Author: Jayram Shukla | कृष्ण वास्तव में जगत गुरु हैं। भूगोल, इतिहास, धर्म-संप्रदाय देश-काल से ऊपर अखिल विश्व में उनके भक्त, उनकी महिमा के व्याख्याकार हैं। बर्बर मध्ययुग में जब मुस्लिम बादशाह मठ-मंदिरों को ढ़हा रहे थे, सद्ग्रन्थों की होलियां जला रहे थे ऐसे दौर में भी कई मुस्लिमों ने विद्रोह कर कृष्ण भक्ति में ही अपना मोक्ष देखा।रहीम ने अकबर से विद्रोह किया और तुलसीदास के सानिध्य में चित्रकूट में आ रमे। यह परंपरा अमीर खुसरो से शुरू हुई और अबतक चलती चली आई। रसखान जैसे भक्तकवियों ने कृष्ण की बाललीला का ऐसा प्रभावी वर्णन किया कि वे सूरदास की तरह अमर हो गए। अनगिनत मुस्लिमों ने कृष्ण की शरण में आकर अपनी मुक्ति समझी और एक से एक नज्में, पद और कविताएं रचीं.. जिनमें से यहां कुछ उल्लेखित हैं।
Krishna Janmashtami 2024
आज समूचा यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया कृष्ण भक्ति में तल्लीन है। स्वामी श्रील प्रभुपाद का इस्कॉन आधुनिक युग का सबसे प्रभावी भक्ति आंदोलन है जिसकी ध्वजा गौरांग भक्तों के हाथों में है। प्रभु श्रीकृष्ण की भक्ति परंपरा समूचे एशिया में जहाँ-तहाँ है। कहीं प्रकट रूप में तो कही व्यक्तिशः।
वामपंथी साहित्यकार अली सरदार जाफरी ने तो यहां तक लिखा- यदि दुनिया कृष्णतत्व को समझ लें तो सबका कल्याण हो जाए, युद्ध की पिपासा शांति में बदल जाए।
कृष्ण ही सर्वेश हैं..जगत के नाथ..जगन्नाथ..।
यहां पढ़िए कुछ कृष्णभक्त मुस्लिम विद्वानों की रचनाएं….।
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
– रसखान
यारो सुनो! यह दधि के लुटैया का बालपन।
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन॥
मोहन सरूप निरत करैया का बालपन।
बन-बन के ग्वाल गोएँ चरैया का बालपन॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन।।
ज़ाहिर में सुत वह नन्द जसोदा के आप थे।
वर्ना वह आप माई थे और आप बाप थे॥
पर्दे में बालपन के यह उनके मिलाप थे।
जोती सरूप कहिये जिन्हें सो वह आप थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन।।
– नजीर अकबराबादी
आनीता नटवन्मया तब पुर; श्रीकृष्ण! या भूमिका ।
व्योमाकाशखखांबराब्धिवसवस्त्वत्प्रीतयेऽद्यावधि ।।
प्रीतस्त्वं यदि चेन्निरीक्ष्य भगवन् स्वप्रार्थित देहि मे ।
नोचेद् ब्रूहि कदापि मानय पुरस्त्वेतादृशीं भूमिकाम् ।।1।।
(अर्थ)
हे श्रीकृष्ण! आपके प्रीत्यर्थ आज तक मैं नट की चाल पर आपके सामने लाया जाने से चैरासी लाख रूप धारण करता रहा । हे परमेश्वर! यदि आप इसे (दृश्य) देख कर प्रसन्न हुए हों तो जो मैं माँगता हूँ उसे दीजिए और नहीं प्रसन्न हों तो ऐसी आज्ञा दीजिए कि मैं फिर कभी ऐसे स्वाँग धारण कर इस पृथ्वी पर न लाया जाऊँ।
– अब्दुल रहीम
ऊधौ तुम यह मरम न जानो।
हम में श्याम, श्याम मय हम हैं
तुम जाति अनत बखानों
मसि में अंक, अंक अस महियां
दुविधा कियो पयानो।।
– शाह बरकतउल्लाह
अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाए
तो फितनगरों का काम तमाम हो जाए
मिटाएं बिरहमन शेख तफरूकात अपने
ज़माना दोनों घर का गुलाम हो जाए।
– अली सरदार जाफरी