न्याजिया बेग़म
Lyricist Gopaldas Neeraj: ज़रा कुछ गीतों के बोलों पर ग़ौर करिए सुबह ना आई शाम ना आई फिल्म चा चा चा, से सपने झरे फूल से,फिल्म नई उमर की नई फसल से ,लिखे जो खत तुझे,फिल्म ,कन्यादान से,काल का पहिया घूमे भैया, फिल्म चंदा और बिजली से, ऐ भाई ज़रा देख के चलो फिल्म ,मेरा नाम जोकर से,आप यहाँ आये किस लिए फिल्म ,कल आज और कल से फूलों के रंग से और रंगीला रे तेरे रंग में फिल्म प्रेम पुजारी से , खिलते हैं गुल यहाँ , मेघा छाये आधी रात,आज मदहोश हुआ जाए रे,कैसे कहें हम ,दिल आज शायर है,फिल्म शर्मीली से मेरा मन तेरा प्यासा,चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है फिल्म जुआरी से,रे मन सुर में गा फिल्म लाल पत्थर से जीवन की बागियां, जैसे राधा ने माला जपी, मैंने कसम ली, तूने कसम ली फिल्म तेरे मेरे सपने से ,झूम के गा यूं आज मेरे दिल ,पतंगा से , तुम कितनी खूबसूरत हो,फिल्म जंगल में मंगल से , इन गीतों को याद करके इनके लफ्ज़ों की जादूगरी और अल्फाज़ो के इंतखाब में खो जाना लाज़मी है क्योंकि इनके नग़्मानिगार हैं गोपालदास सक्सेना ,जो नीरज तखल्लुस या उपनाम से लिखते , इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में। न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥ अपने बारे में उनका ये शेर आज भी मुशायरों में फरमाइश के साथ सुना जाता है:
वो हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत कार रहे, पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है,वहां इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था, महज़ छै बरस के थे तो पिता गुज़र गये पर उन्होंने अव्वल दर्जे से पास होते हुए बड़ी मेहनत और लगन से पढ़ाई पूरी की फिर इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की पर मन न लगा तो लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से भी नौकरी छोड़कर कानपुर के एक कॉलेज में क्लर्की की फिर एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ भी देते रहे ,
मेरठ कॉलेज , में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक काम किया किन्तु उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे जहां कलम ने ज़ोर पकड़ा और वो शायराना महफिलों में शिरकत करने लगे ,कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका अंजाम ये हुआ कि वो बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा लेकिन फिर बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये क्यों के जवाब में आज हम उनकी ही बात को दोहराना चाहेंगे ,हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे औरों का धन सोना चांदी अपना धन तो प्यार रहा दिल से जो दिल का होता है वो अपना व्यापार रहा हानि लाभ की वो सोचें, जिनकी मंजिल धन दौलत हो हमें सुबह की ओस सरीखा लगा नफ़ा-नुकसाना रे। फिर ऐसी ही बेशुमार नज़्मों को हमारे नाम करके वो 19 जुलाई 2018 की शाम हिन्दी साहित्यकार के रूप में नीरज की कालक्रमानुसार प्रकाशित कृतियाँ हैं: संघर्ष (1944)अन्तर्ध्वनि (1946)विभावरी (1948)प्राणगीत (1951)दर्द दिया है (1956)बादर बरस गयो (1957) मुक्तकी (1958)दो गीत (1958)नीरज की पाती (1958) गीत भी अगीत भी (1959)आसावरी (1963)नदी किनारे (1963)लहर पुकारे (1963)कारवाँ गुजर गया (1964) फिर दीप जलेगा (1970)तुम्हारे लिये (1972
नीरज को कई पुरस्कारों व सम्मान से नवाज़ा गया जैसे :- विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार
यश भारती , उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ पद्म भूषण सम्मान । आपको फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया- जिनमें गीत थे , 1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चंदा और बिजली) 1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)
1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर) इनमें गीत काल का पहिया घूमे रे भैया के लिए उन्होंने पुरस्कार जीता ,यही नहीं , उत्तर प्रदेश सरकार ने गोपालदास नीरज को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का दर्जा दिया था , ज़िंदगी के जो मायने उन्होंने निकाले और अपनी कलम से कागज़ पर महफूज़ किए वो बेशकीमती हैं इसलिए जब भी वक्त मिले आइए , इन्हें समझने की कोशिश करते हैं और जिंदगी को आसान बनाते हैं।