भारत के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंपी।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ (One Nation One Election) पर उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति भवन में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह रिपोर्ट कुल 18,626 पेज की है. 2 सितंबर को इसके गठन के एक्सपर्ट के साथ चर्चा और 191 दिनों की रिसर्च के बाद यह रिपोर्ट सौंपी गई है.
प्रस्तावित रिपोर्ट लोकसभा (Lok Sabha) राज्यसभा (Rajya Sabha) और विधानसभा (Assembly) और स्थानीय निकाय चुनाव (Local Body Elections) कराने के लिए एकल यानी साझा मतदाता सूची पर भी ध्यान खींचती है. अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए अलग मतदाता सूची तैयार की जाती है. वहीं स्थानीय नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में मतदाता सूची होती है.
इस रिपोर्ट के प्रथम चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बारे बताया गया है. दूसरे में नगर निकायों और पंचायतों को लोकसभा-विधानसभा के साथ इस तरह जोड़ने के लिए कहा गया है कि निकायों के चुनावों को लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिनों के अंदर करा लिया जाए.
बता दें कि एक देश एक चुनाव का सीधा मतलब है कि देश में होने वाले सारे चुनाव एक साथ करा लिए जाएं। दरअसल आजादी के बाद कुछ सालों तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ ही होते थे. लेकिन बाद समय से पहले विधानसभा भंग होने और सरकार गिरने के कारण ये परंपरा टूट गई।
वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे:
ब्लैक मनी पर रोक: ‘एक देश एक चुनाव’ के पक्ष में एक तर्क है कि इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है. लेकिन कहा जा रहा है कि यह बिल लागू होने से इस समस्या से बहुत हद तक निजात मिलेगी।
हर साल होने वाले चुनावों से छुटकारा: एक देश एक चुनाव के समर्थन के पीछे एक तर्क ये भी है कि भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं. इन चुनावों के आयोजन में पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन यह बिल लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
ज्यादा खर्च पर रोक: एक देश एक चुनाव बिल लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी। बता दें कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए की धनराशि खर्च हुई थी. पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की रफ्तार भी तेज होगी।