रीवा। रीवा के महाराजा भाव सिंह का विवाह 1664 में मेवाड़ की राजकुमारी अजब कुंवारी से हुआ था। जो तथ्य मिलते है उसके तहत वे महाराणा प्रताप की परपोती थीं। यह विवाह रीवा और मेवाड़ के शाही परिवारों के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित करता है। राजकुमारी अजब कुंवारी प्रकृति प्रेमी और जल स्रोत से उनका प्रेम होने के साथ ही भगवान शिव की भक्त थी। रानी तालाब एवं बाबड़ी निर्माण आदि रानी के इस प्रेम की गाथा को गाते है। जानकारी के तहत रानी अजब कुमारी भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं. उन्होंने शहर के बीचों-बीच एक विशाल तालाब खुदवाया, जिसे बाद में रानी तालाब के नाम से जाना जाने लगा. तालाब के बीच में शंकर जी का एक मंदिर भी बनवाया था। जो पंचायतन शैली में निर्मित है। यह तालाब लगभग साढ़े 12 फीट गहरा है और इसका निर्माण 1670 से 1675 के बीच हुआ था।
कोठी और बावली का निर्माण
रीवा के महाराजा भाव सिंह ने 1664-70 ई. के बीच अजब कुंवारी के लिए रीवा में एक कोठी और बावली का निर्माण करवाया था, जो आज भी मौजूद है और जिसे अजब कुंवारी की कोठी के नाम से जाना जाता है। यह कोठी मुगल और राजस्थानी स्थापत्य कला का मिश्रण है और गर्मी में भी ठंडक के लिए जानी जाती है।
यह बावड़ी राजस्थान और मालवा की स्थापत्य कला से प्रभावित है और राजा-रानी के जलक्रीड़ा के लिए बनाई गई थी। इस कोठी में मुगल और राजस्थानी स्थापत्य शैली का संगम देखने को मिलता है और इसे इस तरह से बनाया गया था कि गर्मी में भी यहां ठंडक का एहसास होता था. कोठी में कुल 40 कमरे थे, जिनमें से ज्यादातर अब ध्वस्त हो चुके हैं, लेकिन इसकी नक्काशी का काम आज भी देखा जा सकता है। इसके निर्माण में देश के विभिन्न हिस्सों से कारीगरों को बुलाया गया था।
बाबड़ी का ननि करेगा संरक्षण
रानी अजब कुँवारी का निधन 1694 में हुआ था। जिस आलिशान कोठी और बाबड़ी का निर्माण रीवा नरेश भाव सिंह ने सदियों पहले अपनी रानी के लिए कराया था। वह लगातार उपेक्षा का शिकार होने के बाद भी अपनी ख़ूबसूरती से यहां आने वाले लोगों को आकर्षित करती है। रीवा में राजशाही जमाने की करीब 400 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक अजब कुंवारी बावड़ी का जीर्णाेद्धार किया जाएगा। जर्जर हो चुकी इस धरोहर के संरक्षण के लिए नगर निगम ने योजना बनाई है।