ClimateChange:मध्य प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान पोर्टल की परिभाषा के मुताबिक औसत तापमान, बारिश, बर्फबारी आदि मौसम के विभिन्न आयामों में होने वाले दीर्घकालिक परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती के तापमान में होने वाली बढ़ोतरी बारिश की औसत मात्रा में बदलाव लाती है, इससे समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी हो जाती है। साथ ही इंसान, जानवरों और वनस्पतियों पर भी उसका असर होता है।इसे ऐसे समझिये कि जलवायु का अर्थ होता है लम्बे समय तक किसी क्षेत्र का औसत मौसम और जब इस क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो इसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं.WHO की क्लाइमेट चेंज पर एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 से 2050 के बीच में 2 लाख 50 हज़ार मौतें हर साल होंगी जलवायु परिवर्तन के कारण। जिस गति से जलवायु परिवर्तन हो रहा है अगर स्थिति वही रहती है तो आने वाले समय में सी लेवल 10 से 20 सेंटीमीटर बढ़ेगा,एक्सट्रीम हीट वेव्स के कारण फारेस्ट फायर जैसे इन्सिडेंट्स बढ़ते जाएंगे,ग्लेशियर के पिघलने से जो हालात होंगे उसके उदाहरण दिखने लगे हैं.इसके बारे में डिटेल में बात करेंगे।उससे पहले ज़िक्र कर लेते हैं लद्दाख में चले 21 दिन के प्रोटेस्ट का.प्रोटेस्ट को लीड कर रहे थे पर्यावरणविद और शिक्षक सोनम वांगचुक ये वही हैं जिनपर 3 इडियट्स नाम की फिल्म ही रच दी गयी.इसमें इनका नाम दिया गया था फ़ुंशुक वांगडू।इस फिल्म में इन्हे जितनी सराहना मिली उतना ही विरोध सोनम वांगचुक को इस प्रोटेस्ट में झेलना पड़ा.धर्म विरोधी,सरकार विरोधी और न जाने क्या क्या लेकिन ये वही सोनम वांगचुक हैं जिन्होंने अगस्त 2014 में जब लद्दाख की एक झील ग्लेशियर पिघलने के कारण ओवरफ्लो करने लगी तब इन्होने एक तकनीक जिसे साइफनिंग कहते हैं उसका सुझाव दिया था उस वक्त इनकी बाद न सुनते हुए इसमें ब्लास्ट कर दिया गया था जिसके वजह से बड़े स्तर पर जान माल का नुकसान हुआ था.वहीँ फिर सिक्किम में जब इस तरह के हालात बने थे तब इन्ही सोनम वांगचुक से साइफनिंग की इस तकनीक के बारे में सुझाव माँगा गया था.एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 365 में से 314 दिन एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स वाले रहे हैं और आप खुद देखिये अगर इन सारी रिपोर्ट्स को साइड में रख दें तो मौसम में हो रहे बदलावों को हम खुद देख सकते हैं.अभी मार्च का महीना चल रहा है लेकिन जिस तरह की धूप है वो मई जून की गर्मियों की याद दिलाती है.ठण्ड कोई इतनी पड़ती नहीं है.बेमौसम बारिश।ये सब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.ऐसे में लद्दाख का मुद्दा सिर्फ वहीँ तक सीमित नहीं है.चुनाव आने हैं,भारत में चुनावों और किसी बड़ी फिल्म के रिलीज़ से कहीं कहीं ज्यादा जरुरी ये मुद्दा मात्र किसी के लिए ऑफेंड होने तो किसी के लिए सरकार पर निशाना साधने का जरिया बन गया क्योंकि कोई इसके पार देखने की कोशिश नहीं कर रहा है.जो समस्या इन सब के भीतर है उसे सोचने समझने के लिए हिम्मत चाहिए और सबसे बड़ी बात अगर हम हिम्मत जुटा भी लेते हैं उसके बाद समस्या निवारण के लिए बहुत कुछ करना होगा.ये समाधान का दूसरा चरण होगा और दुःख की बात है कि अभी हम पहले चरण तक भी पहुंचने में खुद को सहज महसूस नहीं करते।उसपर बात हर मुद्दे पर,हर विषय पर धार्मिक और राजनीतिक हो जाती है.ये बेहद थकाने वाला है.एकदम साधारण शब्दों में. सोनम वांगचुक का प्रोटेस्ट लद्दाख में हो रहे पर्यावरणीय नुकसान के खिलाफ था.
इसके अंदर चार मुख्य मांगें थीं लद्दाख को भी विधानसभा मिले जिससे उनके खुद के लोकल रिप्रेजेन्टेटिव हों.देखिये, लद्दाख का पर्यावरण बेहद FRAGILE है.उसके अंदर क्षमता नहीं है कि वो विकास के नाम पर हो रहे विध्वंश और कुछ रईसजादों की हवस को झेल सके.यहाँ रहने वाले 97 फ़ीसदी लोग ट्राइबल हैं.यहीं से बात करेंगे हम इनकी दूसरी मांग की जो है लद्दाख को संविधान की छठीं सूची में लाया जाए.इस अनुसूची के अनुच्छेद 244 और 275 के अंतर्गत संविधान में ऐसे जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष अधिकारों का प्रावधान है.देश के चार राज्य असम,मेघालय,त्रिपुरा और मिजोरम इसके भीतर आते हैं.इसके तहत ऐसे क्षेत्रों को कुछ ऑटोनोमी दी जाती है और बेहद वाजिब है.इस तरह के क्षेत्रो की अलग मांगें हैं.कोई ऐसा व्यक्ति संस्था या सरकार कैसे बेहतर डिसिशन ले सकते हैं जिनका वहां से वास्ता तक नहीं है.उन्हें कोई बताने वाला, जगह को रिप्रेजेंट करने वाला चाहिए।वो भी तब जब मामला किसी ऐसे क्षेत्र का हो जो अपनी खूबसूरती के लिए देश का प्रतिनिधित्व करता हो.ग्लोबल टूरिज्म में अहम हिस्सेदारी रखता हो और खुद जब धारा 370 को हटाया गया इस फैसले का स्वागत हुआ क्योंकि लद्दाख को वो रिप्रजेंटेशन नहीं मिल रहा था लेकिन उस वक्त लद्दाख को 6 वीं अनुसूची के तहत विशेष अधिकारों का वादा भी किया गया था लेकिन उन सब पर अमल नहीं किया गया ।अब सवाल है कि लद्दाख की जनसँख्या बेहद कम यानि 3 लाख के आसपास है ऐसे में एक स्टेट का दर्जा इसे नहीं दिया जा सकता।दृष्टि आईएएस के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति ऐसा ही कुछ कहते हैं लेकिन वो ये बात भी मानते हैं कि लोकल लेवल पर पावर बढ़ाना जरुरी है. मामले के समाधान के लिए वो 73 रवें संवैधानिक संसोधन के जरिये पंचायती राज के नियमों को बेहतरी से लागू करने की बात करते हैं.हाँ, फिर बात यही है कि ये बेहतरी से इम्प्लीमेंट हों और इतना ही नहीं केंद्र स्तर पर इनकी आवाज उतनी ही मुखरता से सुनी जाए.प्रोटेस्ट की अन्य दो मांगें थीं पब्लिक सर्विस कमीशन को लद्दाख में लाया जाए और लद्दाख में एक और संसदीय सीट बढ़ाई जाये।एक रिपोर्ट के मुताबिक लद्दाख में ग्लेशियर पिघलने के कारण झीलें और तालाब खतरनाक स्तर पर भर गयी हैं.निचले इलाकों में लगातार बाढ़ का खतरा बना हुआ है.जोशीमठ का उदाहरण हमारे सामने है.वेदांत मर्मज्ञ,IIT,IIM पासआउट,और एक्टिविस्ट आचार्य प्रशांत का इस विषय पर पूरा वीडियो आप की आंखें खोल देगा।वो कहते हैं कि जो कुछ भी हो रहा है उसके रिजल्ट्स सिर्फ कुछ सालों में दिखेंगे और सबसे पहले इसकी सजा जो सबसे गरीब है वो भुगतेगा और उससे भी ज्यादा जो बेजुबान हैं जानवर फूल पौधे इन सब पर आपदाओं का पहाड़ टूटेगा।हम सोच भी नहीं सकते हैं कि हमे 50 से 55 डिग्री तापमान में रहना पड़े.यानि तकनीक की सारी व्यवस्थाएं तक चरमरा जाएं।लद्दाख हिमालय का हिस्सा है और आधी से ज्यादा आबादी हिमालयन रिवर्स पर आश्रित है.सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जलवायु से जुड़े जितने भी इन्सिडेंट्स हैं उनमे से 44 फ़ीसदी हिमालयन रीजन में होते हैं.यही नहीं जिस GDP की हम बात करते हैं और जिसको विकास का पैमाना ठहराते हैं क्लाइमेट चेंज के कारण भारत ने 8 फ़ीसदी का जीडीपी लॉस देखा है और आने वाले दशकों में ये 35 फ़ीसदी तक हो जाएगा।यानि जिस विकास के लिए आप लगातार बिना सोचे समझे अंधाधुंध जंगलों की कटाई,नदियों पर घाटों का निर्माण करते जा रहे हैं उससे आने वाले समय में न नदियां बचेंगी न पहाड़ और न जीवन और ये सब बातें कोई अतिशोक्ति नहीं बल्कि तथ्य,आंकड़े और आपका अपना जीवन इसका उदाहरण है हाँ,अब आपको आंखें बंद रखनी है या खुली ये आपका चुनाव है.
इंडिया टाइम्स की एक खबर थी जिसमे बताया गया था कि सड़कें पिघल रहे थीं.आप देखिये लेबर यानि मजदूरी का जो भी काम है वो दिन में ही तो होता है.बढ़ता तापमान इस हद तक पहुँच जाएगा कि आने वाले समय में लेबर वर्क हो ही नहीं पाएगा।इकनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक लेबर एक्टिविटी अगली सदी तक 40 फीसदी तक कम हो जाएगी। साल 2050 तक क्लाइमेट चेंज के कारण 1.2 बिलियन Climate Refugees पैदा हो जाएंगे यानि ऐसे लोग जो जलवायु परिवर्तन के कारण बेघर हो जाएंगे यानि GEOPOLITICS पर खासा प्रभाव।सोचिये क्या मंज़र होगा जब बड़ी ताकतें आपस में जूझेगी।
इन सब से कुछ सवाल खड़े होते हैं.
क्या विकास की परिभाषाएं मात्र प्रकृति के दोहन की शर्तों पर गढ़ी जाएंगी?
क्या हम झूठे धार्मिक अहंकार में इतने अंधे हो गए हैं कि सही और गलत की पहचान ही नहीं रही है!
और आखिरी सवाल
क्या हम तैयार हैं आने वाले विनाश को झेलने के लिए.क्योंकि प्रकृति को न आपकी विचारधारा से मतलब है,न जाति से न ही धर्म से. वो पूरी तरह से निष्पक्ष है.