‘माहौल’ कोडीन का कोड नेम है और इसे ‘कोरेक्स’, ‘सांय-बांय’, ‘दवाई’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है. ये नशीली चीज़ नाबालिगों और युवाओं का जीवन बर्बाद कर रही है.
दुनिया के तमाम नशे कम पड़ रहे थे, इसी लिए होनहारों ने कफ-खांसी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाई को नशा बना लिया. वैसे नशा करने वाले तो नेल पोलिश मिटाने वाला थिनर और साइकल का पंचर बनाने वाले सोल्यूशन से भी काम निपटा लेते हैं, लेकिन ‘माहौल’ की शीशी को बादाम शेक की तरह पीने का स्वैग ही अलग लेवल पर चल रहा है.
‘माहौल’ कोडीन (Codeine) का ‘कोड-नेम है’ और इसे ‘कोरेक्स’, ‘सांय-बांय’, ‘दवाई’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है. ये नशीली चीज़ नाबालिगों और युवाओं का जीवन बर्बाद कर रही है. मान लीजिये कि जो बुजुर्ग इसे पीते हैं वो ज्यादा दिन के नहीं बचे हैं, जो जवान इसे पीते हैं उन्हें कभी बुजर्ग कहलाने का सौभाग्य नहीं मिलेगा और जो बच्चे इसे पीते हैं वो जवान होने से पहले ही बुढ़ा जाएंगे.
माहौल है क्या?
‘माहौल’ (Codeine) एक नशा है जिसने समाज का माहौल ख़राब कर दिया है. यह एक कफ सिरप है जिसे कोडीन फॉस्फेट नाम के कैमिकल से बनाया जाता है. जो कफ और खांसी के इलाज में फौरी राहत देता है. खासी से पीड़ित व्यक्ति कोडीन सिरप पीता है तो उसे नींद आती है, इंसान सो जाता है और गले को आराम मिलता है. डॉक्टर भी इसे बीमार व्यक्ति को थोड़ी मात्रा में लेने की सलाह देते हैं. लेकिन हमारे समाज में ऐसे शक्तिमान टाइप के लोग हैं जो इस दवाई को बीमारी से ठीक होने के लिए नहीं बल्कि खुद को बीमार करने के लिए पीते हैं. 2-4 चम्मच नहीं पीते बल्कि 2-4 बॉटल गटक जाते हैं.
कोडीन की लत कैसे लगती है
कोडीन का इस्तेमाल ज्यादा मात्रा में किया जाए तो यह नशे का काम करती है. इसे पीने से बॉडी रिलैक्स हो जाती है, दिमाग से डोपामिन रिलीज होता है जो मजा देता है, टेंशन नहीं रहती. लोग इसे दिनभर पीने लगते हैं ताकि मजे का ‘माहौल’ बना रहे. लेकिन कुछ घंटे का रिलैक्स पूरे जीवन कष्ट देता है.
देश में पंजाब और उत्तरी भारत समेत मध्य प्रदेश कोडीन के शौकीनों के लिए बदनाम हो गया है. एमपी का रीवा जिला जो कभी सफ़ेद बाघों के लिए जाना जाता था आज महोलियों का गढ़ बन गया है.
कफ सिरप को नशे की तरह पीने के नुकसान
हम आपको कोडीन के कुछ नुकसान बताते हैं, अगर आप या आपका दोस्त या फिर कोई रिश्तेदार इसकी लत का शिकार है तो उसे पहले समझाइये, ना माने तो फिर तबियत से समझाइये।
1. अन्य अफीम पदार्थों की तरह कोडीन का भी एक कैरेक्टर होता है. जिसको मेडिकल भाषा में टॉलरेंस कहते हैं. यानी समय के साथ-साथ व्यक्ति अपनी लिमिट को बढ़ाने लगता है. शुरआत आधी शीशी से होती है जो कुछ महीनों में 2-4 बोतल या उससे भी ज्यादा बढ़ जाती है.
2. इसका सेवन करने से एंजाइटी, डिप्रेशन होने लगता है, अगर सिरप ना मिले तो बंदा बेचैन हो जाता है, बिना पिए नींद नहीं आती, आदत लगने के बाद नींद, बेहोशी में बदलने लगती है.
3. इसके सेवन ने वजन घटने लगता है (भाई ये वेट लॉस की दवाई नहीं है) भूख कम हो जाती है. आदमी सुख कर हड्डी हो जाता है.
4. कोई काम करने में मन नहीं लगता, मूड स्विंग होता रहता है. इसी लिए इसे साय-बाएं भी कहा जाता है.
5. आदमी अपनी जिम्मेदारियों से भागने लगता है, गुस्सा और चिड़चिड़ापन महसूस होता है.
6. लंग इंफेक्शन हो जाता है, दिल की धड़कन आउट ऑफ़ कंट्रोल हो जाती है, कभी धीमी कभी तेज. ज्यादा डोज लेने पर आदमी उठता नहीं उठ जाता है.
7. दिमाग का दही हो जाता है, बंदा कुछ सोचने समझने की शक्ति खो देता है, फिर काम-धाम में मन नहीं लगता, कुछ समय बाद ये समस्या परमानेंट हो जाती है.
कोडीन का सबसे बड़ा नुकसान
एक समय ऐसा आता है जब मिर्गी जैसे अटैक आने लगते हैं, शरीर अकड़ने लगता है, आंखे बाहर आने लगती हैं. जब दौरे पड़ते हैं तो देखने वालों को यही लगता है कि मरीज का अंतिम समय आ गया है. ऐसे फिट्स के अटैक कभी भी आ जाते हैं. नहाते हुए, खाना खाते वक़्त, बाइक चलाते हुए वगैरह-वगैरह।
जब घर वाले समझ जाते हैं कि लड़का कोचिंग की फीस की तो कोरेक्स पी गया तो वह पैसे देने बंद कर देते हैं. और यहीं से एक क्रिमिनल का जन्म होता है. लड़का घर से चोरी करने लगता है, फिर लूट करता है, कलम छोड़कर चाक़ू उठा लेता है. ये कोई हवा-हवाई बातें नहीं हैं. ऐसे कई केस सामने आए हैं जहां नशा ना मिलने के चलते, बच्चों ने मां-बाप के गहने और बैंक खाते साफ़ किए हैं, घर-परिवार, और अजनबियों पर जानलेवा हमले किए हैं.
कोडीन की लत कैसे छुड़वाएं
सबसे पहले अपने बच्चे को प्यार से समझाओ, फिर भी ना माने तो किसी मनोचिकित्स्क के पास ले जाओ, अगर उससे भी काम न बने तो आपको सीधा नशा मुक्ति केंद्र में अपने बच्चे को 3-4 महीने के लिए छोड़ देना चाहिए. अगर कोई आपके परिचित इस नशे का आदि है तो उसे नशा मुक्ति केंद्र जाने की सलाह दें. नशा छुड़ाने के लिए दवाएं भी मिलती हैं, लेकिन खराब संगती की कोई दवा नहीं होती।
रीवा में माहौल टाइट है
पिछले 2 दशक से रीवा में कोडीन का व्यापर हिट है. इसे बनाने वालों से लेकर बेचने वालों और पुलिस की जेब गरम है. रीवा में छोटे-छोटे बच्चे इस नशीली सिरप को ऐसे पीते हैं जैसे मैंगो फ्रूटी, बच्चे क्या बुजुर्ग, जवान सभी इसका शिकार हैं. ना सिर्फ लड़के बल्कि लड़कियां भी इस नशे के चंगुल में फंस रही हैं.
वैसे आए दिन पुलिस 10-12 पेटी नशे की सिरप पकड़ कर अख़बारों में अपनी फोटो खिंचवा लेती है. लेकिन पुलिस के लम्बे हाथ आज तक इसे बनाने वाले सरगना तक नहीं पहुंचे हैं. पहुचेगें भी कैसे? आज-कल ईमानदारी से किसका घर चलता है?