Madhya Pradesh Political News: लोकसभा चुनाव 2024 का काउंटडाउन शुरू हो गया है. बीजेपी अपनी पहली लिस्ट में 195 उम्मीदवारों के नामों का एलान कर चुकी है तो वहीं कांग्रेस ने अभी तक दो लिस्ट में 82 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है. कांग्रेस ने अपनी इस लिस्ट में विंध्य की 4 लोकसभा सीटों में से 2 में और बीजेपी ने चारों सीटों पर प्रत्याशियों से पर्दा उठा दिया है. कांग्रेस ने यहां से ओबीसी के दो बड़े नेताओं पर भरोसा जताया है. तो आइए हम बात करते हैं कांग्रेस के इन दो उम्मीदवारों की आपसी राजनितिक प्रतिद्वंदिता की और भी बहुत कुछ साथ ही कांग्रेस का विंध्य में घट रहे राजनितिक वर्चस्व की.
Lok Sabha Chunav 2024: भाजपा ने विंध्य की चारों लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, जबकि कांग्रेस महज दो सीटों पर ही उम्मीदवार उतार पाई है. रीवा और शहडोल संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस अभी भी कैंडिडेट्स की तलाश कर रही है. सतना लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी से चार बार के सांसद गणेश सिंह (Ganesh Singh) के सामने कांग्रेस ने दो बार के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा (MLA Siddharth Kushwaha) को मैदाने-ए-जंग में उतारा है. बताते चलें कि इससे पहले 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में ये दोनों नेता आमने-सामने थे. जहां सिद्धार्थ ने गणेश सिंह को 4400 वोटों से पराजित किया था. सही मायने में कांग्रेस के लिए ये बड़ी जीत थी. सिद्धार्थ को टिकट देने की बड़ी वजह भी यही है.
Vindhya Political News: सतना सीट की जातीय समीकरण पर नजर डालें तो, यहां कुल मतदाता 14,47,395 है, पुरुष मतदाता 8,06,175 और महिला मतदाता 6,41,220 मतदाता है, इसमें ब्राहम्णों की संख्या 3 लाख 24 हजार, क्षत्रिय 1 लाख 11 हजार पटेल 1 लाख 23 हजार पटेल, कुशवाहा 1 लाख 13 हजार, वैश्य 65 हजार, अनुसूचित जाति के 1 लाख 47 हजार, अनुसूचित जन जाति के 1 लाख 37 हजार, मुस्लिम मतदाता 37 हजार है. यानि कि 47 प्रतिशत सवर्ण, 38 फीसदी ओबीसी और 13 फीसदी मतदाता एससी, एसटी के हैं.
बात अगर सिद्धार्थ कुशवाहा की करें तो उनके पिता सुखलाल कुशवाहा बसपा की टिकट से सांसद रह चुके हैं, उन्होंने मध्य प्रदेश के 2 पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा और अर्जुन सिंह को चुनाव में हराया था. हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में उनको वर्त्तमान सांसद गणेश सिंह के हाथों शिकस्त मिली थी. खैर चुनाव का परिणाम क्या होगा वो सतना (Satna Lok Sabha) की जनता तय करेगी। लेकिन सिद्धार्थ कुशवाहा के पास एक अच्छा मौका है अपनी राजनितिक शाख को बढ़ाने का . अगर विधानसभा चुनाव का परिणाम लोकसभा चुनाव में रिपीट होता है तो गणेश सिंह का राजनितिक सफर समाप्त हो सकता है. गणेश सिंह को 2004 से अब तक सतना से सांसद हैं, उनके उपार लगातार जातिवाद का आरोप लगता रहा है, ऐसे में पांचवीं बार फिर से उन्हें चुनावी मैदान में उतारने से पार्टी कार्यकर्ता और नेता जो इस आस में थे कि पार्टी उन्हें टिकट देगी वो भी नाराज बताए जा रहे हैं. अब ये अटकलें कितनी सही और कितनी गलत हैं ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद पता चल ही जाएगा।
सीधी लोकसभा क्षेत्र
Sidhi Lok Sabha Chunav 2024: भारतीय जनता पार्टी ने यहां से इस बार नए चेहरे राजेश मिश्रा पर दांव आजमाया है. तो वहीं ने कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और 7 के विधायक इंद्रजीत पटेल के बेटे कमलेश्वर पटेल (Kamleshwar Patel) को बड़ी जिम्मेदारी दी है. हालांकि कमलेश्वर पटेल 2023 का विधानसभा चुनाव हार गए थे. पार्टी ने उन्हें सिहावल विधानसभा से मैदान में उतारा था जहां उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी विश्वामित्र पाठक से 16,683 मतों से हार का सामना करना पड़ा. बता दें कि कमलेश्वर पटेल कांग्रेस की महत्वपूर्ण कमेटी CWC के मेंबर हैं इस कमेटी में उनके आलावा मध्य प्रदेश के एक बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसे नेता हैं,
प्रदेश से मात्र दो नेता इस कमेटी में शामिल हैं, लेकिन कमलेश्वर पटेल के लिए अग्निपरीक्षा होगी क्योंकि लगातार दो चुनाव हारने का दाग उनके ऊपर लग जाएगा। खैर चुनौतियां कमलेश्वर के लिए बड़ी हैं. अब देखना होगा की राम लहर और मोदी मैजिक को मात देने में कमलेश्वर सफल हो पातें हैं या नहीं। अगर यहां की जातीय समीकरण की बात करें तो ,अनुसूचित जाति 11 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 32 फीसदी, ठाकुर-ब्राण्हणों का अच्छा खासा बर्चस्व है. सीधी में कुल वोटरों की संख्या 1845547 है. इसमें पुरुष और 966579 और महिला वोटर- 878948 हैं. जबकि, अन्य वोटरों की संख्या 20 है. पिछले चुनाव में 12,82,705 वोट पड़े.
कमलेश्वर पटेल कांग्रेस के बड़े नेता हैं यह चुनाव उनके लिए बहुत अहम होने वाला है. क्योंकि पिछले चुनाव कमलेश्वर हार चुके हैं. ऐसे में अगर लोकसभा का भी चुनाव हारते हैं तो उनका राजनितिक सफर संकट में आ जाएगा। क्योंकि राजनीति में बने रहने के लिए चुनाव जितना तो जरुरी ही है.
सिद्धार्थ और कमलेश्वर के बीच पोलिटिकल रेस
वैसे तो ये दोनों नेता एक ही पार्टी के हैं, राजनीति में कोई किसी का नहीं होता इस कथन को कई बार नेतागण साबित भी कर चुके हैं. खैर इस पर हम कभी और बात करेंगे अभी बात होगी सिद्धार्थ और कमलेश्वर के बीच पोलिटिकल रेस की. जाहिर सी बात है कि विंध्य के इन दो ओबीसी नेताओं का राजनीतिक कद पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. सिद्धार्थ जहां दो बार से लगातार विधायक बन रहें हैं और पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो वहीं कमलेश्वर पटेल CWC जैसे कांग्रेस के बड़े संगठन के मेंबर हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में दोनों चुनाव-ए-मैदान में थे. कमलेश्वर चुनाव में हार गए तो वहीं सिद्धार्थ कुशवाहा को जीत मिली थी। अगर कमलेश्वर पटेल चुनाव हारते हैं तो विधानसभा के बाद उनकी दूसरी हार होगी। ऐसे में उनका राजनितिक वर्चस्व संकट में आ सकता है. वहीं सिद्धार्थ हार भी जाते हैं तो वो विधायक तो रहेंगे ही.
विंध्य में कांग्रेस का गिरता जनाधार
आजादी के बाद शुरू हुई लोकतांत्रिक व्यवस्था में विंध्य क्षेत्र में समाजवाद का प्रभाव सबसे अधिक रहा है। इसे कांग्रेस ने तोड़ा और समाजवादी आंदोलन की अगुआई कर रहे कई बड़े नेताओं को अपने साथ शामिल किया। पार्टी का जनाधार बढ़ा तो नेताओं में गुटबाजी भी चरम पर उभरी, एक-दूसरे को कमजोर करने की पूरी कोशिशें की गई। हालात यहां तक पहुंच गए कि सूफड़ा साफ होने की नौबत आ गई है। बीते विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र के दिग्गज रहे सभी नेता एक साथ धरासाई हो गए। वर्त्तमान में कांग्रेस के पास विंध्य में कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसके बुते कांग्रेस ताल ठोक सके. नेताओं की कमी और नीतियों में कंफ्यूशन कांग्रेस को आज विंध्य ही नहीं बल्कि पूरे देश में हासिए पर खड़ा कर दिया है. आज जहां लोकसभा की तैयारी सभी पार्टियां लगी हैं, वहीं कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा में बिजी हैं. दरअसल लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस के पास कोई ऐसी रणनीति नहीं दिख रही जिसके बल पर कांग्रेस,बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सके.