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Lok Sabha Election 2024: चलते चुनाव में ही INDI को ‘अंडा’

Lok Sabha Election 2024

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Author Jay Ram Shukla| शिल्पलोक खजुराहो का पारा 42 डिग्री के आसपास टंगा है। धरती तवे सी गर्म है और झुलसाने वाली लू बिना पते की चिट्ठी की तरह यहां वहां भटक रही है। लेकिन इस जानलेवा गर्मी में जो अप्रत्याशित है वो है चुनावी ‘शीतलहर’। वोटर ठंडे पड़े हैं कार्यकर्ता घर बैठे हैं।

खजुराहो से इन्डी गठबंधन की सपा प्रत्याशी मीरा यादव पर्चा रद्द होने के बाद से फ़ुरसत में हैं। मैदान में बचे दूसरे समर्थित प्रत्याशी राजा भैया प्रजापति की सूरत शक्ल कैसे हैं वोटर उन्हें देखने को तरह रहा। निर्द्वंद्व भाजपा प्रत्याशी वीडी शर्मा दूसरे क्षेत्रों में रोड़ शो कर रहे हैं। 26 अप्रैल को मध्यप्रदेश की छह सीटें खजुराहो, दमोह, टीकमगढ़, होशंगाबाद, रीवा, सतना में दूसरे चरण का मतदान होना है।

गठबंधन प्रत्याशी का सेल्फ गोल

दिलचस्प है कि खजुराहो की चर्चा आज देशभर में चुनावी मुकाबले के लिए नहीं अपितु विपक्ष के हथियार डालने को लेकर हो रही है। मध्यप्रदेश में इन्डी गठबंधन ने यह सीट सपा को सौंप दी। सपा ने टीकमगढ़ के निवाड़ी की मीरा यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। मीरा एक बार निवाड़ी से सपा की टिकट पर विधायक रहीं और उनके पति झांसी उप्र. में सपा से ही एम एमलसी, एमएलए रहे। मीरा दीपक यादव ने ऐसी गणित लगाकर पर्चा भरा और वह रिजेक्ट हो गया।

छतरपुर के पत्रकार नीरज सोनी कहते हैं कि यह सबकुछ प्रत्याशी ने जानबूझकर किया। यूपी में कई मुकदमे झेल रहे दीपक यादव यहां भाजपा से पंगा नहीं लेना चाहते थे सो ऐसा किया वरन् वे एमएलए रहे चुके हैं और पर्चा भरने की बारीकियों को बखूबी जानते हैं। यह भी हो सकता है कि उनकी कोई अंडरटेबिल डीलिंग हुई हो।

बहरहाल खजुराहो कांड को मीडिया और विपक्ष ने बतंगड़ बनाने की कोशिश भी की लेकिन सपा प्रत्याशी ने ही गर्म तवे पर ठंडे पानी के छीटें मारकर सबकुछ शांत कर दिया कि वे न इसके खिलाफ अपील करना चाहतीं न दलील देना चाहती। इसके साथ ही भाजपा के प्रत्याशी वीडी शर्मा को खुला मैदान मिल गया।

कांग्रेस का जनाधार राख में खाक

इन्डी गठबंधन ने अपना समर्थन फारवर्ड ब्लाक पार्टी के प्रत्याशी राजा भैय्या प्रजापति को दे दिया। राजा भैय्या उर्फ आरबी रिटायर्ड आईएएस हैं और जाहिर है चुनाव लड़ने से ज्यादा चर्चाओं में आने के लिए पर्चा भरा। खजुराहो लोकसभा के गांवों में जाकर देखिए तो पता चलेगा कि ये समर्थन भी कागजी है। कभी कांग्रेस के लिए शान रही खजुराहो सीट में अब उसके लिए जनाधार के नाम पर राख शेष बची है।

इस क्षेत्र के सबसे कद्दावर नेता शंकर प्रताप सिंह भाजपा में चले गए। यहां से विधायक रहे विक्रम सिंह नाती राजा फरार चल रहे हैं। आलोक चतुर्वेदी उर्फ पज्जन अपने फार्म हाउस बाग-बगीचे देख रहे हैं। खजुराहो के अंतिम कांग्रेसी वारिस सत्यव्रत चतुर्वेदी संन्यास ले चुके हैं। पूर्व प्रत्याशी राजा पटेरिया का अता-पता नहीं, पवई से लड़ने वाले मुकेश नायक भोपाल में कांग्रेस का रथ हांक रहे हैं।

कभी खजुराहो से शेर-ए- बुंदेलखंड रामसहाय तिवारी सांसद हुआ करते थे(1957-62)। 1977 में बुंदेलखंड के गांधी लक्ष्मीनारायण नायक ने प्रतिनिधित्व किया‌। 1980 से 90 तक विद्यावती चतुर्वेदी उर्फ मम्मी जी की धाक रही। लेकिन 1989 में उमा भारती ने कांग्रेस से उसका गढ़ छीन लिया और लगातार चार मर्तबे सांसद रहीं। इसके बाद से यह सीट राजनीतिक दलों के लिए ‘बुफे का लंच’ बन गई। किसी को भी खड़ा कर दिया, कोई भी जीतकर चला गया।

भाजपा कीर्तिमान बनाने में जुटी

खजुराहो में भले ही चुनावी शीतलहर चल रही हो लेकिन भाजपा फिर भी गंभीर है। आखिर मध्यप्रदेश के संगठन अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा जो चुनाव लड़ रहे हैं। उनके समर्थक कहते हैं- क्यों न लगे हाथ जीत का गिनीज़ बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बना लिया जाए। कटनी के वरिष्ठ पत्रकार राजा दुबे कहते हैं- भले ही अन्यों के लिए यह चुनाव नीरस हो लेकिन भाजपा के कार्यकर्ता बूथ-बूथ पहुंच रहे हैं।

विधायक संजय पाठक रोड शो कर रहे हैं। कटनी, पन्ना और छतरपुर में होड़ सी लगी है कि कहां से भाजपा सबसे ज्यादा रहती है। राजा दुबे कहते हैं कि चुनाव की बात सिर्फ भाजपाई करते हैं, अन्य दलों के नेताओं कार्यकर्ताओं में कोई रुचि नहीं। एक तरह से लोकतंत्र का यह महोत्सव विपक्ष को शोकाकुल करने वाला है।

खजुराहो में सबसे बड़ी चुनौती वोटिंग प्रतिशत को लेकर है। भाजपा के वोट तो बूथ तक पहुंचेंगे पर विपक्ष के वोटों में मायूसी है। हो सकता है कि खजुराहो कहीं नोटा का कीर्तिमान न रच दे। यहां चुनाव आयोग की सतर्क निगाहें हैं। वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए हर स्तर पर जागरूकता का अभियान चल रहा है। और हां भाजपा में एक बात चल रही है कीर्तिमान जीत का मतलब वीडी भाई का केंद्रीय कैबिनेट में बर्थ तय।

शेष सीटों पर सिवाय मोदी और कुछ खास नहीं

दूसरे चरण की शेष पांच सीटों पर ऐसी कोई खास बात उभरकर सामने नहीं आती जो चुनाव के रुख को बदलने जैसी हो। अलबत्ता सतना में जाति-पांत की चर्चा ज्यादा है। यहां कुनबी-काछी-और बाम्हन के बीच संघर्ष की बातें की जा रही हैं। लेकिन चुनाव के दरम्यान ही जिस तरह ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्ग के स्थानीय कद्दावर नेता कांग्रेस छोड़कर और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए हैं उससे लगता है कि जाति-पाति बस सड़कों की बातें हैं।

सिद्धार्थ कुशवाहा में जो लोग सुखलाल की छवि देख रहे हैं वे जरूर उत्साहित हैं कि सतना मे 1996 का इतिहास दोहराया जा सकता है, जब दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह व वीरेन्द्र सखलेचा चुनाव हारे थे। राजनीति में घाट घाट का पानी पीने वाले स्वयंभू ब्राह्मण ह्रदय सम्राट और विन्ध्यपुरोधा नारायण त्रिपाठी इस बार बसपा की हाथी पर सवार हैं। उन्हें लगता है कि सबके सब ब्राह्मण उन्हें वोट दे देंगे और बसपा वाले तो हैं ही..। नारायण के पैंतरों से जब मैहर ही आजिज आ चुके तो शेष क्षेत्र की बात क्या करें।

रीवा में भाजपा के जनार्दन मिश्र के मुकाबले कांग्रेस की नीलम अभय मिश्रा चुनाव लड़ रही हैं। अपने प्रभाव वाले सतना में लगभग समूची कांग्रेस खो चुके अजय सिंह राहुल रीवा में कांग्रेस की कमान थामें हैं। कांग्रेस प्रत्याशी पूछती हैं कि रीवा में दस साल में कुछ नहीं हुआ तो जवाब में जनार्दन मिश्रा कहते हैं कि ऐसा कोई अंधा- बहरा, पियागी और पैकार ही कह सकता है बाकी शेष मध्यप्रदेश जानता है कि रीवा में क्या हुआ।

बुंदेलखंड दमोह सीट में लोधीवंश की शान टकरा रही है तो टीकमगढ़ में भाजपा के वीरेंद्र खटीक की वरिष्ठता और सज्जनता दांव पर लगी है। होशंगाबाद से कांग्रेस के संजय शर्मा अपने कारोबारी नेटवर्क को चुनाव में कितना कैश कर पाते हैं यह देखना होगा.. वैसे नर्मदा पट्टी जिस तरह भाजपा के साथ बह रही है उसके चलते दर्शन सिंह चौधरी को कोई चिंता नहीं।

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