रीवा में कुमुद मिश्रा ने ली आईटीएम ग्वालियर छात्रों की मास्टरक्लास

Chitrangan International Film and Theater Festival Rewa 202

Chitrangan International Film and Theater Festival Rewa 2024: आपने कभी सोचा है कि जो लोग अभिनय के माध्यम से हमारे सामने एक तस्वीर खींच देते हैं, और हम उनके साथ ऐसे हो लेते हैं. जैसे हमारे आसपास का ही कोई किरदार हो. ऐसे कैसे वो हमें या हमारी भावनाओं को जान पाते हैं, क्या वो हमारी ज़िन्दगी के हर पहलू से परिचित होते हैं, या फिर जो हम पर बीती वही उनपर बीत रही होती है? जो हमें किसी किरदार से इतना जुड़ाव महसूस होने लगता है।

Krishna Raj Kapoor Auditorium Rewa live: तो आइये जानते हैं कि अभिनय क्या है? और इसके लिए आज से बेहतर मौका क्या हो सकता है. जब हमारे शहर रीवा के कृष्णा राज कपूर ऑडोटोरियम में अभिनय के महारथी बॉलीवुड इंडस्ट्री से कुमुद मिश्रा पधारे हों, मास्टर क्लासेज के जरिए अभिनय के गुण सीखाने। जहां हम भी पहुंचे तो आइये हम आपको वो बताते हैं जो हमने उनसे जाना।

एक्टिंग करियर की शुरुआत कैसे हुई?

वो कहते हैं कि अभिनय क्या होता है ये मैंने अपने पिता जी से ही जाना। मुझे यु लगता था कि भावों को महसूस करने की उनमे अद्भुत शक्ति है. वो रामचरित मानस पढ़ते हुए देवों की मनो दशा को इस तरह अनुभूत करते थे की रो दिया करते थे. उन्होंने कहा अगर मेरे पिता जी मुंबई गए होते हैं तो वो मेरे से ज्यादा बढ़िया एक्टर होते।

AI के बारे में उन्होंने क्या कहा?

उनसे पूछा गया कि आज के आधुनिक दौर में AI के आने से क्या फर्क पड़ेगा अभिनय की दुनिया में क्या कलाकारों की वैल्यू कम हो जाएगी तो उन्होंने जवाब दिया कि अभिनय एक कला है जो कलाकार को भावनाओं से जोड़ती है। ये मशीन या तकनीक के जरिए संभव ही नहीं है.

न्यू कमर्स के साथ एक्टिंग करने का अपना अनुभव बताए

नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं होता है, एक्टर पुराना हो या नया, वह अपनी क्षमता से ही काम करता है. कभी काम अच्छा हो जाता है, कभी अच्छा नहीं हो पाता. यह सब के साथ होता है. मैं सभी उम्र के एक्टर्स के साथ कंफर्ट रहता हूं, और मेरा मानना है कि अगर आपको अच्छा अभिनय करना है तो आपके अंदर इंसानियत होना बहुत ज़रूरी है अगर आप दुनिया को जानेंगे और इंसान के जज्बातों को समझेंगे या उसकी क़द्र करेंगे तो आप उन भावनाओ को आत्मसात करके अभिनय कर पाएंगे।

घटनाएं छूट जाती है, भाव साथ रहते है

अभिनेता कुमुद मिश्रा ने कहा कि गांव, कस्बे से लेकर महानगर तक का जीवन जिया है। उसका अनुभव मुझे मेरे काम में मदद करता है। जब कोई किरदार करता हुं तो मुझे पता भी नहीं होता कि कब पिता, कोई रिश्तेदार, मित्र उस किरदार में शामिल हो जाते है। पढ़ने के शौक के बारे में कहा कि जितना पढ़ पाता हुं, पढ़ता हुं, लेकिन अजीब बात है कि भूल जाता हुं। सिर्फ भाव रह जाता है। घटनाएं छूट जाती है।

किताबें अभिनव में कितनी मददगार हैं?

इमोशन ही साथ रहता है। मुझे लगता है कि किताबों के साथ समय बिताना जरुरी है। किताबें हमें जीवन देती है। भाषा के बारे में उन्होंने कहा कि अब भाषा अर्थ खोती जा रही है। संवाद करने के लिए हमें कोशिश करना पड़ती है। उन्होंने कहा यहां जितने लोग बैठे हैं ईमादारी से बताए कितने लोग पिछले छह महीने में कोई भी बुक पढ़ी हो. आप जितनी किताबें पढ़ोगे

थिएटर के बाद फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने का संघर्ष कैसा रहा?

मुझे नहीं लगता मेरी पास ऐसी कोई कहानी है। सच कहूं तो मैंने संघर्ष ही नहीं किया अगर मेरा स्ट्रगल रहा है तो वह खुद के काम से रहा है। जो काम मुझे दिया हुआ है उसे मैं कितने ईमानदारी से कर पाता हूं यही मेरा संघर्ष है। मुंबई में सरवाइवल का किसी प्रकार का स्ट्रगल नहीं रहा। अगर रहा भी है तो मुझे इसका एहसास नहीं हुआ है और यह प्रोफेशन मैंने चुना था तो संघर्ष का सवाल ही नहीं उठता।

ये तो हुई वो बातें जो हमने जानी कुमुद मिश्रा से अगर आप भी सीखना चाहते हैं अभिनय के गुण तो पहुचें चित्रों के आँगन, चित्रांगन में जो आज यानि 21 से 23 फरवरी तक आयोजित किया जा रहा है.

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