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Madhubala Death Anniversary| मधुबाला : जो प्रेम के महीने में पैदा हुईं, लेकिन जिंदगी भर प्रेम के लिए तरसीं

Madhubala Death Anniversary| न्याज़िया बेग़म: मधुबाला हिंदी सिनेमा की अब तक सर्वाधिक खूबसूरत अभिनेत्री, जिनका जन्म प्रेम-दिवस अर्थात वैलेंटाइन डे के दिन हुआ, उनकी मृत्यु भी प्रेम के ही महीने में अर्थात फरवरी के महीने में 23 फरवरी को हुई, लेकिन वह जिंदगी भर सच्चे प्रेम के लिए तरसीं।

जन्म और परिवार

उनकी पैदाइश दिल्ली में प्रेम दिवस को यानी 14 फरवरी 1933 को उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत की पेशावर घाटी से युसुफजई जनजाति के पश्तून परिवार में हुआ, वो अताउल्लाह खान और आयशा बेगम की ग्यारह औलादों में से पाँचवीं औलाद थीं, और उनका बचपन का नाम था मुमताज जहां बेगम देहलवी। मधुबाला वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष के साथ पैदा हुई थीं, जो कि एक जन्मजात हृदय विकार है जिसका उस समय कोई इलाज भी नहीं था और घर वाले इस बात से बेखबर भी थे, मधुबाला ने अपना बचपन बिना किसी दिक्कत के दिल्ली में बिताया, जिसकी वजह से उन्हें कभी बीमारी का एहसास ही नहीं हुआ। मधुबाला ने अपने पिता के मार्गदर्शन में ही उर्दू और हिंदी के साथ-साथ अपनी मूल भाषा पश्तो पढ़नी और लिखनी सीखीं। नमाज़ की पाबंद होने के साथ ही मधुबाला बचपन से ही फ़िल्में देखने की भी शौकीन थीं और अपनी माँ के सामने अपने पसंदीदा दृश्यों को एक्ट के ज़रिए याद करती रहती थी ज़्यादातर वक्त वो डांस करने और फ़िल्मी किरदारों की नक़ल करने में बिताती थी। रूढ़िवादी परवरिश के बावजूद उन्होंने बचपन से ही फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना देखा था, पर उनके वालिद लड़कियों के बाहर जाकर काम करने के ही खिलाफ थे लेकिन फिर घर की आर्थिक स्थितियां ऐसी बनी की उन्हे काम करना ही पड़ा और तभी से उन्होंने अपने हुनर को तराशना शुरू कर दिया, इस वक्त वो बहुत छोटी थीं पर उन्होंने काम की तलाश की और हमारी मुमताज़ को ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन पर खुर्शीद अनवर के कलाम गाने का काम मिल गया। मधुबाला की चारों बहनें कनीज़ फातिमा ,अल्ताफ ,चंचल ,और जाहिदा भी उन्हीं की तरह खूबसूरत थीं और चंचल तो मधुबाला प्रोडक्शन में बनी 1955 की फिल्म नाता में मधुबाला के साथ ही स्क्रीन साझा करते दिखीं और इसके बाद 1956 की तीरंदाज़ 1957 की मदर इंडिया और 1960 में आई राज कपूर की जिस देश में गंगा बहती है जैसी हिट फिल्मों में नज़र आईं।

फिल्म कैरियर


महज़ आठ-नौ बरस की उम्र में उन्होंने वहां महीनों तक काम किया इसके बाद वो बॉम्बे टॉकीज के महाप्रबंधक राय बहादुर चुन्नीलाल के करीबियों में शामिल हो गईं, और उनके कहने पर ही मुंबई आ गई, चुन्नीलाल जी ने ही सबसे पहले मधुबाला को बॉम्बे टॉकीज के प्रोडक्शन में बनी 1942 की फिल्म बसंत में एक किशोर भूमिका के लिए साइन किया, जिसमें मधुबाला के काम को खूब सराहना मिली, लेकिन कुछ समय बाद स्टूडियो ने उनका अनुबंध खत्म कर दिया क्योंकि उस समय उन्हें किसी बाल कलाकार की ज़रूरत नहीं थी। पर कुछ दिनों बाद उन्हें पांच फिल्मों में छोटी भूमिकाएं निभाने का मौका मिला ये फिल्में थी मुमताज़ महल, धन्ना भगत, राजपुतानी, फूलवारी और पुजारी, इन सभी फिल्मों में उनका नाम था “बेबी मुमताज” इन सालों में उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा 1945 में फूलवारी की शूटिंग के दौरान, मधुबाला ने खून की उल्टी की, जिससे उनको बीमारी का पूर्वाभास हो गया, जो धीरे-धीरे जड़ पकड़ रही थी फिर उन्होंने चार दिन की ज़िंदगी से एक उम्र जी लेना के फैसला कर लिया, बालीवुड में उनका प्रवेश तो ‘बेबी मुमताज़’ के नाम से हुआ। पर देविका रानी, बसन्त में उनके अभिनय से इतना प्रभावित हुईं थीं कि, उनका नाम मुमताज़ से बदल कर ‘मधुबाला’ रख दिया। ये नाम उस वक्त के सुप्रसिद्ध हिंदी कवि हरिकृष्ण प्रेमी ने दिया था। जिन्होंने उन्हे बालीवुड में अभिनय के साथ-साथ अन्य तरह के प्रशिक्षण भी दिये, उनके इस नाम से फिल्म मधुबाला भी बनाई गई जो 1950 में रिलीज़ हुई। एक प्रमुख भूमिका के रूप में उनकी शुरुआत केदार शर्मा’ की फिल्म नील कमल, से हुई जिसमें उन्होंने शो मैन कहलाने वाले उस वक्त के नवोदित कलाकार राज कपूर और बेगम पारा के साथ अभिनय किया। 1947 में रिलीज हुई, नील कमल दर्शकों के बीच खूब लोकप्रिय हुई और उनको एक पहचान मिल गई ,इसके बाद उन्होंने राज कपूर के साथ चित्तौड़ विजय और दिल की रानी, फिल्म की, फिर आईं फिल्में अमर और मेरे भगवान इन फिल्मों के बाद इस मीठी लड़की को मधुबाला नाम से खूब शोहरत मिली, 1948 की फिल्म लाल दुपट्टा से, इसमें उनकी अदाकारी को “स्क्रीन अभिनय में उनकी परिपक्वता का पहला मील का पत्थर” बताया गया। ये वही वक्त था जब यूसुफ खान को भी उनकी काबिलियत के दम पर नाम मिला दिलीप कुमार और वो भी फिल्म जगत में आते ही छा गए ,आपने मधुबाला के साथ कई फिल्में की जिनमें अमर में दोनों की कैमिस्ट्री दर्शकों को खूब भाई और दोनों रियल लाइफ में भी एक दूसरे को पसंद करने लगे और कुछ वक्त बाद आप दोनों ने सगाई भी कर ली। फिल्म ‘दुलारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद 1949 में, मधुबाला ने कमाल अमरोही की फिल्म महल में कामिनी का किरदार निभाया , जो ,, भारतीय सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म है यही नहीं स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को इनके लिए गाए गए गाने “आयेगा आने वाला “से पहचान भी मिली थी जानकारों ने कहा कि दर्शकों के बीच मधुबाला की अज्ञानता उनकी मासूमियत उसके चरित्र की रहस्यमय प्रकृति से जुड़ गई जिसकी वजह से वो इस किरदार में इतना पसंद की गईं।

एक फिल्म की वजह से मधुबाला और दिलीप कुमार के रिश्ते में दरार


उस समय की दिलीप कुमार और मधुबाला की सुपरहिट जोड़ी को लेकर, बी. आर. चोपड़ा ‘नया दौर’ नाम की एक फिल्म बना रहे थे, फिल्म के कुछ हिस्सों की शूटिंग कर चुकी मधुबाला को मेकर्स ने बाकी शूटिंग के लिए ग्वालियर भेजना चाहा लेकिन डकैत इलाका होने के चलते पिता अताउल्लाह खान ने मेकर्स से लोकेशन चेंज करने का आग्रह किया। जिसके लिए वे राजी़ नहीं हुए। तब पिता जी ने मधुबाला को फिल्म छोड़ने और मेकर्स के पैसे लौटाने के लिए कह दिया। लिहाज़ा बी आर चोपड़ा जी ने दिलीप कुमार को मधुबाला से बात करने के लिए भेजा। दिलीप साहब ने मधुबाला को खूब समझाया, लेकिन वे पिता के खिलाफ जाने के लिए राज़ी नहीं हुईं और फिल्म छोड़ दी फिर चोपड़ा प्रोडक्शन ने मधुबाला के खिलाफ केस फाइल किया, जो लगभग एक साल तक चला। इसी बीच दोनों के रिश्ते में दरार आ गई। फिर दिलीप साहब ने उनके सामने फिल्में छोड़, शादी करने का प्रस्ताव रखा इस पर मधुबाला ने कहा कि वे तभी शादी करेंगी जब दिलीप उनके पिता से माफी मांगेगे लेकिन दिलीप साहब ने इनकार कर दिया और, दोनों की राहें जुदा हो गईं पर मधुबाला इस नाराज़गी के बावजूद उन्हें अपना राज कुमार मानती रहीं और फिल्म मुग़ल ए आज़म के दौरान उन्होंने अनबन के बावजूद बेहद रोमांटिक सीन दिए और एक सीन के दौरान शहज़ादे सलीम को ग़ुस्से से ज़ोर दार तमाचा मार दिया जिस पर दिलीप साहब ने उफ्फ नहीं की क्योंकि ऐसा कोई सीन फिल्म में नहीं था उन्हें एहसास हो गया कि मधुबाला आज उनसे झुंझलाकर कह रही हैं कि तुमने ऐसा क्यों किया, दिलीप साहब भी उनका बहुत ख्याल रखते थे ताकि उनकी तबियत न बिगड़े ,पर एक माफी की ज़िद ने दोनों के बीच फासले ला दिए लेकिन मधुबाला ने ता उम्र दिलीप साहब को प्यार किया यहां तक कि जब दिलीप साहब ने सायरा बानो से शादी की तो उन्होंने कहा मुबारक हो मेरे शहज़ादे को शहज़ादी मिल गई।

भारत की मार्लिन मुनरो


एक खास बात उनके बारे में हम आपको बता दें कि वो बहुत जल्दी कुछ भी सीख कर उसमें निपुण हो जाती थी और अपनी इसी खूबी की वजह से, तीन हिंदुस्तानी भाषाओं की मूल वक्ता मधुबाला ने 1950 में पूर्व अभिनेत्री सुशीला रानी पटेल से अंग्रेजी सीखना शुरू किया और केवल तीन महीनों में भाषा में पारंगत हो गईं। उन्होंने 12 साल की उम्र में ड्राइविंग भी सीखी और आगे चल कर पांच कारों की मालिक बनी। उन्हें “दान की रानी” ,”कैश एंड कैरी स्टार” कहा गया।उनकी तुलना हॉलीवुड अभिनेत्री मर्लिन मोनरो से की जाने लगी। एक दफा उनके प्रशंसकों की संख्या लगभग 420 मिलियन होने का अनुमान लगाया गया था।
बतौर अभिनेत्री उनकी फिल्म मिस्टर एंड मिसेज ’55, भारत में 1955 की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों में से एक थी,
दिनेश रहेजा ने के. आसिफ की सन 1960 की फिल्म मुगल-ए-आज़म को मधुबाला के करियर का “ताज या गौरव” के रूप में वर्णित किया है।
दिलीप कुमार और पृथ्वीराज कपूर के साथ उनकी ये फिल्म 16 वीं शताब्दी की एक दरबारी नर्तकी, अनारकली और मुगल राजकुमार सलीम की मुहब्बत के इर्द गिर्द घूमती है लेकिन इतनी हिट फिल्म का फिल्मांकन, मधुबाला के लिए भारी साबित हुआ, इसलिए कि वो रात के कार्यक्रम और बेहद मुश्किल डांस से परेशान थी क्योंकि उन्हें डॉक्टरों ने इन कामों से बचने के लिए कहा था,उन्हे आराम की सख़्त ज़रूरत थी और वो अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरत रहीं थीं

निर्देशक केदार शर्मा ने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, “उन्होंने एक मशीन की तरह काम किया कई बार समय पर खाना भी नही खा पाती थी ज़्यादा भीड़-भाड़ वाली तीसरी श्रेणी के डिब्बों में प्रतिदिन यात्रा करती थीं और काम से कभी देर या अनुपस्थित नहीं होती थी। “जब मधुबाला सेट पर होती , तो अक्सर शेड्यूल में बहुत आगे निकल जाती ।” गेटवे ऑफ इंडिया और मुग़ल-ए-आज़म के फिल्मांकन को छोड़कर, उनके वालिद ने कभी भी मधुबाला को रात में काम करने की इजाज़त नहीं दी।

मुग़ल-ए-आजम में अनारकली के रोल में अमर हो गईं मधुबाला

मुग़ल-ए-आज़म उस समय तक किसी भी भारतीय फिल्म में सबसे व्यापक रूप से रिलीज़ की गई थी, और ये सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बन गई, यही नहीं ये रिकॉर्ड 15 वर्षों तक कायम रहा। जिसमें मधुबाला के अभिनय ने विशेष ध्यान आकर्षित किया फिल्मफेयर ने फिल्म को भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर माना तो वहीं मधुबाला को उनके बेहतरीन काम के रूप में नामांकित किया, एक समीक्षक ने कहा, उनके “सीन के बाद सीन ही इस बात की गवाही देते हैं, कि एक प्राकृतिक अभिनेत्री के रूप में मधुबाला के ये उत्कृष्ट उपहार।”हैं हमारे लिए । मुग़ल-ए-आज़म ने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता, और मधुबाला के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित सात नामांकन के साथ 8वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह का आयोजन हुआ।

जब मधुबाला की जिंदगी में किशोर कुमार आए

मुग़ल-ए-आज़म और बरसात की रात की बैक-टू-बैक ब्लॉकबस्टर सफलताओं ने ही बॉक्स ऑफिस इंडिया को मधुबाला को 1960 की सबसे सफल अग्रणी महिला के रूप में उल्लेख करने के लिए प्रेरित किया। 1949 में महल की सफलता के साथ मधुबाला ने दर्शकों के बीच तेजी़ से लोकप्रियता अर्जित की। 1952 तक, वो भारत में सबसे अधिक भुगतान पाने वाली स्टार थीं उन्हें “युग के नायकों से भी बड़े” सितारे के रूप में वर्णित किया गया यही नहीं उन्हें 1949 से 1951 तक और 1958 से 1961 तक बॉक्स ऑफिस इंडिया की शीर्ष अभिनेत्रियों की सूची में सात बार सूचीबद्ध किया गया। मधुबाला की खूबसूरती कशिश और सरापा ए हुस्न के साथ अदाकारी का भी लोहा माना जाना जाता है जिसकी वजह से मीडिया ने उन्हें ” इंडियन सिनेमा का वीनस” और “द ब्यूटी विद ट्रेजेडी” के रूप में संदर्भित किया। द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया ने 1951 में उन्हें “भारतीय स्क्रीन की नंबर एक सुंदरता” माना। फिर एक दौर वो भी आया ,जब मधुबाला की तकलीफें बढ़ने लगी ऐसे में किशोर कुमार ने उन्हें प्रपोज़ किया और उनके वालिद से कहा कि शादी के बाद, वो उनका इलाज कराने बाहर ले जाना चाहते हैं हालांकि किशोर कुमार पहले से शादीशुदा थे फिर भी पिता जी राज़ी हो गए जिसके बाद मधुबाला ने अपने वालिद के कहने पर उनसे शादी की।
बीमारी की हालत में भी वो बहुत तैयार होके मिलने आने वालों से मिलती थीं कहती थी मुझे इतनी बुरी हालत में देखकर मेरे चाहने वालों को दुख होगा।

फिर एक दिन वीनस डूब गया


शम्मी कपूर कहते थे मैं शपथ ले सकता हूं कि मैंने इससे अधिक सुंदर महिला कभी नहीं देखी। वो बहोत समझदार परिपक्व शिष्ट और संवेदनशील हैं, उनकी सुंदरता और मौजूदगी के क्या कहने ” उनसा कोई दूसरा नहीं है। निम्मी ने कहा उन्हे देखने के बाद आंखे सोना भूल जाती थीं, मधुबाला लक्स और गोदरेज के सौंदर्य उत्पादों की ब्रांड एंबेसडर बन गईं, हालांकि मधुबाला ने कहा कि शारीरिक सुंदरता की तुलना में व्यक्तिगत खुशी उनके लिए अधिक मायने रखती है। ये उनकी अपने काम के लिए शिद्दत ही थी कि डॉक्टरों के मना करने के बावजूद , उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों में बहोत मुश्किल डांस किए, और मुग़ल-ए-आज़म में अपने शरीर के वज़न से दोगुने वज़न की लोहे की ज़ंजीरें पहनने के बाद त्वचा के छिल जाने के दर्द तक को बर्दाश्त किया लेकिन वो तभी रुकीं जब खुद से ही जंग लड़ते लड़ते थक गईं और किशोर कुमार की लाख कोशिशों के बावजूद वो इस जहां में और न रुक पाईं महज़ 36 साल की उम्र पूरी करने के नौ दिन बाद, 23 फरवरी को वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गईं। 1971 में मधुबाला की मृत्यु के दो साल बाद उनकी मुख्य भूमिका वाली अधूरी एक्शन फिल्म ज्वाला रिलीज हुई, जिसे बॉडी डबल्स की मदद से पूरा किया गया। मधुबाला का करियर उनके समकालीनों में सबसे छोटा था, लेकिन जब उन्होंने अभिनय छोड़ा तब तक वो 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुकी थीं। वो जनसंचार के युग में भारतीय सिनेमा की स्थिति को वैश्विक मानकों पर ले गईं। इसके अलावा 1954 को “बहुत दिन हुए” ,के साथ, मधुबाला दक्षिण भारतीय सिनेमा में करियर बनाने वाली पहली हिंदी अभिनेत्री बनीं, हालांकि मधुबाला अपने करियर के दौरान लगभग सभी फिल्म शैलियों में दिखाई दीं।

पुरस्कार और सम्मान

उनके 85वें जन्मदिन के अवसर पर, हिंदुस्तान टाइम्स ने मधुबाला को “तब तक, भारत की सबसे प्रतिष्ठित सिल्वर स्क्रीन देवी” के रूप में वर्णित किया। 1990 में, हुए एक सर्वे में उन्हें सबसे प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री के रूप में 58 प्रतिशत वोट मिले। ये सिलसिला आगे भी जारी रहा और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2007 विशेष में, मधुबाला को “बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों” की शीर्ष दस सूची में दूसरे स्थान पर रखा गया था। 2012 में इंडिया टुडे ने उन्हें बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक का नाम दिया, 2013 में भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाने वाले सर्वे में मधुबाला को सर्वकालिक महान भारतीय अभिनेत्रियों में छठे स्थान पर रखा गया और 2015 में टाइम आउट ने उन्हें दस सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड अभिनेत्रियों की सूची में पहले स्थान पर रखा। यही नहीं इकोनॉमिक टाइम्स ने उन्हें 2010 में “भारत को गौरवान्वित करने वाली 33 महिलाओं” की सूची में शामिल किया। खतीजा अकबर, मोहन दीप और सुशीला कुमारी ने भी उनके बारे में किताबें लिखी हैं। मधुबाला की दो फिल्मों- मुगल-ए-आज़म को 2004 मे और हाफ टिकट को 2012 में डिजिटल रूप से रंगीन संस्करण के तौर पर रिलीज़ किया गया जिसका ख़ुमार पहली दफा जैसा ही था लोग मधुबाला को रंगीन पर्दे पर देखने के लिए पहले जैसे ही उत्साहित थे, मार्च 2008 में इंडियन पोस्ट ने मधुबाला के लिए स्मारक डाक टिकट भी जारी किया, इस तरह से सम्मानित होने वाली एकमात्र दूसरी भारतीय अभिनेत्री उस समय नरगिस थीं। 2010 में, फिल्मफेयर ने मुगल-ए-आज़म में अनारकली के रूप में मधुबाला के प्रदर्शन को बॉलीवुड की “80 प्रतिष्ठित प्रदर्शनों” की सूची में शामिल किया। मुग़ल-ए-आज़म में उनके “इंट्रो सीन” को “20 दृश्य जिन्होंने हमारी सांसें रोक दी” की सूची में भी शामिल किया गया, 2017 में, मैडम तुसाद दिल्ली ने मधुबाला की एक प्रतिमा का अनावरण किया, 14 फरवरी 2019 को उनकी 86वीं जयंती पर ,सर्च इंजन गूगल ने उन्हें डूडल बनाकर याद किया।
एक बात और हम आपको बताते चलें कि मधुबाला की चारों बहनें कनीज़ फातिमा ,अल्ताफ ,चंचल ,और जाहिदा भी उन्हीं की तरह खूबसूरत थीं ,और चंचल तो मधुबाला प्रोडक्शन में बनी 1955 की फिल्म नाता में मधुबाला के साथ ही स्क्रीन साझा करते दिखीं और इसके बाद 1956 की तीरंदाज़ 1957 की मदर इंडिया और 1960 में आई राज कपूर की जिस देश में गंगा बहती है , जैसी हिट फिल्मों में नज़र आईं ।

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