Mahakumbh 2025 After 144 year’s : सनातन धर्म में महाकुंभ का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि इस दौरान प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में शाही स्नान करने से बहुत पुण्य मिलता है। कुंभ मेला जहां हर तीन साल में आयोजित होता है, वहीं महाकुंभ का शुभ संयोग 44 साल में एक बार ही बनता है। माना जा रहा है कि यह शुभ संयोग 2025 में बन रहा है। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि प्रयागराज में 2013 में महाकुंभ मेले का आयोजन हुआ था और 2025 में जो कुंभ आयोजित हो रहा है, वह पूर्ण कुंभ है। चलिए आपकी इस दुविधा को दूर करते हैं और आपको बताते हैं कि 2025 में कौन सा कुंभ मेला आयोजित हो रहा है।
जानिए क्या कहते हैं विद्वान?
पंडित सुजीत जी महाराज के अनुसार प्रयागराज में हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। पिछला महाकुंभ यहां 2013 में आयोजित हुआ था और अब यह पूर्ण महाकुंभ 2025 में आयोजित होने जा रहा है। अब अगर इस पूर्ण महाकुंभ की बात करें तो यह 12 महाकुंभ के बाद आयोजित होता है। इस तरह से यह पूर्ण महाकुंभ 144 वर्षों में एक बार होता है। अब सवाल यह उठता है कि 2025 में प्रयागराज में होने जा रहा कुंभ पूर्ण कुंभ है या महाकुंभ यानी 144 वर्षों के बाद होने वाला पूर्ण महाकुंभ? पंडित सुजीत जी महाराज के अनुसार ऐसा संयोग पहली बार बना है। आपको बता दें कि यह संयोग समुद्र मंथन के दौरान बना था। इसलिए 2025 में प्रयागराज में होने वाले कुंभ को महाकुंभ माना जा सकता है। जैसे 2013 के कुंभ को भी महाकुंभ कहा गया था।
कुंभ की शुरुआत कैसे हुई?
इसके लिए एक कथा बहुत प्रचलित है, वह कथा समुद्र मंथन की है… दरअसल, एक बार देवराज इंद्र को अहंकार हो गया था, जिसके बाद ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दिया था कि इंद्र दरिद्र हो जाएंगे। इसके कारण स्वर्ग का ऐश्वर्य, देवताओं का धन-वैभव, सब कुछ नष्ट हो गया। इसके बाद देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने गए। भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी और कहा कि अमृत मिलने पर देवता अमर हो जाएंगे और स्वर्ग का वैभव भी वापस आ जाएगा। भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को मंथन के लिए साथ आने को कहा। दानवों के राजा दैत्यराज बलि अमृत और रत्न पाने के लिए मंथन करने को तैयार हो गए। इसके बाद मंदराचल पर्वत और वासुकी नाग की मदद से समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन में 14 मुख्य रत्न निकले।
महाकुंभ 12 साल में ही क्यों होता है?
इसके बाद पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए तो अमृत पाने के लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध शुरू हो गया। अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों के बीच 12 दिनों तक यह युद्ध चला था, आपको बता दें कि देवताओं के 12 दिन धरती के 12 साल के बराबर होते हैं। देव-असुर युद्ध के दौरान अमृत की चार बूंदें आकाश से धरती पर गिरी थीं, जो उज्जैन में शिप्रा, प्रयागराज में गंगा-यमुना-संगम, नासिक में गोदावरी और हरिद्वार में गंगा में गिरी थीं। आज इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। साथ ही, इन स्थानों पर हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। पुराणों में बताया गया है कि कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के बाद हुई थी। ऋग्वेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी कुंभ का उल्लेख है।
महाकुंभ मेले का पौराणिक रहस्य क्या है?
महाकुंभ के इतिहास से जुड़े कई रहस्य हैं, जो आज तक सामने नहीं आ पाए हैं। कई लोगों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि महाकुंभ मेले का आयोजन पहली बार कब और कहां हुआ था, हालांकि आज भी इसका रहस्य अनसुलझा है। कुछ पुराणों में कहा गया है कि इस मेले का आयोजन सबसे पहले हरिद्वार में हुआ था, जबकि अन्य ग्रंथों में प्रयागराज को सबसे पहले स्थान बताया गया है। इसके अलावा महाकुंभ मेले में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान और पूजा विधियां भी आज तक रहस्य बनी हुई हैं।
इस महाकुंभ में 12 हजार संत बनेंगे नागा संन्यासी।
प्रयागराज में महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन होने जा रहा है और यह मेले के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेगा। इस अद्भुत आयोजन में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहां आएंगे और यह मेला एक बार फिर भारतीय संस्कृति और धर्म के अद्भुत संगम को प्रदर्शित करेगा। इस साल प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान 12 हजार साधु 3 दिन की तपस्या के बाद नागा संन्यासी बनेंगे। इसके लिए सभी अखाड़ों ने तैयारियां भी कर ली हैं। महाकुंभ का पहला अमृत स्नान (शाही स्नान) 14 जनवरी को किया जाएगा।
आयोजन का कुल बजट 7000 करोड़ रुपये है।
इस बार कुछ खास होने जा रहा है। महाकुंभ मेले में डिजिटल तकनीक का अभूतपूर्व इस्तेमाल किया गया है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कलाई बैंड की मदद से श्रद्धालुओं की गतिविधियों पर नज़र रखी जाएगी। महाकुंभ में करीब 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। मेला परिसर 4000 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें 1,50,000 टेंट लगाए गए हैं। आयोजन का कुल बजट 7000 करोड़ रुपये रखा गया है। इतना ही नहीं, पहली बार श्रद्धालुओं की संख्या की भी गिनती की जाएगी।
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