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बुद्ध पूर्णिमा के दिन जानिए गौतम बुद्ध के बारे में सब कुछ

About Gautam Buddha On Buddha Purnima In Hindi: गौतम बुद्ध प्राचीन भारत के एक महान आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक थे जिन्हें बौद्ध धर्म का संस्थापक भी माना जाता है। उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी में हुआ था। गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल में आत्म-ज्ञान प्राप्त करने और मानव जीवन के दुखों से मुक्ति पाने के तरीके खोजे। उनकी शिक्षाएं करुणाए ध्यान और आत्मनियंत्रण पर केंद्रित थीं। गौतम बुद्ध की शिक्षाएं आज भी दुनिया भर में प्रासंगिक हैं और उनका प्रभाव विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों पर देखा जा सकता है। उन्हें लाइट ऑफ एशिया अर्थात एशिया का प्रकाश भी कहा जाता है।

जन्म और परिवार | Buddha’s Birth and Family

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का जन्म ईसा के 563 वर्ष पूर्व लुम्बिनी के वनों में हुआ था। उनकी माँ का नाम प्रजापति महामाया था, जो देवदह के कोलीय वंश के राजा अंजन और उनकी पत्नी सुलक्षणा की पुत्री थीं। जबकि उनके पिता थे राजा शुद्धोधन, जो शाक्य गणराज्य के प्रमुख थे। अपने ससुराल कपिलवस्तु से देवदह जा रहीं थीं। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनका विमाता और मौसी प्रजापति गौतमी ने की थी।

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य कुल में हुआ था, शाक्यों को इक्क्षवाकू वंश की शाखा माना जाता है। पुराणों के अनुसार इक्क्षवाकुओं को सूर्यवंश की शाखा माना जाता था। प्राचीन काल में भारत में शासन की दो प्रणाली प्रचलित थीं। एक होती थी राजतांत्रिक और दूसरी थी गणतांत्रिक। शाक्य गणराज्य थे, लेकिन कालांतर में कौशल के राजाओं ने शाक्यों पर विजय प्राप्त कर के कपिलवस्तु को कौशल महाजनपद में मिला लिया था।

विवाह

गौतम बुद्ध का विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ हुआ था। जो देवदह के कोलियवंश के सुपबुद्ध और अमिता की पुत्री थी। बुद्ध जब 16 वर्ष के थे तभी उनका विवाह हो गया था। उनके विवाह के 13 वर्ष बाद ही उनके एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया।

सिद्धार्थ को वैराग्य | Gautam Buddha’s asceticism

कहा जाता है जब बुद्ध का जन्म हुआ था, तभी उनके पिता को किसी भविष्यवेत्ता ने बताया था, ये लड़का या तो बहुत चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या तो बहुत बड़ा वैरागी। इसीलिए उनके पिता ने उनके लिए सारे सांसारिक सुखों का भरपूर प्रबंध किया था। बौद्ध ग्रंथों में कथा है एक बार सिद्धार्थ वसंत ऋतु में सैर पर निकले। रास्ते में ही उन्हें एक वृद्ध, रोगी, मृत व्यक्ति और सन्यासी को देखा। इन्हें देख कर वह जीवन की क्षणभंगुरता और जीवन की सत्यता के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।

उन्होंने महसूस किया बुढ़ापा, रोग और मृत्यु सभी के जीवन में आएंगी और यह दुखों का कारण होता है। और सन्यासी इन्हीं दुखों से मुक्ति के लिए सांसारिक जीवन का त्याग करते है। इन घटनाओं के बाद वैराग्य उनके मन में आ चुका था। उनके मन का वैराग्य बार-बार उन्हें सांसारिक जीवन को त्यागने के लिए प्रेरित कर रहा था। इसी बीच शाक्य गणों में मतभेद भि हो गए, जिसके बाद वह एक रात चुपके से अपनी पत्नी यशोधरा और राहुल को सोता हुआ छोड़कर वन को चल को गए।

सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति | Buddha attains enlightenment

वैराग्य होने और सन्यासी बन कर निकलने के बाद बुद्ध सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वन में रहकर कठोर तपस्या करने लगे। आहार कम करते-करते लगभग बंद कर दिया था, जिसके बाद उनका शरीर सूख कर अस्थि-चर्म का ढांचा मात्र रह गया था। फिर भी उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ और उनका चित्त भ्रमित ही रहता था।

जिस वृक्ष के नीचे बुद्ध तपस्या कर रहे थे, एक दिन उसके पास से ही कई गणिकाएँ नाचते-गाते हुए निकली। उनके गाने का अर्थ था वीणा के तारों को इतना ढीला मत छोडों की उससे सुर ही ना निकले और इतना कसो भी नहीं कि वह टूट जाए। इस गीत को सुनकर गौतम बुद्ध को अपनी गलतियों का एहसास हुआ। सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यधिक कठोर तप की नहीं बल्कि संयमित आहार, विश्राम और निद्रा के साथ जीते हुए भी साधना की जा सकती है।

इसीलिए उन्होंने मध्यम मार्ग क अनुसरण किया और सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए गाँव-गाँव और नगर-नगर भटकने लगे। और एक दिन उन्हें सच्चा ज्ञान मिला भी गया में निरंजना नदी के तट पर एक पीपल वृक्ष के नीचे। उनको यह ज्ञान किसी गुरु से नहीं बल्कि स्वयं से प्राप्त हुआ आत्मबोध था। जिसके बाद वह उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई।

बुद्ध द्वारा प्रथम उपदेश | first sermon by buddha

ज्ञान की प्राप्ति के बाद भी बुद्ध चार सप्ताह तक उस बोधि वृक्ष के नीचे ही बैठे धर्म के स्वरूप के बार में विचारमग्न होकर चिंतन करते रहे और फिर उपदेश देने हेतु यात्रा पर निकल गए और काशी के निकट मृगदाव (सारनाथ) पहुंचे, वहीं पर उन्होंने सर्वप्रथम अपने पांच पूर्व साथियों को उपदेश दिया। इतिहास में यह घटना धर्म-चक्र-प्रवर्तन के नाम से जानी जाती है। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग प्रतिपादित किए। जो उनके शिष्यों और अनुयायियों के धर्म और दर्शन का मूल आधार बना।

गौतम बुद्ध की मृत्यु | Death of Gautam Buddha

गौतम बुद्ध 80 वर्ष की उम्र तक धम्म का उपदेश और प्रचार करते रहे। उनकी की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में ईसा के 483 वर्ष पूर्व कुशीनगर में हुई थी। बौद्धधर्म में यह घटना महापरिनिर्वाण के नाम से जानी जाती है। पालि सिद्धांत के महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार बुद्ध ने 80 वर्ष की उम्र में यह घोषणा की, वह बहुत जल्द ही महापरिनिर्वाण को प्राप्त करेंगे। कथाओं के अनुसार बुद्ध ने आखिरी भोजन कुंडा नाम के लोहार से प्राप्त भेंट का किया था। जिसको खाने के बाद उनकी तबीयत खराब हो गई और कुछ दिनों बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।

बुद्ध के जीवन में पूर्णिमा का महत्व | Significance of Purnima in the life of Buddha

कथाओं के अनुसार बुद्ध के जीवन में पूर्णिमा का बड़ा महत्व है और उनकी जीवन गाथाओं में पूर्णिमा का बहुत ही प्यारा उल्लेख है। माना जाता है बुद्ध का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था, उनको बुद्धत्व भी पूर्णिमा के दिन ही प्राप्त हुआ था और उनकी मृत्यु भी पूर्णिमा के दिन ही हुई थी।

बुद्ध के नाम

बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ था, गौतम गोत्रीय होने के कारण ही गौतम कहा जाता है। कुछ कथाओं को अनुसार उनकी विमाता प्रजापति गौतमी, जिन्होंने उनका लालन-पालन किया था, उनके नाम पर उनका नाम गौतम पड़ा था। इसके अलावा बुद्धत्व प्राप्त होने के बाद उन्हें बुद्ध भी कहा जाने लगा था। उन्हें शाक्यसिम्ह और शाक्यमुनि के नामों से जाना जाता था। उनके शिष्यों द्वारा उन्हें तथागत और भगवान भी कहा जाता था।

गौतम बुद्ध हिंदू धर्म में

हिंदू ग्रंथों और पुराणों में गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का दसवां अवतार कहा है। इनके अनुसार भगवान विष्णु ने असुरों को पथभ्रष्ट करने के लिए शांति का उपदेश देने वाले एक भिक्षु के रूप में जन्म लिया था।

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