‘Lamhe’ Film Story In Hindi: ‘लम्हे’ फिल्म, उन लम्हों की गिरफ्त में, उलझे उस युवक की कहानी है जो बूढ़ा हो चुका है और अब वो उस नज़ारे से भी डरता है। जिन्हें कभी वो अपनी आग़ोश में लेना चाहता था ,पर कैसे क्यों ?
‘लम्हे’ फिल्म की कहानी
ये युवक है वीरेन जो जवानी में लंदन से राजस्थान, अपने पैतृक घर जाता है, जहां उसकी दाई जान उसे पल्लवी नाम की लड़की से मिलवाती हैं और वीरेन पहली नज़र में उसे दिल दे बैठता है। और वो इज़हार ए मोहब्बत करता, इससे पहले ही उसे पता चलता है कि पल्लवी किसी और से प्यार करती है, इस बीच पल्लवी के पिता का देहांत हो जाता है। और वीरेन ही पल्लवी की शादी की ज़िम्मेदारी निभाता है। वीरेन के प्यार से अंजान पल्लवी उसे शादी के बाद भी, अपना सच्चा दोस्त मानती है। एक दिन वीरेन को पता लगता है कि पल्लवी मां बनने वाली थी, और घर आ रही थी, तभी उसका और उसके पति का एक्सीडेंट हो गया है। जिसमें पल्लवी का पति, तो उसी वक्त गुज़र जाता है। लेकिन पल्लवी बेटी को जन्म देने के बाद गुज़र जाती है और परवरिश की ज़िम्मेदारी दाई जान को ही दे जाती है। पल्लवी की बेटी ‘पूजा’ वीरेन की हवेली में ही पलती है। बड़ी होती है, लेकिन वीरेन उसका सामना कभी नहीं करता। ये सोचकर कि उसके दुनियां में आते ही, पल्लवी इस दुनिया से चली गई।
ख़ैर वीरेन पल्लवी की यादों को दिल से मिटाने की बहोत कोशिश करता है, मगर उसे भुला नहीं पाता और इस तरह अठारह साल बीत जाते हैं। पूजा के दिल में वीरेन से मिलने की ललक बढ़ते बढ़ते प्यार में बदल जाती है और वीरेन की नज़र जब पहली बार उस पर पड़ती है। तो वो ये देखकर हैरान रह जाता है, कि वो हुबहू पल्लवी जैसी है, पूजा वीरेन की पर्सनालिटी से बहुत प्रभावित होती है। यहां तक कि उसके हल्के सफेद होते बाल भी उसे बहुत प्यारे लगते हैं। और वीरेन से मिलने के बाद पूजा को लगने लगता है, कि वीरेन भी उसे दिल ही दिल में प्यार करता है। और ये ग़लत फहमी उसकी और भी बढ़ जाती है, जब वो अपनी मांग भरी सजी धजी तस्वीरें वीरेन के कमरे में देखती है। और जब वो वीरेन से इस प्यार को कुबूल करने की बात करती है, तो वो उसे सच्चाई बताता है, कि दरअसल वो उसकी मां से प्यार करता था और इसकी खबर उसकी मां यानी पल्लवी को भी नहीं थी। इस पर पूजा वीरेन को समझाती है, कि एक तरफा प्यार, प्यार नहीं होता लेकिन वीरेन नहीं मानता वो कहता है, कि वो इसलिए भी उसके लायक नहीं है, कि अब वो उसकी तरह जवान नहीं है और उसे छोड़कर चला जाता है। पर पूजा कहती है कि जैसे वो अपने पहले प्यार के नाम पूरी ज़िंदगी कर चुका है। वो भी अपने पहले प्यार के नाम पूरी ज़िंदगी कर देगी, भले ही दुनिया इसको बर्बादी समझे पर वो खुद को बर्बाद कर लेगी। तब वीरेन उसकी ज़िद के आगे घुटने टेक देता है, उम्र के फासले को भी भूल जाता है, उसके पास लौट आता है और इन लम्हों को ही सच मानता है। जो उसके पास हैं, ज़िंदगी की सच्चाई को समझता है, कि खुशियों से भरे लम्हे ही ज़िंदगी को रवानी देते हैं। जो लम्हे हमें दुख देते हैं वो केवल हमें क़ैद करते हैं उस अफसोस का बाइस बनते हैं जो कभी खत्म नहीं होता।
श्रीदेवी और यश चोपड़ा की साथ में दूसरी फिल्म थी लम्हे
22 नवंबर 1991 को रिलीज़ हुई, लम्हे फिल्म का निर्देशन और निर्माण यश चोपड़ा ने किया है, कहानी है हनी ईरानी की और संवाद लिखे हैं राही मासूम रज़ा ने, जिनकी ये आखिरी फिल्मों में से एक थी। इस फिल्म में श्रीदेवी ने अपने चुलबुले और शोख़ अंदाज़ में माँ और बेटी दोनों के किरदार निभाए हैं। हीरो हैं अनिल कपूर साथ ही वहीदा रहमान, अनुपम खेर, दीपक मल्होत्रा और डिप्पी सागू भी महत्वपूर्ण सहायक भूमिकाओं में हैं। ये फिल्म चांदनी (1989) के बाद श्रीदेवी और यश चोपड़ा के बीच दूसरी फिल्म है। यश राज फिल्म्स के बैनर तले बनी, लम्हे की शूटिंग राजस्थान और लंदन में दो शेड्यूल में की गई थी। फिल्म को देखकर श्रीदेवी की एक्टिंग और खूबसूरती की तारीफ किए बिना कोई नहीं रह सका।
फिल्म को मिले अनेकों पुरस्कार
अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, लम्हे ने 39वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन का पुरस्कार जीता नीता लुल्ला, काचिन्स और लीना दारू ने। इसके अलावा, 37वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में, फिल्म को 13 नामांकन प्राप्त हुए, और इसने शीर्ष 5 पुरस्कार जीते- सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए यश चोपड़ा ने, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बनीं (श्रीदेवी), सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता चुने गए (अनुपम खेर), सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए ( हनी ईरानी) और सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए (मासूम रज़ा )को अवॉर्ड दिया गया।
कुछ ख़ास बातें और आपको बताते चलें फिल्म लम्हें के बारे में
आउटलुक की बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में लम्हे को शामिल किया गया। लम्हे फिल्म में प्रसिद्ध पैरोडी सीक्वेंस में, वहीदा रहमान ने “आज फिर जीने की तमन्ना है” पर नृत्य किया – जो कि(1965) की सर्वकालिक क्लासिक गाइड का उनका सिग्नेचर गीत है। फिल्म के गीत लिखे हैं आनंद बख्शी ने, संगीत शिव कुमार शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया ने दिया जिन्हें शिव-हरि के नाम से जाना जाता है।
फिल्म के सुपरहिट गीत
“कभी मैं कहूं” गीत यश चोपड़ा जी की ही फिल्म चांदनी में पृष्ठभूमि संगीत के लिए इस्तेमाल की गई धुन से बना था , जिसे भी शिव-हरि ने ही संगीतबद्ध किया था। इसके अलावा गीत हैं- “ये लम्हे ये पल”,”मोहे छेड़ो ना” ,”मोरनी बागा मा बोले” और “चूड़ियां खनक गईं”, “कभी मैं कहूं”,”मेघा रे मेघा रे”, “याद नहीं भूल गया”,”गुड़िया रानी”,”मेरी बिंदिया” इन गीतों में आवाज़ें हैं-लता मंगेशकर, इला अरुण, सुरेश वाडकर और हरिहरन की। राजस्थान का गुड़ गान करते हुए “म्हारे राजस्थान मा” के बोलों को आवाज़ दी है मोईनुद्दीन ने। यादों को ताज़ा करता पैरोडी गीत, जो है, पमेला चोपड़ा और सुदेश भोंसले के युगल स्वर में। तो वक़्त के आसमान से गिरा एक भी लम्हा, ज़ाया न जाने दें और इसकी खूबसूरती को बयां करती फिल्म, लम्हे जब भी जी चाहे देख कर आनंद के पल गुज़ार लें, क्योंकि लम्हों से ही एक दास्तां बनती है।