Maa Ganga Ki Kahani | हिंदू पुराणों ने वर्णित इक्क्षवास वंश में कई प्रतापी राजा हुए,,, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और काबिलियत से अपने कुल का नाम रौशन किया,,,, इसी वंश के राजा के साथ पतित पावन माता गंगा की भी कहानी जुड़ी हुई है,,,, जिसमें मां गंगा इस कुल की वधू तो बनी ही साथ में इस वंश को उन्होंने प्रतापी भिस्मपितामह जैसा पुत्र भी सौंपा,,,, मगर इसी कुल के माता गंगा से जन्मे 7 पुत्रों को भी स्वयं गंगा मां मृत्यु सैया पर लिटाया,,,, जी हां आज हम बात इस सेगमेंट में बात करेंगे मां गंगा और इक्क्षवास वंश से जुड़ी इस रोचक कथा के बारे में,,,, तो आईए जानते है,,,,
VO – राजा प्रदीप की मृत्यु के बाद शांतनु को राजपाठ सौंपा गया,,,, एक बार शांतनु ने गंगा तट पर एक सुंदर स्त्री को देखा,,, जिसे देखते ही उन्हें उससे प्रेम हो गया,,, वह स्त्री कोई और नहीं पथ देवी गंगा थी,,,, शांतनु ने गंगा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा,,, तो गंगा बोली मुझे स्वीकार है परंतु आपको वचन देना होगा कि मैं अच्छा बुरा जो कुछ करूं आप मुझे रोकेंगे नहीं और ना ही मुझे मुझे कोई प्रश्न पूछेंगे,,, जिस दिन आपने यह वचन तोड़ा उसी दिन मैं आपको छोड़कर चली जाऊंगी,,,
शांतनु ने गंगा की शर्त मान ली,,, उन्होंने गंगा से विवाह कर लिया और दोनों सुख पूर्वक रहने लगे,,, कुछ समय बाद गंगा ने एक पुत्र को जन्म दिया शांतनु बहुत प्रसन्न थे,,,, किंतु तभी उन्होंने देखा की गंगा ने अपने नवजात पुत्र को नदी में बहा दिया,,,, शांतनु को बहुत क्रोध आया लेकिन वह गंगा की शर्त से बंधे थे इसलिए उन्होंने गंगा से कोई प्रश्न नहीं किया,,,,, फिर कुछ समय बाद गंगा ने अपने दूसरे पुत्र को भी नदी में बहा दिया,,,, इस तरह एक-एक करके गंगा ने शांतनु की आंखों के सामने अपने सात पुत्रों को नदी में डुबोकर मार डाला,,,,
फिर जब आठवां पुत्र उत्पन्न हुआ तो गंगा उसे भी नदी की ओर ले जाने लगी,,,, इस बार शांतनु से सहन नहीं हुआ,,, उन्होंने गंगा से नवजात शिशु की हत्या करने का कारण पूछा और अपने आठवें पुत्र को छोड़ देने का आग्रह भी किया,,, तब गंगा ने उत्तर दिया महाराज मैं आपके आठवें पुत्र को नहीं मारूंगी,,, परंतु शर्त के अनुसार मैं अब यहां नहीं रह सकती,,,, आठों पुत्र दरअसल अष्ट वसु है,,,, महर्षि वशिष्ठ के श्राप से इन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा और मैंने इन्हें श्राप से मुक्त करने की प्रतिज्ञा मैंने की थी,,, इसलिए मैंने इन्हें जन्म लेते ही मारकर मुक्त कर दिया,,, मैं आपके इस आठवें पुत्र को शस्त्र और शास्त्र में पारंगत करके उचित समय पर आपको लौटा दूंगी,,,,
राजा शांतनु ने पूछा महर्षि वशिष्ठ ने अष्ट वसु को श्राप क्यों दिया था तो देवी गंगा ने अष्ट वसु की कथा सुनाई,,,,
महर्षि वशिष्ठ मेरु पर्वत के निकट रहते,,, थे कामधेनु गाय की पुत्री नंदिनी भी उनके साथ रहती थी,,, एक बार प्रथु आदि अष्ट वसु अपनी पत्नियों के साथ वहां पहुंचे,,, उस समय वशिष्ठ आश्रम से बाहर गए हुए थे उन आठ में से धो नामक एक वसु की पत्नी की दृष्टि नंदिनी पर पड़ गई,,, उसने धौ से कहा वह उसके लिए नंदिनी का हरण कर ले,,, धो अपने भाइयों के साथ मिलकर वशिष्ठ की नंदिनी गाय को चुरा लिया,,,, वशिष्ठ जब आश्रम लौटे तो उन्हें नंदनी नहीं मिली उन्होंने दिव्या दृष्टि से पता लगा लिया की अष्ट वसु ने उनकी गाय चुराई है,,,, तो वशिष्ठ ने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना होगा,,, अष्ट वसुओ ने वशिष्ठ से क्षमा मांगी और उन्हें उनकी नंदनी लौटा दी,,,, तब महर्षि वशिष्ठ ने कहा तुम में से सात वसु तो एक-एक वर्ष में ही मनुष्य योनि से मुक्त हो जाएंगे,,,, किंतु नंदनी को चुराने वाले इस धो वासु को बहुत लंबे समय तक मृत्यु लोक में रहना पड़ेगा,,,,
यह कथा सुन कर गंगा ने शांतनु से कहा आपके पहले साथ पुत्र वही सातों वसु थे जिन्हें मैं नदी में बहाकर मनुष्य योनि से मुक्त कर दिया,,, परंतु यह अंतिम बालक धौ नमक वसु वशिष्ठ के श्राप के कारण चिरकाल तक मनुष्य योनि में रहेगा,,,, यह कहकर गंगा अपने आठवें पुत्र को साथ लेकर अंतर ध्यान हो गई,,,, बाद में वही आठवां वसु गंगा पुत्र भीष्म के नाम से विख्यात हुआ,,,,
क्या आपको इस रोचक कथा के बारे में जानकारी थी,,, और ये कथा कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं,,,,