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आइए सांपों पर कुछ चिंतन करते हैं.. FT. बाबूलाल दाहिया

Babulal Dahiya

Babulal Dahiya

Indian Snakes In Hindi: हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में एक दिन नांगों को दूध पिलाने का भी होता है जब लोग दीवाल में नाग की आकृति बना उसे दूध पिलाते हैं। वह दिन नाग पंचमी कहलाता है। वैसे प्रत्यक्ष में नाग दूध नही पीता? लेकिन यह पूजा शायद भय के स्थिति में शुरू हुई होगी ? क्योकि बरसात के दिनों में सांप के बिलों में पानी भर जाने के कारण वह बिल से बाहर निकल जाते हैं और लोगों के कच्चे मकानों के चूहों द्वारा बनाए बिलों, घर में रखे गए कन्डे एवं लकड़ी के ढेर में अपना आस्थायी रहवास बना लेते हैं।

साँप अपने रहने केलिए बरसात में हवादार छान्ही छप्पर य कन्डे लकड़ी वाला स्थान क्यो चुनते है? इसका कारण शायद यह है कि हर जन्तु को अपने शरीर का ताप क्रम 37 डिग्री सेल्सियस बनाए रखना जरूरी होता है। मनुष्य और पशु तो गर्मी और बरसात के उमस में बार – बार पानी पीकर उसे ठंडा बना सकते हैं पर साँप बरसात के दिनों में अपने शरीर को 37 डिग्री का कैसे बनाए ? क्योकि वह तो बेचारे सीधे कोई तरल पदार्थ ग्रहण ही नही करते। उनके शरीर में पानी की जो भी मात्रा आती है वह भी चूहों, मेढ़क आदि के खाने से ही।अस्तु उन्हें शरीर में उतना ताप बनाए रखने के लिए बरसात में पूरे शरीर के लिए ही खुले किन्तु सुरक्षित हवा दार स्थान का चयन करना पड़ता है। इसके लिए प्राचीन समय में जब आज जैसे पक्के मकान नही थे तब उन्हें घर का छप्पर, कंडहरा ,लकड़ी की ढेरी आदि शरीर के तापक्रम को सामान्य बनाए रखने के लिए काफी उपयुक्त होते थे।

साँप अकारण किसी को नही काटता? उसका जहर भी प्रकृति ने उसे नटखट चूहे को शांत करने और खाए हुए शिकार की हड्डी पसली आदि गलाने के लिए ही दिया है। पर यदि मनुष्य का हाथ पैर आदि उसके ऊपर पड़ जाता है तो वह काट भी देता है।ऐसी स्थिति में मनुष्य डर के कारण एक ओर तो आकृति बनाकर उसकी पूजा करता है तो दूसरी ओर घर में साँप के आजाने पर उसे मौत के घाट भी उतार देता है। जब कि साँप के बचने का तरीका यह है कि कही हाथ पैर रखने के पहले अच्छी तरह से देख लें।

मनुष्य की इस गैर सोची समझी मनोबृत्ति में सदियों से बेचारे ऐसे साँप भी मारे जाते रहे हैं जो पूरी तरह विषहीन हैं। जिस तरह आज साँप की अनेक जातियाँ समाप्त होने की स्थिति में हैं तो हमे गम्भीरता से सोचने समझने की जरूरत है कि —
“साँप हमारे शत्रु नही मित्र हैं। उन्हें प्रकृति ने जमीन में 8-10 बिल बना कर अपना वंश सम्बर्धन कर रहे चूहों को नियंत्रित करने के लिए बनाया है तो वह कर रहे हैं। उनकी जनसंख्या रोकने का काम हमें नही प्रकृति ने नेवले को दे रक्खा है। सीधी बात यह है कि जिस प्रकार साँप का भोजन चूहा है उसी प्रकार नेवले का भोजन साँप है तो वह उसे मार कर खाए। हम अकारण साँप को मार नेवले के भोजन को बर्बाद क्यो करे?”

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