पौराणिक कथा- आखिर स्वर्णनगरी लंका कैसे बन गई श्रापित नगरी

Pauranik Katha Hindi mein: लंका के श्रापित होने की कथा के अनुसार, पार्वती ने लंका को श्राप दिया था कि एक दिन यह नगरी जलकर राख हो जाएगी। यह श्राप पार्वती ने इसलिए दिया था क्योंकि ऋषि विश्रवा ने महादेव से दक्षिणा के रूप में लंका मांग ली थी, जो पार्वती के लिए बनाई गई थी। इस श्राप के फलस्वरूप लंका की सुंदरता और समृद्धि धीरे-धीरे नष्ट होने लगी। रावण के अत्याचार और अन्याय के कारण भी लंका की स्थिति खराब हुई। अंत में भगवान राम और रावण के बीच हुए युद्ध में लंका जलकर राख हो गई, जिससे पार्वती के श्राप का फल पूरा हुआ।

देवी लक्ष्मी ने देवी पार्वती को दिया ताना

कथा है एकबार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी, भगवान शिव-पार्वती से मिलने कैलाश गए। भगवान शिव चूंकि तपस्वी थे, इसीलिए निवासादि के लिए कोई भी वृहद भवन नहीं था, और ऊपर से कैलाश हिमक्षेत्र था तो वहाँ की ठंड से देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। इसीलिए वह देवी पार्वती से बोलीं- आप राजकुमारी होकर कैसे यहाँ रहती हैं, आपको तो महलों में रहना चाहिए। भोलेनाथ से कह कर आप एक महल बनवा लीजिए, आप कभी बैकुंठ आइए।

वैकुंठ के वैभव को देखकर देवी पार्वती के मन में उठी महल बनवाने की इच्छा

देवी लक्ष्मी और भगवान श्रीहरि के निमंत्रण पर एकबार भगवान शिव माता पार्वती के साथ वैकुंठ गए। चूंकि बैकुंठ देवी लक्ष्मी और श्रीहरि का निवास स्थान था। इसीलिए वैभव से परिपूर्ण था। उसे देखकर देवी पार्वती के मन में भी ऐसे ही वैभवशाली निवास स्थान की इच्छा जागी, ऊपर से देवी लक्ष्मी ने उन्हें फिर से महल बनवाने के लिए भोलेनाथ से कहने के लिए कहा।

देवी पार्वती ने भगवान शिव से बताई अपनी इच्छा

बैकुंठ से आने के बाद देवी पार्वती ने भगवान शिव ने भगवान शिव से अपनी इच्छा बताई और एक बहुत ही खूबसूरत महल बनवाने का आग्रह किया। लेकिन भगवान शिव ने इस बात से इंकार कर दिया और देवी पार्वती को समझाया योगियों के लिए महल नहीं बनते हैं, वैसे भी हमारे भाग्य में महलों में निवास करना नहीं लिखा है, इसीलिए महल नहीं बनवा सकते, लेकिन देवी पार्वती जिद पर ही अड़ी रहीं। जब देवी पार्वती बहुत समझाने के बाद भी नहीं मानी और जिद पर अड़ी रहीं, तब भगवान शिव ने महल निर्माण का फैसला लिया।

भगवान शिव ने करवाया स्वर्ण नगरी का निर्माण

देवी पार्वती की जिद को मानते हुए भगवान शिव ने एक स्वर्ण नगरी के निर्माण करवाने का फैसला किया, उन्होंने देव शिल्पी विश्वकर्मा को आदेश दिया कि वह एक भव्य स्वर्ण नगरी का निर्माण करें। विश्वकर्मा ने समुद्र के द्वीप के बीच में स्थित तीन पर्वतों के मध्य एक नगर का निर्माण किया। कुछ सोर्स कहते हैं दानवराज मय ने भी इस नगर के निर्माण में देवशिल्पी की मदद की थी।

विश्रवा ने मांगा दान स्वरूप

भव्य महल के निर्माण के बाद भगवान शिव ने इस महल में प्रवेश से पहले एक गृहप्रवेश की पूजा रखवाई, गृहप्रवेश की पूजा के लिए आचार्य नियुक्त किया गया महर्षि पुलतस्य के पुत्र विश्रवा को, ऋषि विश्रवा ने विधिवत शिव-पार्वती को गृहप्रवेश करवाया और भगवान शिव के आग्रह पर दक्षिणा लेने को तैयार हुए। ऋषि विश्रवा और उनकी पत्नी कैकेशी के मन में इस स्वर्णनगरी के लिए लालच भर गया था।

जब देवी पार्वती ने लंका नगरी को दिया श्राप

उन्होंने लोभवश दक्षिणा में भगवान शिव से लंका नागरी ही मांगने का निश्चय किया, उससे पहले उन्होंने भगवान शिव को प्रतिज्ञाबद्ध करवाया और स्वर्ण नगरी मांग ली। प्रतिज्ञा से बंधे और भक्त वत्सल भोलेनाथ शिव ने यह नगरी ऋषि विश्रवा को प्रदान कर दी। लेकिन देवी पार्वती ऋषि के इस कृत्य से अत्यंत क्रोधित हुईं। उन्होंने क्रोध में ऋषि विश्रवा से कहा- तुमने लालच में आकर जिस नगरी को दक्षिणा में मांगा है, यह नगरी मेरी अभिलाषा और स्वप्न थी, अगर यह मेरी ना हुई तो यह किसी की भी नहीं होगी। इसीलिए एक दिन यह नगरी नष्ट हो जाएगी। यहाँ रहने वाला व्यक्ति का कुलसहित सर्वनाश हो जाएगा।

विश्रवा ने अपने पुत्र कुबेर को दी लंका

माना जाता है ऋषि विश्रवा ने यह नगरी अपने बड़े पुत्र कुबेर को दे दी, कुबेर देवताओं के कोषाध्यकक्ष थे। वह यहाँ अपने परिवार सहित रहते थे। लेकिन कालांतर में कुबेर का सौतेला भाई रावण अपने मामाओं के उकसावे में आकर, अपने भाई से यह नगर छीन लिया। बाद में कुबेर के निवास के लिए भगवान शिव ने कैलाश के नीचे अल्कापुरी नगर का निर्माण करवाया।

रावण का कुलसहित हुआ विनाश, नष्ट हुई लंका नगरी

अपने सौतेले भैया कुबेर से लंकापुरी और पुष्पक विमान छीनने के बाद राक्षसराज रावण अपने पुत्रों और कुटुंब सहित यहाँ रहने लगा। कालांतर में उसने भगवान राम की भार्या देवी सीता का हरण किया, जिसके बाद भगवान रामचन्द्र अपने भाई लक्ष्मण और विशाल वानर सेना के साथ आए, और राक्षसराज रावण को उसके कुटुंब सहित वध कर डाला। उससे पहले रामदूत हनुमान ने इस पूरे नगर को जलाकर राख कर दिया था।

इस तरह देवी पार्वती का श्राप फलीभूत हुआ और लंका नगरी और रावण अपने कुल सहित विनाश को प्राप्त हुआ

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