दस साल बाद लोकसभा में होगा नेता प्रतिपक्ष, जानिए क्यों इतने साल खाली रहा ये बेहद अहम पद, क्या है नियम आइये जानते हैं विस्तार से …

Leader of Opposition

Leader of Opposition in Lok Sabha after 10 years: लोकतंत्र की मजबूती के लिए मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है। जिसका नेतृत्व नेता प्रतिपक्ष करता है। सदन के अलावा भी कई संवैधानिक व्यवस्थाओं में नेता प्रतिपक्ष की अहम भूमिका होती है। सीबीआई डायरेक्टर, सीवीसी, लोकपाल और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में प्रधानमंत्री के साथ नेता प्रतिपक्ष भी होते हैं। लेकिन लोकसभा के पिछले दो कार्यकाल में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार रही है। इस दौरान किसी दूसरी पार्टी ने इतनी सीट हासिल नहीं कर पाई थी कि नेता प्रतिपक्ष बन सकें। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। अब सवाल यह उठता है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए कितनी सीटों की जरूरत है? दरअसल नेता प्रतिपक्ष के लिए कुल सीटों यानि 543 की संख्या का 10 फीसदी यानि 55 सीटों का होना जरूरी है। इस बार कांग्रेस को 99 सीटें मिली हैं। इसलिए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद कांग्रेस के संसदीय दल के नेता को मिलेगा। बतादें कि पिछली दो लोकसभा में काम सीटों की वजह से कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल पाया था।

स्पीकर ने तय की थी संख्या, एक्ट में कहीं नहीं
नेता प्रतिपक्ष का मसला काफी पुराना है। 1952 में हुए पहले आम चुनाव के बाद जब लोकसभा का गठन हुआ तब 10 फीसदी सीटें मिलने के बाद नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिए जाने का नियम शुरू हुआ था। इसके लिए तत्कालीन लोकसभा स्पीकर जीवी मावलंकर ने यह नियम तय किया था। लेकिन 1977 में जब नेता प्रतिपक्ष वेतन भत्ता कानून बनाया गया। तो उसमें कहा गया कि सरकार के विरोधी दल का नेता उसे माना जाएगा जिसकी संख्या सबसे अधिक होगी। इस एक्ट में कहीं नहीं लिखा हुआ है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए कुल सीटों की संख्या का 10 फीसदी सीटें होना जरूरी है।

स्पीकर ने कांग्रेस को नहीं दिया था नेता विपक्ष का दर्जा
बतादें कि इसके पहले 16वीं लोकसभा में कांग्रेस को 44 सीटें और 17वीं लोकसभा में भी 52 सीटें आई थीं। 16वीं लोकसभा में तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस के नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने से इनकार कर दिया था। इसके लिए उन्होंने अटॉर्नी जनरल से सलाह ली थी। जिस पर अटॉर्नी जनरल ने 1977 के कानून का परीक्षण किया। जिसके बाद कहा कि नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने का मामला 1977 के दायरे में नहीं आता है। इसका फैसला स्पीकर को लेना है और यह उनका अधिकार है। जिसके बाद लोकसभा में कांग्रेस नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था। इस घटनाक्रम के बाद जब 17वीं लोकसभा में कांग्रेस की 52 सीटें आईं तो उसने नेता प्रतिपक्ष का दावा पेश नहीं किया।

इस बार कांग्रेस का आंकड़ा काफी आगे
इस बार तो कांग्रेस का आंकड़ा 55 सीटों से काफी आगे है। इस बार कांग्रेस सीटें 100 के आसपास हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेता को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी मिलेगा और वह सदन में मजबूती से अपनी बात भी रख पाएंगे। इसके साथ ही वो तमाम कमेटियां जिसमें नेता प्रतिपक्ष मेंबर होते हैं उसमें उनके नेता रहेंगे और रचनात्मक तरीके से ठोस भूमिका निभा पाएंगे।

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