Madhumita Shukla Murder Case: 20 साल से कथित जेल में बंद बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को रिहा किया जा रहा है, जबकि दोनों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी।
Madhumita Murder Story: पिछले 20 साल से मर्डर करने की सज़ा काट रहे उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को यूपी सरकार ने रिहा करने का आदेश जारी किया है. दोनों को एक कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या करने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. वो बात अलग है कि अमरमणि इन 20 सालों में 14 साल तो हॉस्पिटल में गुजारे, बीमारी का हवाला देकर हॉस्पिटल का एक कमरा हमेशा के लिए अमरमणि के नाम हो गया लेकिन सरकार जेल में अच्छे आचरण होने का हवाला देकर इस दबंग दंपत्ति को रिहा कर रही है.
अमरमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के कद्दावर ब्राह्मण नेता थे, राजनीति में सफलता की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते अमरमणि त्रिपाठी सत्ता के शिखर तक पहुंच गए लेकिन एक जुर्म ने उन्हें ऐसा धक्का दिया कि पूरी हनक जमींदोज हो गई.
मधुमिता हत्याकांड की कहानी
बात आज से 20 साल पहले 9 जुलाई 2003 की है, लखनऊ के पेपर मील कालोनी में रहने वाली मशहूर कवयित्री मधुमिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्या के पीछे बसपा सरकार के मंत्री अमरमणि त्रिपाठी उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी और भतीजे रोहितमणि त्रिपाठी का नाम आया और सभी को आरोपी बनाया गया।
यूपी के लखीमपुर जिले से नाता रखने वालीं मधुमिता शुक्ला, उस वक़्त एक मशहूर कवयित्री हुआ करती थीं. मंचों में जाकर वीर रस की कविताएं पढ़ा करती थीं. जब वो मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के संपर्क में आईं तो उनका नाम और बड़ा हो गया, मंच से मिली शोहरत और सत्ताधारी पार्टी के नेता से ताल्लुख ने उन्हें पॉवरफुल बना दिया था.
अमरमणि और मधुमिता की दोस्ती नाजायज रिश्ते में बदल गई, अमरमणि शादीशुदा थे और मधुमिता कुंवारी थीं. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने और मधुमिता प्रेग्नेंट हो गईं. यहीं से दोनों के रिश्ते में खटास पैदा होना शुरू हुई. अमरमणि, मधुमिता से अबॉर्शन कराने का दबाव बनाते रहे लेकिन मधुमिता ऐसा करने के लिए कभी राजी नहीं हुईं
9 मई 2003 की सुबह करीब 10:30 बजे मधुमिता के घर में संतोष राय और प्रकाश पांडे नाम के परिचित लोग आए, मधुमिता ने उन्हें अंदर बुलाया और अपने नौकर देशराज को चाय बनाने के लिए कहा, इधर देशराज चाय बनाने के लिए रसोई में गया और उधर अंदर से गोली चलने की आवाज सुनाई दी. देशराज ने देखा कि मधुमिता खून से लथपथ तड़प रही है, इससे पहले वो उन्हें बचाने के लिए कुछ कार पाता, मधुमिता ने दम तोड़ दिया।
मधुमिता की बहन ने संतोष राय और पवन पांडे के साथ अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी और भतीजे रोहितमणि त्रिपाठी के खिलाफ FIR दर्ज कर सभी को मधुमिता हत्याकांड का आरोपी बनाया, उस वक़्त यूपी में बसपा की सरकार थी और अमरमणि मंत्री इसी लिए CBCID ने 20 दिन जांच करने के बाद मामला CBI को सौंपा और दो गवाह पलट गए.
मधुमिता की बहन निधि ने सुप्रीम कोर्ट में इस केस को लखनऊ से दिल्ली या तमिलनाडु ट्रांसफर करने की अपील की, 2005 में कोर्ट ने इस मामले को उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया। 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून सेशन कोर्ट ने पांचों आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई, जिसके बाद अमरमणि त्रिपाठी नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन सजा बरकरार रही।
मधुमिता के एक लेटर ने अमरमणि त्रिपाठी को सज़ा दिलाई
मधुमिता की हत्या के बाद पुलिस को उनके घर से एक पत्र मिला, जो मधुमिता ने अमरमणि के लिए लिखा था. इस पत्र में लिखा था- ‘4 महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रही हूं, तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से मना कर सकते हो पर मैं नहीं कर सकती, क्या मैं महीनों इसे अपनी कोख में रखकर हत्या कर दूं? क्या तुम्हें मेरे दर्द का अंदाजा नहीं है, तुमने मुझे सिर्फ एक उपभोग की वस्तु समझा है।’
मधुमिता का यह लेटर अमरमणि के खिलाफ चल रही जांच में बहुत मददगार साबित हुआ. मधुमती की कोख में मर चुके बच्चे का DNA टेस्ट किया गया जो अमरमणि के DNA से मेल खा गया.
मधुमिता हत्याकांड में नाम आते ही अमरमणि के राजनीतिक करियर का ढलान शुरू हो गया। मायावती ने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया तो सपा में चले गए। 2007 में जेल के अंदर से चुनाव लड़ा और लक्ष्मणपुर सीट से जीत गए, लेकिन 7 महीने बाद ही मधुमिता हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली और पूरा राजनीतिक करियर खत्म हो गया।
कौन है अमरमणि त्रिपाठी
1970 के दशक में यूपी के गोरखपुर में ब्राह्मण और ठाकुर छात्र नेताओं की दबंगई चरम पर थी. ब्राह्मण गुट के नेता थे हरिशंकर तिवारी और ठाकुरों के नेता थे वीरेंद्र प्रताप सिंह। अमरमणि त्रिपाठी भी हरिशंकर तिवारी के खास आदमी थे. आगे जाकर हरिशंकर तिवारी ने अमरमणि को 1980 में अपने दुश्मन वीरेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ लक्ष्मणपुर सीट से चुनाव लड़ाया लेकिन वो हार गए, 1985 में फिर से अमरमणि, वीरेंद्र सिंह के खिलाफ उतरे और फिर से हार गए. 1989 में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली और 1989 में पहली बार विधायक बने
1991-1993 में उन्हें कुंवर अखिलेश प्रताप सिंह ने हरा दिया, लेकिन 1996 में कांग्रेस की टिकट पर अमरमणि दूसरी बार विधायक बन गए. जब प्रदेश में बसपा-भाजपा के गठबंधन की सरकार बनी तो अमरमणि कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए जहां उन्हें मंत्रालय की जिम्मेदारी दे दी गई.
राजनाथ सिंह ने बर्खास्त किया
2001 में बस्ती जिले के बड़े कारोबारी के 15 साल के बेटे राहुल मदेसिया का अपहरण हो गया. मामला लखनऊ से दिल्ली पहुंच गया. यूपी पुलिस उस बच्चे की तलाश में जुट गई. जांच हुई तो पता चला किडनेप हुआ बच्चा अमरमणि त्रिपाठी के घर में मिला। जिसके बाद यूपी के तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह ने अमरमणि को पार्टी से बर्खास्त कर दिया। यहां से अमरमणि को हटाया गया तो उन्होंने बसपा ज्वाइन कर ली.
2003 में जब मधुमिता की हत्या हुई तब अमरमणि त्रिपाठी बसपा सरकार में मंत्री थे. हत्या में नाम आने के बाद उनसे मंत्री दर्जा छीन लिया गया, वो जेल में थे, लेकिन 2007 में वो बसपा की टिकट से फिर विधायक बने मगर 7 महीने बाद ही मधुमिता हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली और पूरा राजनीतिक करियर खत्म हो गया।
जेल से ज्यादा हॉस्पिटल में रहे अमरमणि
कहने को अमरमणि और उनकी पत्नी को उम्रकैद की सज़ा हुई मगर उन्होंने अपना ज़्यादातर वक़्त गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बिता दिया। सज़ा होने के बाद ही दोनों ने बीमारी का हवाला देकर खुद को हॉस्पिटल में भर्ती करा लिया।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड की दूसरी मंजिल पर 32 कमरे हैं। इसमें ऊपरी हिस्से के 16 नंबर कमरे में अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी एडमिट रहे हैं। वार्ड के सभी कमरों के ऊपर नंबर लिखा हुआ है। लेकिन कमरा नंबर 15 के बाद सीधे 17 नंबर का कमरा आ जाता है। जिस कमरे में अमरमणि रहे हैं, उस पर 16 नंबर नहीं लिखा। यह कमरा सीढ़ियों से सटा है। कमरे के बाहर पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं। इसके साथ ही अमरमणि के अपने आदमी भी रहते हैं, जो किसी भी आने-जाने वाले पर निगाह रखते हैं।
उम्मीद यही जताई जा रही है कि अमरमणि और उनकी पत्नी को जो बीमारी उम्रकैद के बाद हुई थी शायद रिहा होने के बाद ठीक हो जाए.