फरवरी का महीना प्रेम का माना जाता है, क्योंकि इसी मन्थ में वेलेंटाइन वीक भी पड़ता है, भारत में भी इस समय बसंत का मौसम चल रहा है, बसंत को भी प्रेम और शृंगार का महीना माना जाता है, भारतीय इतिहास और संस्कृत में वीरता के साथ-साथ प्रेम को भी अत्यधिक महत्व दिया गया है, इतिहास में वैसे तो कई प्रेम कहानियाँ दर्ज है, लेकिन उदयन और वासवदत्ता की कहानी इतिहास में दर्ज पहली प्रेम कहानी मानी जाती है। उदयन और वासवदत्ता की प्रेम कहानी को आधार बना कर महाकवि ‘भास’ ने प्रतिज्ञायौगंधरायण और स्वप्नवासवदत्ता नाम के दो नाटकों की रचना की, इसके अलावा भी उदयन और वासवदत्ता की कहानी और भी कई ग्रंथों में आई है। इस कथा के अनुसार –
इतिहास में 500-600 ई. पू. की बात है, जब महाजनपद काल चल रहा था, बौद्ध ग्रंथों के अनुसार महाजनपदों की संख्या 16 थी, इन्हीं में से एक महाजनपद था ‘वत्स’, वत्स महाजनपद की राजधानी ‘कौशांबी’ थी, इतिहासकारों ने वत्स महाजनपद को प्रयागराज के आस-पास स्थित माना है, यहीं उदयन नाम का राजा शासन किया करता था, उदयन को भगवान बुद्ध का समकालीन माना जाता है। उदयन के पिता राजा सतानिक और माँ विदेह की राजकुमारी मृगानिका थी। उदयन के पास “घोषवती” नाम की एक वीणा थी, दंतकथाओं के अनुसार उसे यह वीणा नागराज वासुकि के भाई ने दी थी, राजा उदयन वीणा वादन में निपुण था, जब इस वीणा पर वह तान छेड़ता, तो उसकी धुन से मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी भी सम्मोहित हो जाते थे। वीणावादन के अतिरिक्त वह अत्यंत रूपवान भी था, उसके रूप-सौंदर्य, आखेटप्रियता और वीणा निपुणता की चर्चा दूर-दूर तक होती थी।
उसी का समकालीन अवंति महाजनपद का राजा था “चंड प्रद्योत”, उसके पास विशाल सेना थी, जिसके कारण उसे ‘महासेन’ भी कहा जाता था, अवंती महाजनपद की स्थित आज के मध्यप्रदेश के मालवा में थी, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी। चंडप्रद्योत की ‘वासवदत्ता’ नाम की एक अत्यंत रूपवती कन्या थी, चंडप्रद्योत बहुत ही महत्वकांक्षी शासक था, वह आस-पास के सभी जनपदों को जीत लेना चाहता था, उसकी नजर वत्स पर भी थी, लेकिन वत्स भी शक्तिशाली था। वसवदत्ता ने भी उदयन के वीणावादन की निपुणता के बारे में सुन रखा था, इसीलिए उसने अपने पिता से जिद की, कि राजा उदयन को वीणा सिखाने के लिए बुलाए, उसके पिता ने उसे बहुत समझाया वह राजा है, वह नहीं मानेगा, पर राजकुमारी जिद पर अडी रही, हारकर पिता ने अपना एक दूत उदयन के पास भेज, उदयन भी एक राजा ही था, उसने भी जवाब भिजवा दिया, अगर राजकुमारी सीखना चाहती हैं, तो वह कौशाम्बी आ जाएँ।
राजा उदयन हाथियों के आखेट का शौकीन था, वह वीणा बजाता और हाथी मंत्रमुग्ध होकर उसके पास आ जाते, और वह हाथियों को पकड़वा लेता था, राजा उदयन के राज्य से ही विंध्य पर्वत और उसके वनक्षेत्र भी लगे थे, जहां प्रचुर मात्रा में हाथी मिलते थे। एक बार राजा उदयन हाथियों के आखेट के लिए नागवन गया, राजा चंडप्रद्योत को भी इसकी खबर लगी, उसके अमात्य ‘शालंकायन’ ने वत्सराज को बंदी बनाने के लिए एक योजना बनाई, जिसके अनुसार ‘नीलकुवलय’ अर्थात नीले वर्ण का एक कृत्रिम हाथी बनाया गया, उसके अंदर सैनिक छिप गए, योजना अनुसार यह बात फैला दी गई, नागवन में एक नीलवर्ण का हाथी है, नीले वर्ण के हाथी के बारे में सुनकर राजा उदयन अकेले ही उसे पकड़ने के लिए गए, उनके साथ केवल हंसक नाम का उनका अंगरक्षक था, वहाँ जाकर वह शालंकायन के षड्यन्त्र का शिकार हुए और बंदी बना लिए गए। उन्हें बंदी बनाकर उज्जयिनी लाया गया, राजा चंडप्रद्योत ने वत्सराज उदयन के साथ राजोचित व्यवहार किया, और उन्हें निवासादि के लिए एक अलग कक्ष दिया और साथ ही अपनी पुत्री को वीणा सिखाने का भी आग्रह किया।
राजा उदयन और वासवदत्ता की प्रेम कहानी
राजा उदयन राजकुमारी वासवदत्ता को वीणा सिखाने लगे, वीणा सिखाने के दौरान केवल वीणा के तार ही झंकृत नहीं हुए, दिलों के तार भी झंकृत हुए, राजा उदयन के रूप, कला और वीरता इत्यादि पर पहले से ही आसक्त वासवदत्ता, उनके प्रेम करने लगी, उदयन भी राजकुमारी पर रीझ गए और दोनों ही एक दूसरे से प्रेम करने लगे। इस बात की खबर जब राजा चण्डप्रद्योत को लगी तो उसने उदयन को बंदी बनाकर, कारावास में डलवा दिया। जबकि राजकुमारी की माँ अङ्गारवती अपनी पुत्री का विवाह उदयन के साथ करवाना चाहती है।
इधर उदयन के अवंती के सेना द्वारा पकड़े जाने की खबर कौशांबी पहुंची, तो हाहाकार मच गया, लेकिन वत्सदेश के बुद्धिमान अमात्य ‘यौगंधरायण‘ ने उदयन को छुड़ाने के लिए वेश बदल कर अपने कुछ साथियों सहित उज्जयिनी जाता है, वहाँ वह योजना बना कर उसे कैद से भाग जाने के लिए कहता है, लेकिन वासवदत्ता के प्रेम में डूबे राजा उदयन, राजकुमारी को भी अपने साथ वत्स ले जाने के अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं, राजकुमारी वासवदत्ता भी प्रेम के वशीभूत होकर राजा उदयन के साथ जाने को तत्पर हो जाती हैं। राजा चंडप्रद्योत के पास एक अत्यंत बलशाली और उसे अत्यंत प्रिय नलगिरी नाम का हाथी होता है, योजना के अनुसार उस गजराज को उदयन के लोग मदिरा पिलाकर उन्मुक्त कर देते हैं, जिसके कारण हाथी अनियंत्रित हो जाता है, अपने हाथी की इस दशा को जानकार राजा चंडप्रद्योत, उदयन को कुछ समय के लिए मुक्त कर हाथी को वश में करने का आदेश देता है, योजना अनुसार राजा उदयन इस मौके का फायदा उठाकर राजकुमारी वासवदत्ता को उसके तेज धावन में निपुण भद्रवती नाम की हथिनी में बैठाकर भाग जाता है, दोनों विंध्य के दुर्गम वनों और कई विघ्न बाधाओं को पार करते हुए कौशांबी पहुंचते हैं और विवाह कर लेते हैं, बाद में राजा चंडप्रद्योत भी इस रिश्ते को अपनी अनुमति दे देते हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है जब गंगा में बाढ़ आने के कारण हस्तिनापुर बह गया, तो अर्जुन के परपौत्र जनमेजय के चौथी पीढ़ी के राजा निकाक्षु ने गंगा के तट पर अपनी राजधानी कौशांबी में बना ली, इसी वंश में आगे चलकर उदयन हुए, उदयन का जिक्र पौराणिक ग्रंथों के साथ बौद्ध ग्रंथों में भी भरपूर मिलता है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो वत्स महाजनपद की राजधानी कौशांबी की अवशेष अभी भी प्रयाग के निकट कोसम नाम के स्थान पर मिलते हैं, इतिहासकार यह भी मानते हैं विंध्य क्षेत्र के रीवा पठार का कुछ उत्तरी हिस्सा भी वत्स महाजनपद में आता था, कुछ कथाओं के अनुसार राजा उदयन और वासवदत्ता को विंध्य के वनों में ही लुटेरों का भी सामना करना पड़ा था।