Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव से पहले NDA ने 400 प्लस सीटें जितने का लक्ष्य तय किया है तो वहीं INDIA भी एनडीए के इस लक्ष्य को हयसील करने से रोकने के लिए हर कोशिश कर रही है.
Lok Sabha Chunav 2024:16 मार्च, 2024 को चुनाव आयोग ने चुनावों की तारीखों का एलान कर दिया हैं. इस बार का चुनाव पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही 7 फेज में होगा और वोटिंग की शुरुआत यानी पहले चरण की वोटिंग 9 अप्रैल को होगी। चुनाव की ये पूरी प्रक्रिया 43 दिनों तक चलने वाली है और मतगणना के साथ ही भारत की नई सरकार का एलान हो जाएगा। फिलहाल सभी राजनितिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों का ऐलान करती जा रही हैं.
ऐसे में इस रिपोर्ट के मध्यम से समझते हैं कि लोकसभा चुना 2024 हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 में किस राज्य में अभी कैसे है समीकरण और बीजेपी के लिए किन सेटों पर जीत हासिल करना है सबसे बड़ी चुनौती।
उत्तर प्रदेश: सत्ता का गेम बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका
सियासत के लिहाज से उत्तर प्रदेश बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि इसी राज्य से देश को सबसे ज्यादा सासंद (80 सांसद) मिलते हैं. यहां की राजनीति की बात करें तो इस राज्य में राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दल जातिगण समीकरणों और गुणा-भाग के आधार पर ही चुनाव की वैतरणी पार करते हैं. भारतीय जनता पार्टी को यहां पिछले 2 चुनावों में प्रचंड जीत मिली थी. इस जीत ने केंद्र में पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी अन्य पार्टी को बहुमत की सरकार बनाने में मदद की थी.
वर्त्तमान की बात करें तो पिछले चुनाव बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी सपा इस बार कांग्रेस का दामन थम लिया है . हालांकि भाजपा को पूर्व में निषाद पार्टी, अपना दल और सुभासपा से काफी उम्मीदें हैं. वहीं पश्चिमी उतर प्रदेश में रालोद क साथ मिलने के बाद भारतीय जनता पार्टी एक बड़ी जीत की उम्मीद है. एक तरफ सपा और कांग्रेस ने समाजिक न्याय के पिच पर एनडीए को घेरने की योजना बनाई हुई है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी समाजिक न्याय के साथ साथ के राम मंदिर के उद्घाटन से उठे ज्वार के सहारे मैदान फतह करने की जुगत में हैं. इसके अलावा बसपा के अपने दम पर मैदान में उतरने के फैसले ने भी बीजेपी का हौसला बुलंद किया है.
बदले गठबंधन का असर
यूपी में पूरे पांच साल बाद बीजेपी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सहयोगी के तौर पर साथ आ गए हैं. ये तो साफ है कि इस गठबंधन का असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा. वहीं बीजेपी के साथ इस बार राष्ट्रीय लोकदल भी लौट आई है. इस तरह इस लोकसभा चुनाव में एनडीए के सामने केवल कांग्रेस और सपा का ही गठबंधन रह गया.
2 बिहार: कभी साथ तो कभी अलग
2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड एक साथ चुनाव लड़ी थी. जिसका फायदा उन्हें मिला था. हाल ही में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन टूटा था, लेकिन एक बार फिर गठबंधन बन जाने से बीजेपी यहां मजबूत स्तिथि में लग रही है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और इतनी सीटें सत्ता की चाह रखने वाली किसी भी पार्टी के लिए काफी अहम हैं.
साल 2014 में एनडीए ने आम चुनाव में 31 लोकसभा सीटों अपने नाम की थी जबकि 2019 में ये संख्या बढ़कर 39 सीटों तक पहुंच गई और अब इस चुनाव में बीजेपी की कोशिश रहेगी कि वह 2019 के चुनाव परिणाम को दोहराए।
3. जम्मू कश्मीर,लद्दाख: 370 के ख़त्म होने का असर दिख सकता है
जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों पर पांच चरणों में चुनाव होगा. सूबे में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई और 20 मई को मतदान की तारीख तय की गई है.
इन दोनों केंद्रशासित प्रदेश में अनुच्छेद 370 हटने के बाद बीजेपी यहां सकारात्मक बदलाव को मुद्दा बनाती रही है. पार्टी ने इस बार घाटी तक पहुंच बनाने की पूरी तैयारी कर ली है. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए अब भी मैदान में दो ताकतवर क्षेत्रीय दल नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी मौजूद हैं. इन दोनों दलों का मुख्य मुद्दा पूर्ण राज्य के दर्जे को साथ 370 की फिर से बहाली है.
इन केंद्रशासित प्रदेशों के चुनाव में इस बार कांग्रेसी दिग्गज रहे गुलाम नबी आजाद भी डेमोक्रेटिक प्रगतिशील आजाद नाम की पार्टी बनाकर मैदान में उतर रहे हैं. इसके अलावा एनडी-पीडीपी ने गठबंधन तोड़ दिया है और कांग्रेस फिलहाल अकेली है.
4. उत्तराखंड: BJP के लिए हैट्रिक लगाना चुनौती
उत्तराखंड में साल 2014 से ही लोकसभा की सभी पांचों सीटों पर अपनी पकड़ बना कर रखने वाली पार्टी बीजेपी के सामने अब हैट्रिक लगाने की चुनौती है. इस राज्य में बीजेपी का मुख्य मुद्दा देवभूमि में किया गया विकास है. मोदी सरकार ने इस राज्य में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देन के भी कई प्रयास किए हैं.
5. हिमाचल प्रदेश: बगावत के कारण संकट में कांग्रेस
हिमाचल उत्तर भारत में कांग्रेस शासित एकलौता राज्य है. यहां पिछले साल ही कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर सत्ता हासिल की थी. हालांकि वर्तमान में इस राज्य में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ की पार्टी में असंतोष है. पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह बगावत की कमान संभाले हुए है. ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में जहां एक तरफ बीजेपी के सामने फिर से क्लीन स्वीप करने सबसे बड़ी चुनौती है तो वहीं कांग्रेस के लिए खाता खोलना चुनौती है.
9. कर्नाटक: नया सियासी समीकरण
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के साथ जाने के बाद, इस बार जनता दल सेक्युलर (JDS) ने बीजेपी का साथ चुना है. कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद जनता दल सेक्युलर और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन हुआ. दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे के समझौते के अनुसार चार सीटें जेडीएस के लिए छोड़ी जाएंगी जबकि 24 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे.
10. महाराष्ट्र: शिवसेना और एनसीपी
महाराष्ट्र में पूरे 25 साल के गठबंधन के बाद साल 2019 में बीजेपी और शिवसेना की राहें अलग हो गईं. यहां सरकार बनाने के लिए शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया और सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ा.
साल 2022 के जून महीने में, भारतीय जनता पार्टी सियासत का बड़ा खेल खेला जिससे शिवसेना दो गुटों में बंट गई. वहीं, जून 2023 में अजित पवार ने एक तरह से कहें तो NCP को हाईजैक कर लिया और अब शरद पवार (Sharad Pawar) की अगुवाई वाली एनसीपी का एक गुट कांग्रेस के साथ है जबकि अजित पवार का गुट भाजपा के साथ.
हिंदी पट्टी लिखेगा जनादेश की पटकथा
इस चुनाव में सबकी नजर हिंदी पट्टी के 10 राज्यों पर है. इन राज्यों में लोकसभा की 225 सीटें हैं और इन्हीं राज्यों में अपने दमदार प्रदर्शन के बदौलत बीजेपी दो बार लगातार सत्ता में आ चुकी है.
इन राज्यों के मतदाताओं पर हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय के प्रति गहरा आकर्षण रहा है. BJP इन तीनों मोर्चे पर बेहतर बूथ प्रदर्शन और बेहतर रणनीति के बदौलत अपने विरोधियों पर भारी पड़ी थी. इन राज्यों में जहां बीजेपी ने अपने दम पर 177 और सहयोगियों के दम पर 203 सीटें अपने नाम की थी वहीं Congress को इन राज्यों की केवल 5 सीटें ही मिली थी.