देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या 2015-2023 में 1.65 करोड़ थी, लेकिन 2022-23 में घटकर 1.57 करोड़ हो गई
नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महामारी (PANDEMIC) के कारण सात साल में देश में अनौपचारिक क्षेत्र में करीब 16.45 लाख नौकरियां खत्म हो गई हैं। सरकारी आंकड़ों में यह बात सामने आयी। इसके मुताबिक, 2022-23 में देश में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या 16.45 करोड़ थी। जो की करीब 1.5 फीसदी घटकर 10.96 करोड़ रह गई।
अनिगमित उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार
नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा की गई और जुलाई 2017 में जीएसटी लागू किया गया। इसी तरह मार्च 2020 में देश में कोरोना महामारी ने दस्तक दी। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 2015-16 के बाद पहली बार ये डेटा प्रकाशित किया। मंत्रालय ने 2021-22 और 2022-23 के लिए अनिगमित उद्यमों पर डेटा प्रकाशित किया है। अनिगमित उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASUSE) के अनुसार, 2015-16 में अनिगमित उद्यमों की संख्या 6.33 करोड़ थी। जो 2022-2023 में बढ़कर 6.50 करोड़ हो गई। यानी यह संख्या 16.56 हजार बढ़ गयी।
अनौपचारिक रोजगार में वृद्धि हुई
नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना से सबसे ज्यादा नुकसान अनौपचारिक क्षेत्र को हुआ है। महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और ओडिशा में 2015-16 और 2022-23 के बीच अनौपचारिक रोजगार में वृद्धि हुई। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में गिरावट आई है। देश के अनौपचारिक क्षेत्र के लगभग दो-तिहाई श्रमिक इन 10 राज्यों में हैं।
अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में वृद्धि
अध्ययन से पता चलता है कि देश के 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 16 में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में पिछले अध्ययन की तुलना में 2022-23 में गिरावट आई है। पिछला अध्ययन 2019 में हुआ था और इसमें 2015-16 का डेटा शामिल था। लेकिन उन्होंने यह भी दिखाया कि महामारी के तुरंत बाद की अवधि में अधिकांश राज्यों में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या 2015-2023 में 1.65 करोड़ थी, लेकिन 2022-23 में घटकर 1.57 करोड़ हो गई। 2021-22 में राज्य में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या 1.30 करोड़ थी। पश्चिम बंगाल में भी यही स्थिति थी।