कम मतदान, कहीं नई भर्ती का साइड इफेक्ट तो नहीं!

Low turnout, is it a side effect of new recruitment

Author: जयराम शुक्ल| “गीला कचरा, सूखा कचरा और मेड़िकल वेस्ट पहले चरण का वोटिंग प्रतिशत इन्हीं के संक्रमण का शिकार हो गया! भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से जब मैंने पहले चरण के मतदान के ट्रेन्ड के बारे में सवाल किया तो उनका यही जवाब था। ये वरिष्ठ नेता सतना के सम्मानित भाजपाई हैं और यहां दूसरे चरण यानी कि 26 अप्रैल को मतदान होना है। सतना में कांग्रेस लगभग साफ सी हो गई है, यानी कि तीन चौथाई भाजपा में आ गए । इन नेताजी का मानना है कि वोटिंग के मामले में सतना की गत सीधी से भी गई गुजरी होने वाली है। सीधी में पहले चरण में मतदान में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है”

मतदान का ट्रेंन्ड चिंतनीय

पहले चरण के मतदान के पश्चात विन्ध्य -महाकोशल में कुछ ऐसे सवाल हवाओं में तैर रहे है- मतदान का प्रतिशत क्यों गिरा ? क्या यह घटत भाजपा के प्रतिकूल जाएगी ? क्या इसके लिए कांग्रेस से भाजपा में आई दलबदलुओं की भीड़ जिम्मेदार है? क्या नई भर्ती से पुराने कार्यकर्ताओं के मनोबल पर प्रभाव पड़ा और वे तटस्थ हो गए? आइए इन्हीं कुछ सवालों की पड़ताल करते हैं।

सबसे पहले मतदान के ट्रेन्ड के बारे में जानें। 19 अप्रैल को पहले चरण में मध्यप्रदेश की जिन 6 सीटों पर मतदान हुए उनमें से 4 महाकोशल की छिन्दवाड़ा, बालाघाट, जबलपुर, मंडला तथा विन्ध्य की सीधी व शहडोल हैं। इन छह सीटों का औसत मतदान 2019 के मुकाबले 8 प्रतिशत तक गिरा। सबसे ज्यादा सीधी में 14% और सबसे कम छिन्दवाड़ा में 2.8%। जबलपुर में लगभग 9%, शहडोल में 11% व बालाघाट में 4.5% के करीब।

घटे मतदान का घाटा किसके हिस्से

अब तक बढ़े हुए वोटिंग प्रतिशत का मतलब यह होता रहा कि भाजपा बढ़त ले रही है। 2019 में छिन्दवाड़ा से भाजपा भले हार गई हो पर मतदान के प्रतिशत की बढ़त ने कांग्रेस के नकुल नाथ की जीत के मार्जिन को सिकोड़ दिया था। जबलपुर और शहडोल बढ़े मतदान प्रतिशत के साथ हर साल भाजपा की जीत का मार्जिन बढ़ा रहे थे। इन दोनों सीटों को घटे मतदान प्रतिशत के बावजूद भले ही सुरक्षित मानाकर चलें लेकिन छिन्दवाड़ा, मंडला संसय में आ गई हैं और सीधी में यदि भाजपा जीतती भी है तो उसके जीत का मार्जिन काफी हदतक सिकुड़ सकता है।

चार लाख नई भर्ती फिर भी

तो क्या कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आई कार्यकर्ताओं और नेताओं की भीड़ से भाजपा को कोई मदद नहीं मिली? न्यू ज्वाइनिंग कमेटी के संयोजक डा. नरोत्तम मिश्र के ताजा दावे को मानें तो अब तक राज्य से बूथ स्तर तक के चार लाख नेता और कार्यकर्ता भाजपा में आ चुके हैं, इनमें तीन चौथाई कांग्रेसी हैं। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री समेत तीन पूर्व सांसद, 15 पूर्व विधायक, 2 महापौर शामिल हैं। प्रदेश व जिला स्तर के पदाधिकारियों की संख्या बेशुमार है।

इतनी बड़ी संख्या में आए कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में सिर्फ सुरेश पचौरी ही एक मात्र ऐसे हैं जो भाजपा के प्रचार अभियान में नजर आते हैं, शेष अन्य को क्या दायित्व सौंपे गए यह किसी को भी नहीं पता।

गरिष्ट आए तो वरिष्ट घर बैठ गए

महाकोशल के वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट का मानना है कि कांग्रेस से आए कार्यकर्ताओं को लेकर जिला स्तर का संगठन सहज नहीं है। चलते चुनाव के बीच आए हैं इसलिए इन्हें दायित्व देने का जोखिम नहीं उठाया। दूसरे कांग्रेस छोड़कर आने वालों में ज्यादातर धनबल और रसूख वाले हैं इसलिए पुराने कार्यकर्ता ठंडे से पड़ गए। बूथ तक वोटरों को पहुंचाने में भाजपा में पिछली बार सी सक्रियता नहीं दिखी। बकौल भट्ट जो बात जबलपुर की है वहीं सीधी और मंडला की भी हो सकती है।

जबलपुर में भी बड़े पैमाने पर कांग्रेसी दल-बदल कर भाजपा में आए। महापौर जगत बहादुर अन्नू तो पहले ही आ गए थे, दिग्विजय सिंह के करीबी शंशाक शेखर(पूर्व महाधिवक्ता), पाटन के पूर्व विधायक नीलेश अवस्थी, सिहोरा से कांग्रेस की विधानसभा प्रत्याशी रह चुकीं एकता ठाकुर भी कांग्रेस के पतझड़ के मौसम में ही भाजपा के पाले में आईं। जबलपुर में दलबदलुओं को लेकर पूर्व मंत्री अजय विश्नोई और पूर्व महापौर प्रभात साहू अपनी तल्ख प्रतिक्रियाएं दे चुके हैं।

छिन्दवाड़ा के ट्विस्ट से सबक

छिन्दवाड़ा की कहानी में तो वोट के दिन ही बड़ा ट्विस्ट आया। महापौर विक्रम अहाके का दिल बदल गया और वे भाजपा में रहते ही कांग्रेस के प्रत्याशी नकुल नाथ को वोट देने की अपील करते नजर आए। अब परसवाड़ा के विधायक कमलेश शाह, कमलनाथ के शैडो रह चुके दीपक सक्सेना व नगरनिगम के सभापति प्रमोद शर्मा का दिल न बदला हो इसकी क्या गारंटी? कमलनाथ ने जितना कुछ विक्रम अहाके के लिए किया उतना ही तो दीपक सक्सेना व कमलेश शाह के लिए भी किया है। यानी कि यह दल-बदल भाजपा का फुलप्रूफ प्लान नहीं था।

दल बदल पर निष्ठा…?

महाकोशल के ही संघ की पृष्ठभूमि के एक भाजपा नेता कहते है- यह दल बदल है निष्ठा बदल नहीं। दरअसल कांग्रेस के एक विधायक से कहा गया कि यदि आप भाजपा में नहीं आते तो आपकी पत्नी के भ्रष्टाचार के वे पुराने मामले खोल दिए जाएंगे जो नगर पंचायत अध्यक्ष रहते हुए किया था। वैसे ही नगर निगम के महापौरों को अविश्वास प्रस्ताव का भय दिखाया वहीं गया। ऐसे में संख्या दिखाने की दृष्टि से भले ही इन्हें पार्टी में शामिल कर लें पर वस्तुत: इनकी निष्ठा वहीं रहेगी और ये नए दल में आकर उसे कुतरेंगे ही।

विन्ध्य में कांग्रेस के ट्रैप में फंसीं भाजपा!

विन्ध्य में तो लगता है कि भाजपा कांग्रेस के चग्घड़ नेताओं के ट्रैप में ही फंस गई। सतना से कोई तीन चौथाई कांग्रेस के नेता कार्यकर्ता भाजपा में आए। इनमें पिछले चुनाव के लोकसभा प्रत्याशी पूर्व महापौर राजाराम त्रिपाठी भी हैं। एक और प्रत्याशी सुधीर तोमर पहले दौर के ही दलबदल में आ गए। नागौद के कांग्रेस के विधायक रह चुके यादवेन्द्र सिंह पूरे दल-बल ढोल धमाके के साथ भाजपा में शामिल हुए। ये तीनों ही विन्ध्य के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल के समर्थक हैं। इनके अलावा भी सैकड़ों की संख्या में कांग्रेसी भाजपाई बने। तत्काल असर यह दिखा कि नागौद विधायक और खजुराहो से सांसद रह चुके भाजपा के प्रदेश के सबसे पुराने नेताओं में एक नागेन्द्र सिंह अपने किले से बाहर ही नहीं निकले। राजनाथ सिंह की सभा में बुलाने पर भी नहीं गए। रीवा में पूर्व सांसद देवराज सिंह समेत ज्यादातर वे शामिल हुए जो बसपा से कांग्रेस में आए थे। उल्लेखनीय बात यह कि अजय सिंह राहुल के रीवा और सीधी के एक भी समर्थक भाजपा में नहीं गए। इसका सीधा अर्थ यहां के लोग जानते हैं। चूंकि सतना से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ डब्बू से अजय सिंह राहुल की अदावत है इसलिए ऐसा हुआ। इस बात की कोई गारंटी नहीं कि ये लोग भाजपा में ही टिके रहेंगे।

ये जो न्यू ज्वाइनिंग कमेटी है न..

दरअसल तथाकथित न्यूज्वाइनिंग कमेटी ने अपने भर्ती अभियान में जिला संगठन से कोई राय ही नहीं ली। जो कल तक गाली देते थे, चरित्र हनन करते थे, भाजपा को गोडसे की पार्टी कहते थे, नरेंद्र मोदी से बड़ा तानाशाह कोई और नहीं दिखता था ज्यादातर वहीं भाजपा में आ गए। इनमें से वो भी हैं जो ठेकेदार हैं और उनका भुगतान अटका है, बहुतेरे किसी न किसी मामले में फंसे हैं। भाजपा के भीतर जो नेता सतर्क हैं वे ऐसे तत्वों पर अपना वीटों लगाए बैठे हैं। जैसे रीवा में ही, यहां के बड़े कद्दावर नेता ने अभय मिश्रा को भाजपा में नहीं आने दिया, तो नहीं आने दिया, जबकि न्यू ज्वाइनिंग कमेटी के कर्ताधर्ताओं ने जी-जान सटा रखा था। बकौल रीवा जिला संगठन के एक पदाधिकारी- इसी तरह चुनाव से अलग-थलग बैठे रीवा के कांग्रेसी महापौर फिलहाल वेटिंग लिस्ट में डाल दिए गए हैं, वजह उनकी डिक्शनरी में कोई ऐसे शब्द शेष नहीं बचे जिसका इस्तेमाल भाजपा और उनके नेताओं के लिए न किया हो।

और अंत में

न्यू ज्वाइनिंग कमेटी स्वयंभू है कि प्रदेश व केन्द्र के संगठन की नई रचना?
भोपाल में भाजपा प्रदेश कार्यालय में वर्षों तक संगठन के सूत्र सम्हालने वाले एक बेबाक बुजुर्ग नेता कहते हैं- यह कमेटी तो नगर निगम के हांका गैंग की तरह है जो सड़क पर फिर रहे आवारा ढोरों को हांककर अपने बाड़े में ला रही है। उक्त नेता कहते हैं कि असलियत का पता उस दिन लगेगा जिस दिन भाजपा मध्यप्रदेश में अपने पिछ्ले प्रदर्शन तक भी न पहुंच पाएगी। आज ये भले आसमान में हैं कल जमीन भी ढ़ूंढे नहीं मिलेगी। बहरहाल अभी भी वक्त है, तीन चरण और 23 सीटों में मतदान, संभल सको तो संभलो।

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