,यहाँ का राष्ट्रवाद इसलिए और भी ऊंचा हो जाता है क्योंकि धर्म की रक्षा उसमे समाहित रही है.ये सब बातें सुनकर आपके जहन में किसी का नाम आ रहा होगा।जी हाँ,मैं बात कर रही हूँ छत्रपति शिवाजी महाराज की.महाराष्ट्र के हिंदुत्व और राजनीती का सबसे बड़ा फेस रहे हैं छत्रपति शिवाजी महाराज।भारत में बहुत क्रांतियां हुईं और होती रहेंगी लेकिन उन सब में छत्रपति शिवाजी का नाम हमेशा सबसे ऊपर रहेगा।शिवसेना तो बहुत बाद में बनी.19 जून 1966 को इसकी बात बाद में.
छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्रज्य की स्थापना की थी.वो मुग़ल शासन को चुनौती देने वाले इकलौते योद्धा थे.महाराष्ट्र क्या पूरे भारतवर्ष में उनका नाम सुनते ही लोगों को गर्व महसूस होता है.शिवाजी कहते थे कि जो मनुष्य समय के कुचक्र में भी पूरी शिद्दत से अपने कार्यो मे लगा रहता है, उसके लिए समय खुद बदल जाता है.”शिवाजी बेहद स्वाभिमानी और कुशल शासक थे.इनका एक प्रिय घोड़ा था चेतक।कहते हैं दुश्मनों के सामने छाती तानकर खड़े शिवाजी चेतक के समक्ष फूट फूट कर रोये थे.ये सत्य है या किवदंती नहीं पता,पर इतना पता है कि ये योद्धा बहुत महान थे.सर कट जाये,पर झुके नहीं। फिर थोड़ा आगे बढ़ते हैं मॉडर्न इंडिया।भगत सिंह का नाम कौन नहीं जानता।भगत सिंह कि एक तिकड़ी थी. इन्हे साथ में फांसी दी गयी थी भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु ये जो आखिरी नाम है राजगुरु इसे पूरा करिये तो बोलेंगे शिवाराम हरी राजगुरु।राजगुरु हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के मेंबर थे जो हर कीमत पर भारत को आज़ाद कराने के लिए संकल्पित थी.राजगुरु महराष्ट्र के ही थे जिन्हे अँगरेज़ जॉन सॉन्डर्स को गोली मारने के लिए फांसी हुई थी.ऐसे और भी बहुत से नाम हैं कृष्णजी गोपाल कार्वे,शायद इतिहास की किताब में ये नाम आपने सुना नहीं होगा।भारतीय क्रांतिकारी थे ये.21 दिसंबर 1909 को इन्होने अनंत लक्ष्मण कन्हारे और विनायक नारायण देशपांडे के साथ मिलकर नासिक के कलेक्टर जैक्सन को गोली मार दी थी इसके लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय में इन्हे मौत की सजा सुनाई गई और 19 अप्रैल 1910 को ठाणे जेल में फांसी दे दी गई।
वीर सावरकर और हिंदुत्व…
रिपोर्ट की तैयारी में जब इंटरनेट पर मैंने महाराष्ट्र के क्रांतिकारियों के बारे में सर्च किया तो इनका नाम कहीं नहीं मिला।सावरकर पर हाल ही में फिल्म आयी.बहुत कुछ है सावरकर में.कमी मात्र ये कि वो क्रन्तिकारी होने के साथ हिंदुत्व पर बहुत मजबूती से विश्वास करते थे.जिन सावरकर को इतिहास में एक पन्ने की जगह नहीं मिली गजब बात है कि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कुरीति जातिप्रथा पर जब उनकी गाँधी से बात हुई तो उन्होंने साफ़ तौर पर वर्ण व्यवस्था को मिटाने की बात कही थी जिसके जवाब में गाँधी ने इसे सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जरुरी कहा था.। सावरकर इटली के क्रन्तिकारी Giuseppe Mazzini से बेहद प्रभावित थे.1857 के विद्रोह को इन्होने आज़ादी की लड़ाई के रूप में पेश करने के लिए The Indian War of Independence नाम की किताब लिखी थी जिसपर अंग्रेज़ों ने बैन लगा दिया था.भगत सिंह खुद सावरकर से प्रभावित थे.
मैं हिटलर का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ-बालासाहब ठाकरे।
अब हिंदुत्व की बात करते हुए जब आगे बढ़ते हैं तो महाराष्ट्र में शिवसेना जो राइट विंग हिन्दू पार्टी के रूप में जानी गयी उसके संस्थापक बालासाहब ठाकरे का ज़िक्र न हो.हो ही नहीं सकता।कइयों के मसीहा,कइयों के लिए कट्टर,और कइयों के लिए मुस्लिम विरोधी।बालासाहब को लेकर ये कहा जाता है कि वो हिटलर के प्रशंसक थे.इसको लेकर एक वाकया है.साल 2007 में एक अंग्रेजी मैगज़ीन को दिए अपने इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि आपने हाल ही में खुद को मुंबई का हिटलर बताया था और भारत का हिटलर बनने की इच्छा व्यक्त की थी,क्या ये सही है?इस पर बालासाहब ने कहा था क्यों नहीं ?मैं हिटलर का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ.ऐसा नहीं है कि मै उनके अपनाये गए हर तरीके से सहमत हूँ लेकिन वो एक अद्भुत संगठनकर्ता और वक्ता थे और मुझे खुद में और उनमे बहुत समानताएं लगती हैं.ज़ाहिर सी बात है लोकतंत्र में हिटलर जैसे लोगों की कोई जगह नहीं है लेकिन बालासाहब ठाकरे का स्ट्रैट फॉरवर्ड लहजा,बेबाकी और स्ट्रांग करैक्टर उनकी बातों से छलकता था.इसके लिए मैं आपको रजत शर्मा के साथ इनका शो आप की अदालत देखने की सलाह जरूर दूँगी।कई लोग आज भी बालासाहब को मुंबई का असली राजा कहते हैं.ये एक कार्टूनिस्ट थे बाद में राजनीती में आये और साफ़ तौर पर खुद को हिंदुत्ववादी कहते थे.आउटलुक ने जब एक बार इनसे हिटलर पर दिए बयां के बारे में पूछा तो इन्होने कहा कि मैंने किसी को गैस चैम्बर में नहीं भेजा था.अगर मैंने ऐसा किया होता तो आप मेरा इंटरव्यू नहीं ले रहे होते।कई मौकों पर अपने कट्टरपंथी बयान जैसे मुसलमानों की यहूदियों से तुलना और 1992 -93 में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़काने का आरोप तक इनपर लगे.पूरा कंट्रोवर्सिअल जीवन जीते साल 2012 में ठाकरे की मौत हो गयी.उद्धव ठाकरे उनके बेटे हैं और आदित्य ठाकरे इनके परपोते।समय के साथ एक ही खून में कितने बदलाव होते हैं वो यहाँ देखा जा सकता है.ये खून कभी गरम से ठंडा तो कभी रगों में दौड़ना भी बंद हो सकता है.फिर राजनीती तो चिड़िया का नहीं एक गिरगिट का नाम है.जो समय अनुसार रंग बदलना बखूबी जानती है.