वामपंथी राजनीति:क्या है वामपंथ?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए 17 अप्रैल को असम और त्रिपुरा के दौरे पर पहुंचे।त्रिपुरा में उन्होंने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वामपंथी पार्टियों ने त्रिपुरा को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया था और जब त्रिपुरा में सी.पी.एम. और कांग्रेस सत्ता पर थी यहाँ भ्रष्टाचार फल फूल रहा था.उन्होंने कहा कि सतही तौर पर ऐसा लग सकता है कि कांग्रेस और वामपंथी एक दुसरे के विरोधी हैं लेकिन असल में दोनों की विचारधारा एक ही है.

वामपंथ, आपने अक्सर राजनीतिक गलियारे में इस विचारधारा का नाम जरूर सुना होगा।मन में सवाल भी आया होगा कि आखिर ये है क्या।वामपंथी,कम्युनिस्ट,लिबरल इन सब को हम अक्सर एक ही फ्रेम में सेट कर देते हैं.हालाँकि ये सारी विचारधाराएं एक दुसरे से मेल खाती हैं लेकिन इनमे अंतर भी हैं जैसे कम्युनिज्म या साम्यवाद एक इक्वल सोसाइटी की बात करता है यानि समाज के हर तबके के पास उसकी जरुरत के हिसाब का पैसा हो.ये पूँजीवाद का कट्टर विरोधी है और हर तरह की प्राइवेट प्रॉपर्टी के खिलाफ।वहीँ लिबरल फ्री मार्केट के पक्षधर हैं. लेफ्ट या वामपंथ की बात करें तो ये एक ब्रॉडर टर्म है.इसे ऐसे समझिये कि वामपंथ एक अम्ब्रेला है जिसके अंदर कम्युनिज्म लिबरलिस्म आदि आ सकते हैं.

लेफ्ट यानि वामपंथ का ओरिजिन हुआ अठारवीं शताब्दी में French Revolution के दौरान ,आज के समय में लेफ्ट और राइट दोनों अहम राजनीतिक विचारधाराएं हैं लेकिन इनकी शुरुआत मात्र सिटिंग अरेंजमेंट के कारण हुई थी.इसके बारे में विस्तार से जानेंगे लेकिन उससे पहले एक नज़र फ्रेंच revolution पर डालनी जरुरी है ताकि हमे समझने में आसानी हो.french revolution से ही लिबर्टी,इक्वलिटी और फ्रेटर्निटी जैसे कांसेप्ट निकल कर आये.इसके आइडियाज ने भारत में भीमराव अम्बेडकर जैसे समाज सुधारक और intellectuals को प्रभावित किया था.लेट 18th सेंचुरी में फ्रांस की सोसाइटी तीन हिस्सों में बंटी हुई थी टॉप पर थी clergy class यानि पादरी जो चर्च से जुड़े हुए थे.फिर थी नोबल क्लास यानि रॉयल फॅमिली और आखिर में थे किसान और मजदूर।इस hierarchy या क्लास डिवाइड को एस्टेट भी कहते थे.जैसे फर्स्ट एस्टेट क्लर्जी ,फिर सेकंड एस्टेट नोबिलिटी और थर्ड एस्टेट किसान और मजदूर .थर्ड एस्टेट जनसँख्या में ज्यादा थी और बाकि के दोनों एस्टेट कम लेकिन सारा पैसा और लक्ज़री इन दो वर्गों के पास सिमटा हुआ था और तीसरा वर्ग गरीबी,और टैक्स की चपेट में दबा हुआ था.इनके पास कोई भी राजनीतिक और सामाजिक अधिकार नहीं थे.ये एक अँधेरे का युग था और इन सब को ईश्वर का विधान बता कर लोगों का शोषण हो रहा था लेकिन धीरे धीरे बढ़ते इस शोषण और जब स्थितियां ऐसी हो गयी कि खाने के लिए भी लोग मोहताज हो गए और उन्होंने इन सब के बीच अपने शासकों को आय्याशियाँ करते देखा तब उन्होंने विरोध किया।छोटे स्तर पर विरोध की शुरुआत हुई जो बाद में चल कर पूरे यूरोप में फैलने लगी.बाद में इसमें कई इंटेलेक्चुअल शामिल हुए,कई फिलॉस्फर्स और लेखक जैसे Jean-Jacques Rousseau.जिनके विचारों ने फ्रांस की क्रांति में एहम भूमिका निभाई थी.इन सब के कारण फ्रांस में ज्ञानोदय का युग आया जिसे अंग्रेजी में एज ऑफ़ एनलाइटनमेंट कहते हैं और बाद में पूरे यूरोप पर इसका असर देखा गया .इसमें स्वतंत्रता,तर्कसंगत और लोकतान्त्रिक विचारों को जगह मिली।

1789 में फ्रांस में एस्टेट्स जनरल की स्थापना हुई जो फ्रांस में चल रही समस्याओं के समाधान के लिए थी.ये एस्टेट जनरल बाद में चल कर नेशनल असेंबली बनी.गौर करने वाली बात ये है कि यहाँ वो लोग जो अरिस्टोक्रेसी यानि राजा के शासन को ही सही मानते थे और इसका समर्थन करते थे वो बैठे थे राइट साइड में और जो परिवर्तन,व्यक्ति की स्वतंत्रता,अधिकारों और,राजनीतिक स्वतंत्रता का समर्थन करते थे वो बैठे लेफ्ट में और जो न्यूट्रल थे वो बैठे सेंट्रल में.यहीं से लेफ्ट और राइट का कांसेप्ट आया जो बाद में चल कर एक राजनीतिक विचारधारा बन गयी

19वीं सदी के दौरान लिबरल और कन्सेर्वटिवे ये दोनों विचारधाराएं उठीं।LIBERALISM स्वतंत्रता,फ्री मार्केट और कम सरकारी दखल की बात करता है वहीँ गौर करने वाली बात ये है कि लेफ्ट से जोड़ी जाने वाली विचारधारा कम्युनिज्म फ्री मार्केट की धुर विरोधी है.वहीँ CONSERVATIVES की बात करें तो ये वो लोग हैं जो पुराने विचारों पर विश्वास रखते हैं,सोशल आर्डर को बनाए रखना चाहते हैं और चाहते हैं कि जो पुरातन व्यवस्था है वो बची रहे।

यहाँ एक बात साफ़ है कि लेफ्ट कोई देश विरोधी नहीं बल्कि एक प्रोग्रेसिव विचारधारा के रूप में जन्मी थी.क्रांतिकारी भगत सिंह खुद एक बड़े लेफ्टिस्ट थे,वो कम्युनिज्म और कार्ल मार्क्स से प्रभावित थे लेकिन भगत सिंह से बड़ा देशभक्त शायद ही सदियों में कोई हुआ होगा।फिर ये कौनसा वामपंथ है जो आज हम देख रहे हैं! जो प्रोग्रेसिव होने के नाम पर मात्र एक धर्म को टारगेट करता है.भगत सिंह तो किसी धर्म पर मानते ही नहीं थे.मैं नहीं कहती कि लेफ्ट का होना या लिबरल होना मतलब नास्तिक ही होना है.समस्या है कि ये आइडियोलॉजी अब धार्मिक स्फेयर में आकर संकुचित होती जा रही है जिससे जाहिर सी बात है कि ये प्रोपोगंडा सी प्रतीत होने लगी है.क्यूबा के क्रन्तिकारी और कम्युनिस्ट चे गुएवारा ने एक स्पीच में खुले तौर पर कहा था Motherland or Death यानि मातृभूमि या मृत्यु और आज का खुद को तथाकथित लिबरल और लेफ्टिस्ट कहने वाला वर्ग धर्म की आग में हाथ सेंकते हुए अपनी सोफिस्टिक्टैड लाइफस्टाइल में मात्र हाई फाई बातें कर के खुद की ओर ध्यान आकर्षित करने में संघर्षरत है और इसकी पहली शर्त है कि वो सबसे पहले देश को गरियाए .हिंदी के मशहूर व्यंगकार हरिशंकर परसाई बुद्धिजीवियों पर तंज कसते हुए कहते हैं कि बुद्धिजीवी बार बार हमारा ध्यान किताबों की ओर आकर्षित करने की कोशिश करता है, वो चाहता है कि हम चकित हों और पूछें अरे ये कौनसी किताब है,हमने तो इसका नाम भी नहीं सुना! इधर आप चकित होने में देरी करते हैं उधर बुद्धिजीवी परेशान हुआ जाता है और हरिशंकर परसाई ने ब्रह्मणवाद को भी जमकर उधेड़ा है.मेरा तो मानना है कि ये है लिबरल आइडियोलॉजी,कोई पक्षपात नहीं और सही और गलत में कैसा पक्षपात !किसी भी वाद से जुड़ कर उसमे एकदम दृढ़ हो जाना मात्र कट्टरता और अहंकार को पोषित करता है और वैसे भी नागार्जुन ने कहा था कि क्या दक्षिण क्या वाम,जनता को रोटी से काम.

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