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Lyricist Gulzar’s birthday: गुलज़ार ने अपने नाम की तरह कई रंग के फूलों से फिल्मों को सजाया, उनके लिखे गीत बन गई स्कूलों की प्रार्थना

Lyricist Gulzar's birthday

Lyricist Gulzar's birthday

न्याजिया बेगम

Lyricist Gulzar’s birthday: आज ही के दिन गुलज़ार साहब इस दुनिया में तशरीफ लाए और हमारी फिल्म इंडस्ट्री को एक नायाब नगीना मिल गया तो चलिए आज के दिन की मुबारकबाद के साथ ज़रा कुछ और बात कर लेते हैं उनके बारे में, क्योंकि अपने नाम की तरह उन्होंने कई रंग के फूलों से न केवल फिल्मों को सजाया है बल्कि एक अज़ीम शायर भी हैं उन्होंने संगीत निर्देशक एसडी बर्मन के साथ 1963 की फिल्म बंदिनी में गीतकार के रूप में अपना करियर शुरू किया था फिर कविता, संवाद और पटकथा भी लिखने लगे , उन्होंने 1970 के दशक में आंधी और मौसम जैसी फिल्मों के साथ टीवी श्रृंखला मिर्ज़ा ग़ालिब का निर्देशन किया फिर 1993 में किरदार का भी निर्देशन किया।

पुरस्कारों की लम्बी फेहरिस्त
पुरस्कारों की फेहरिस्त तो इतनी लंबी है कि सबका ज़िक्र करना मुश्किल है फिर भी हम आपको बता दें कि
उन्होंने 5 भारतीय राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीते हैं ; जिनमें 2 सर्वश्रेष्ठ गीतकार , एक सर्वश्रेष्ठ पटकथा , एक द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म (निर्देशक) और एक सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फ़िल्म (निर्देशक) शामिल हैं ; 22 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार ; एक अकादमी पुरस्कार ; और एक ग्रैमी पुरस्कार आपके नाम रहे तो वहीं ,उन्हें 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार – हिंदी , 2004 में पद्म भूषण , भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार और 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार , भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अप्रैल 2013 में, उनकी काबिलियत देखकर गुलज़ार साहब को असम विश्वविद्यालय का कुलाधिपति नियुक्त किया गया फिर 2024 में, आपको भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया ।

18 अगस्त 1934 को हुआ जन्म
सम्पूर्ण सिंह कालरा जो फिल्मों के लिए गुलज़ार हो गए उन का जन्म 18 अगस्त 1934 को ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान ) के झेलम जिले के दीना में सम्पूर्णन सिंह कालरा, माखन सिंह कालरा और सुजान कौर के घर एक सिख परिवार में हुआ था।
वो बताते हैं कि विभाजन के कारण उनका परिवार अलग हो गया और उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़ कर परिवार की मदद के लिए मुंबई आके कई छोटी-मोटी नौकरियां के साथ गैराज में भी काम करना पड़ा ,पी डब्ल्यू डी से भी जुड़े जहां उन्हें शैलेंद्र और बिमल रॉय ने फिल्मों के लिए काम करने की सलाह दी थी जिसके बाद गुलज़ार ने फिल्मों का रुख़ किया , और हमें मिलने लगे बड़े दिलनश़ी नग़्में ,जिनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिन्हें वक्त की फिसलती रेत और तराशती जा रही है जैसे मोरा गोरा अंग लइले ,हमने देखी है इन आंखों में महकती खुशबू ,कतरा कतरा मिलती है ,मेरे पी को पवन किस गली ,दिल ढूंढता है फिर वही ,मिन्नत करे , इब्न बतूता और दिल तो बच्चा है जी ,ऐसे जाने कितने बेशुमार नग़्में उनकी क़लम से कागज़ पर उतरे हैं जो रंगों की तरह हमारी ज़िंदगी में शामिल हैं ।

“हमको मन की शक्ति देना”
,1971 की फ़िल्म गुड्डी के लिए उन्होंने दो गीत लिखे, जिनमें से “हमको मन की शक्ति देना” एक प्रार्थना थी जो आज भी हमारे कई स्कूलों में गाई जाती है। बतौर गीतकार वो संगीत निर्देशक राहुल देव बर्मन के साथ बहोत अच्छी तरह ढले लगते हैं हालांकि दोनों की आपस में इतनी बनती थी कि वो गुलज़ार साहब की रचनाओं को कहते थे की तुम तो अख़बार की खबर की तरह लिखते हो इन बोलों पे संगीत बनाना बेहद मुश्किल है लेकिन कुछ इसी अंदाज़ में लिखे इजाज़त के गीतों ने धूम मचा दी ।
फिर ये सिलसिला जो चल निकला उसमे हर संगीतकार के साथ गुलज़ार के शब्दों का ताना बाना जचता गया , जिसमें फिल्म मौसम में मदन मोहन के साथ उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी, तो नए ज़माने तक पहुंचते पहुंचते 1996 की फिल्म माचिस, ओमकारा (2006) और कमीने (2009) में विशाल भारद्वाज के साथ; दिल से.. ( 1998), गुरु (2007), स्लमडॉग मिलियनेयर (2008) और रावण (2010) में एआर रहमान के साथ और बंटी और बबली (2005) में शंकर-एहसान-लॉय के संगीत संयोजन तक वो अपनी क़लम की जादूगरी से सबके साथ युवा पीढ़ी के भी चहीते हो गए। वो कहते हैं कि उन्होंने मणिरत्नम की 2007 की हिंदी फ़िल्म गुरु के लिए “ऐ हैरते आशिक़ी” लिखने के लिए अमीर खुसरो की “ऐ सरबते आशिकी” से प्रेरणा ली थी , जिसका संगीत एआर रहमान ने दिया था । -रहमान का एक और हिट सॉन्ग , दिल से का ” छैय्या छैय्या ” भी बहोत लोकप्रिय है जो सूफी लोकगीत “थैय्या थैय्या” पर आधारित था, जिसके बोल कवि बुल्ले शाह ने लिखे थे ।

हॉलीवुड में भी लहराया परचम
2007 की हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में रहमान और गुलज़ार ने 81वें अकादमी पुरस्कार में ” जय हो ” के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल गीत का अकादमी पुरस्कार जीता और उन्हें इस श्रेणी में ग्रैमी पुरस्कार रहमान के साथ दिया गया ।
उन्होंने पाकिस्तानी नाटक शहरयार शहजा़दी के लिए एक गीत भी लिखा है और इस गीत ,तेरी रजा को, रेखा भारद्वाज ने गाया है और विशाल भारद्वाज ने इसका संगीत दिया है । आशीर्वाद , आनंद और खामोशी जैसी फिल्मों के लिए संवाद और पटकथा लिखने के बाद गुलज़ार ने अपनी पहली फिल्म मेरे अपने (1971) का निर्देशन किया। यह फिल्म तपन सिन्हा की बंगाली फिल्म अपंजन (1969) की रीमेक थी और इसमें मीना कुमारी ने आनंदी देवी की मुख्य भूमिका निभाई, जो बेरोजगार और सताए हुए युवाओं के स्थानीय झगड़ों के बीच फंसी एक बूढ़ी विधवा है। इसके बाद उन्होंने परिचय और कोशिश का निर्देशन किया । परिचय राज कुमार मैत्रा के एक बंगाली उपन्यास, रंगीन उतरैन पर आधारित थी और हॉलीवुड फिल्म द साउंड ऑफ म्यूजिक से प्रेरित थी । कुछ वक्त बाद आपने कमलेश्वर के हिंदी उपन्यास “काली आंधी” पर आधारित आंधी का निर्देशन किया । विभिन्न जीत और नामांकन के साथ, फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स पुरस्कार भी जीता ।उनकी अगली फिल्म खुशबू शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की पंडित महाशय पर आधारित थी । उनकी फ़िल्म मौसम , जिसने द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, उनकी 1982 की फ़िल्म अंगूर शेक्सपियर के नाटक द कॉमेडी ऑफ़ एरर्स पर आधारित थी ।
उनकी फ़िल्में सामाजिक मुद्दों में उलझे मानवीय रिश्तों की कहानियाँ बताती थीं। लिबास एक शहरी जोड़े के विवाहेतर संबंध की कहानी थी।

जीवन सुधारने की कोशिश
फिल्म मौसम एक ऐसे पिता की कहानी दिखाई गई जो अपनी वेश्या-बेटी का जीवन सुधारने की कोशिश करता है। माचिस में , एक युवा पंजाबी लड़का एक बुरी स्थिति से लड़ने के लिए आतंकवाद में शामिल होता है, लेकिन उसे इसकी अस्थायी प्रकृति का एहसास होता है। हु तू तू ने भारत में भ्रष्टाचार और कैसे एक आदमी इससे लड़ने का फैसला करता है, इस पर चर्चा की।
गुलज़ार अपनी कहानियों के वर्णन में “फ़्लैशबैक” का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं उनकी ( आँधी, मौसम, इजाजत, माचिस, हु तू तू कोशिश, आँधी, मौसम, अंगूर, नमकीन ) कुछ बेहतरीन कृतियां हैं उन्होंने प्रेमचंद के उपन्यासों पर आधारित तहरीर मुंशी प्रेमचंद का भी निर्देशन किया । गुलज़ार मुख्य रूप से उर्दू और पंजाबी में लिखते हैं; इसके अलावा वे ब्रजभाषा , खड़ीबोली , हरियाणवी और मारवाड़ी जैसी कई अन्य भाषाओं में भी लिखते हैं। उनकी कविताएँ त्रिवेणी प्रकार के छंदों में हैं । उनकी कविताएँ तीन संकलनों में प्रकाशित हुई हैं; चाँद पुखराज का , रात पश्मीने की और पंद्रह पाँच पचत्तर । उनकी कई शार्ट फिल्में भी आईं । गुलज़ार ने विशाल भारद्वाज के साथ जंगल बुक , एलिस इन वंडरलैंड , हैलो ज़िंदगी , गुच्छे और पोटली बाबा की सहित कई दूरदर्शन टीवी श्रृंखलाओं के लिए गीत और संवाद लिखे हैं। गुलज़ार का ये दिलनशीं कारवां यूं ही चलता रहे और वो अपनी क़लम की जादूगरी से हमें लुत्फ अंदोज़ करते रहे यही दुआ है हमारी ।

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