आखिर क्यों हुई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को उम्रकैद?

pradeep sharma -

महाराष्ट्र के मुंबई में साल 2006 में एक एनकाउंटर हुआ था, जिसको अदालत ने फर्जी करार देते हुए पूर्व पुलिस अफसर प्रदीप शर्मा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.

19 मार्च मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में मुंबई पुलिस के पूर्व अधिकारी प्रदीप शर्मा को फर्जी एनकाउंटर मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है. साल 2006 में गैंगेस्टर छोटा राजन के एक कथित सदस्य लखन भैया की एनकाउंटर में मौत हो गई थी. कोर्ट ने प्रदीप शर्मा के साथ 13 अन्य लोगों की भी उम्रकैद की सजा बरकरार रखी, जिनमें से 12 पुलिसकर्मी ( प्रदीप सुरवंशी, विनायक शिंदे, संदीप सरदार, तानाजी देसाई, रत्नाकर कांबले, पांडुरंग कोकम, देवीदास सकपाल, प्रकाश कदम, आनंद पटाडे, नितिन सरपाते, गणेश हरपुडे और दिलीप पलांडे) शामिल हैं. इसमें एक नागरिक भी शामिल है, जिसका नाम हितेश सोलंकी है.

11 नवंबर 2006 को मुंबई के वर्सोवा में नानी-नानी पार्क में लखन भैया उर्फ़ रामनारायण गुप्ता की हत्या कर दी गई थी. मामले में दोषी पाए गए प्रदीप शर्मा ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ के नाम से जाने जाते थे. उन पर लखन भैया और उनके दोस्त अनिल भेड़ा को नवी मुंबई के वाशी स्थित उनके घर से अपहरण करके गोली मारने और पूरे अपराध को एक एनकाउंटर सीन के रूप में दिखाने का आरोप था. लखन की हत्या के बाद भेड़ा को मृत पाया गया था.

जस्टिस रेवती मोहिते और जस्टिस गौरी गोडसे की बेंच ने प्रदीप शर्मा को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। बेंच ने कहा कि गलत तरीके से बंधक बनाना, आपराधिक अपहरण और फर्जी मुठभेड़ के आरोप सच साबित हुए हैं. कोर्ट ने कहा कि यह शर्म की बात है कि अनिल भेड़ा के हत्यारों पर मामला दर्ज नहीं किया गया. इस मामले के मुख्य गवाह की हत्या कर दी गई है. यह उनके परिवार के लिए इन्साफ का मजाक है. अदालत ने मामले में 13 आरोपियों की अपील ख़ारिज कर दी है.

2008 में मजिस्ट्रेट ने दिया था जांच का आदेश

मृतक के भाई और वकील रामप्रसाद गुप्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके बाद फरवरी 2008 को मजिस्ट्रेट ने जांच का आदेश दिया था. सितंबर 2009 में, कोर्ट के द्वारा एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया और मामले की जांच की जिम्मेदारी तत्कालीन पुलिस उपायुक्त IPS अधिकारी के. एम.एम. प्रसन्ना को दी गई.

अप्रैल 2010 में एसआईटी ने मामले में 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था. इसमें कहा गया है कि एक रियल स्टेट एजेंट जनार्दन भांगे ने जॉइंट प्रॉपर्टी ट्रांजेक्शन को लेकर रामनारायण गुप्ता के खिलाफ पूर्व पुलिस अधिकारियों प्रदीप शर्मा और प्रदीप सूर्यवंशी को हत्या की सुपारी दी थी. इसके बाद एनकाउंटर की योजना बनाई गई थी. मार्च 2011 को अदालत में अपनी गवाही से पहले, मामले के मुख्य गवाह अनिल भेड़ा, वाशी में अपने आवास से लापता हो गए. चार दिन बाद उनका शव बुरी तरह जला हुआ ठाणे के मनोर में पाया गया था.

मामले में एक सेशन कोर्ट ने 21 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी लेकिन प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया था. इंस्पेक्टर प्रदीप सूर्यवंशी और दिलीप पलांडे और कांस्टेबल तानाजी देसाई को हत्या का दोषी ठहराया गया। जबकि 18 आरोपी पुलिसकर्मियों को उकसाने के आरोप में दोषी ठहराया गया.

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