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Lal Bahadur Shastri News : जिनके कहने पर देश में लोगों ने किया उपवास

Lal Bahadur Shashtri Birthday: पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन साल 1966 में तासकंद में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। शास्त्री जी का कद भले ही छोटा था, जीवन भले ही सादा रहा हो। लेकिन देश के लिए उन्होंने हमेशा सबसे आगे रहकर काम किया।

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Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: बचपन में कभी ना कभी आपसे एक सवाल जरूर किया गया होगा कि ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा किसने दिया था? कभी शिक्षकों ने तो कभी परिवार के सदस्यों ने ये सवाल किया होगा। कई बार गांव-देहात में ट्रैक्टरों के पीछे ‘जय जवान, जय किसान’ लिखा होता है। तब अगर आपको जवाब पता रहा होगा तो आपने कहा कि यह नारा लाल बहादुर शास्त्री का है। उन्हीं लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है। 11 जनवरी 1966 तो ताशकंद में उनका निधन हो गया था। शास्त्री जी के जीवन पर आधारित कई फिल्में हैं। कहीं उनकी मौत को नेचुरल तो कहीं साजिश बताई जाती है। हालांकि शास्त्री जी जब तक जिए ईमानदार रहे। 

जब देश ने किया उपवास

आपको बता दे कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के वो प्रधानमंत्री भी रहे। उनकी सादगी और ईमानदारी का हर कोई कायल है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। तो उस समय देश में अनाज की बारी किल्लत हो गई थी। उस दौरान उन्होंने देशवासियों से अपील की थी कि सप्ताह में केवल एक दिन सभी लोग उपवास रखें। कहते हैं ना कि किसी नियम को अगर दूसरों पर लागू करना हो तो उसका प्रयोग पहले खुद पर करना होता है। शास्त्री जी ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने इस उपवास की शुरुआत अपने परिवार से ही की। सबसे पहले अपने पूरे परिवार को उन्होंने दिनभर भूखा रखा, इसके बाद पूरे देश से अपील की। इसका असर ये हुआ कि पूरे भारत में एक दिन का उपवास लोग रखने लगे। 

मुगलसराय में हुआ था शास्त्री जी का जन्म

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का  का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। बता दें कि उनका बचपन संघर्षों से भरा हुआ था। उनके पिता की मौत काफी पहले हो गई थी। अपने स्कूल जाने के लिए उन्हें गंगा नदी को पार करना पड़ता था। नाव वाले को किराया देने के पैसे भी नहीं थे। इस कारण वो अपने किताबों को सिर में बांध लिया करते और नदी को तैरकर  पार कर जाते। इसके बाद वो तैर कर वापस भी आते थे। बता दें कि जब वो प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने एक कार खरीदी। फिएट की कार खरीदने के लिए उन्होने बैंक से 5 हजार रुपये का लोन लिया था। साल 1965 में उन्होंने इस कार को खरीदा। हालांकि उनका एक साल बाद ही निधन हो गया। आज यह कार उनके दिल्ली स्थित निवास पर खड़ी है। बाद में इस कार के लोन को उनकी पत्नी ने अपनी पेंशन से चुकाया। 

शास्त्री जी का कार्यकाल

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के वो प्रधानमंत्री भी रहे। उनकी सादगी और ईमानदारी का हर कोई कायल है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। तो उस समय देश में अनाज की बारी किल्लत हो गई थी। उस दौरान उन्होंने देशवासियों से अपील की थी कि सप्ताह में केवल एक दिन सभी लोग उपवास रखें। कहते हैं ना कि किसी नियम को अगर दूसरों पर लागू करना हो तो उसका प्रयोग पहले खुद पर करना होता है। शास्त्री जी ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने इस उपवास की शुरुआत अपने परिवार से ही की। सबसे पहले अपने पूरे परिवार को उन्होंने दिनभर भूखा रखा, इसके बाद पूरे देश से अपील की। इसका असर ये हुआ कि पूरे भारत में एक दिन का उपवास लोग रखने लगे। 

अमेरिका को दिया था करारा जवाब

भारत तब गेहूं के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था. तब लाल गेंहू अमेरिका से निर्यात होता था और जॉनसन ने धमकी दी थी कि अगर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध नहीं रोका गया तो गेंहू भी भारत नहीं भेजा जाएगा. स्वाभिमानी शास्त्री को यह दिल में चुभी थी. उन्होंने विदेशी मुल्क के आगे हाथ फैलाने से इंकार कर दिया और भारतवासियों से हफ्ते में एक समय भोजन नहीं करने का आह्वान किया था लेकिन इससे पहले उन्होंने अपने घर में एक समय का खाना बनाने से मना किया था. जब उनके खुद के बच्चे एक समय भूखे रह पाए तो उन्होंने अगले दिन देशवासियों से इसका अनुसरण करने की अपील की थी.

उनके आदर्श इतने ऊंचे थे कि 1963 में कामराज योजना के तहत जब उनको नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था तब उन्होंने अपने घर पर बिजली जलाना बंद कर दिया था. सिर्फ जहां वह बैठे होते थे वहां पर लाइट जलती थी. वह सरकारी खर्चे से बिजली जलाना नहीं चाहते थे और पूरे घर की बिजली का खर्च उठाने की गुंजाइश उनके पास नहीं थी. इसलिए घर में बेहद सीमित जगह पर बिजली जलती थी.

ऐसा ही एक किस्सा ताशकंद सम्मेलन का है जब लाल बहादुर शास्त्री सोवियत संघ गए थे. वह अपना खादी का ऊनी कोट पहनकर गए थे. तब सोवियत संघ के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोश्यिन ने उनको एक गर्म कोट भेंट किया था लेकिन शास्त्री ने खुद वह कोट पहनने के बजाए अपने दल के उस साथी को दे दिया था जिसके पास कोट नहीं था. कड़ाके की सर्दी में शास्त्री अपने साधारण ऊनी कोट में ही रहे थे.

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