चित्रकूट। चित्रकूट में धनतेरस-दीवाली पर दीपदान का गहरा धार्मिक और पौराणिक महत्व है। इसके अनुसार, लंका विजय के बाद भगवान राम ने मंदाकिनी नदी में दीपदान किया था, जिसके बाद से यह परंपरा शुरू हुई। इस दीपदान का महत्व जीवन के अंधकार को दूर कर सुख-समृद्धि के प्रकाश को लाना है, और यह पांच दिवसीय दीपदान मेले के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
प्रभु श्री राम ने अपने वनवास काल के 11.30 वर्ष बिताए थें
धर्म नगरी चित्रकूट प्रभु श्री राम की तपोस्थली रही है. यहां प्रभु श्री राम ने अपने वनवास काल के 11.30 वर्ष बिताए थे। उन्होने यहां पर अपने निवास के दौरान शक्ति अर्जित की, जिसका उपयोग उन्होंने रावण को हराने के लिए किया। लंका में विजय प्राप्त करने के बाद भगवान श्री राम चित्रकूट पहुचे और मंदाकिनी नदी में दीप दान किया था। यही वजह है कि हर वर्ष चित्रकूट में भगवान के लोखों भक्त चित्रकूट में पहुच कर दीप दान कर रहे है।
ऐसी है मान्यता
दीपावली पर दीपदान करके श्रद्धालु राम के अयोध्या लौटने के आनंद और इस तपोभूमि के महत्व को मनाते हैं, तो माना जाता है कि मंदाकिनी नदी में दीपदान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और अमावस्या के अंधकार की जगह पूर्णिमा का प्रकाश आता है। श्रीराम द्वारा शुरू की गई यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और आज भी लाखों भक्त इस धार्मिक अनुष्ठान को करने के लिए चित्रकूट पहुच रहे हैं।
5 दिन का है उत्सव
चित्रकूट के दीपोत्सव प्रतिवर्ष 5 दिन का होता है। ऐसे में चित्रकूट के दीपोत्सव में लाखों की तादाद में श्रद्धालु चित्रकूट की नगरी पर पहुंचते हैं। चित्रकूट में आयोजित होने वाला विश्व का सबसे बड़ा आयोजन माना जाता है, जिसमें देश-दुनिया से लोग आते हैं। चित्रकूट मेले में इस साल 30 लाख श्रद्धालुओं के पहुचने की संभावना है।

