किशोरी अमोनकर: भारतीय शास्त्रीय संगीत की अनमोल धरोहर

Kishori Amonkar Biography In Hindi

Kishori Amonkar Biography In Hindi | Nazia Begum | “खुद को भूले बिना आप अच्छा नहीं गा सकते” – यह कहना था किशोरी अमोनकर का, जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी अनूठी और सुंदर शैली से एक नया आयाम दिया। किशोरी अमोनकर एक ऐसी शास्त्रीय गायिका थीं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और समर्पण से संगीत को निरंतर तराशा। वे जयपुर घराने से ताल्लुक रखती थीं और भारत की सबसे प्रमुख शास्त्रीय गायिकाओं में से एक मानी जाती हैं। उनकी आवाज में ख्याल, ठुमरी और भजनों का जादू ऐसा था कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था।

शुरुआती जीवन और संगीत की शिक्षा

किशोरी अमोनकर का जन्म 10 अप्रैल, 1932 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। जब वे सिर्फ 7 साल की थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उनकी मां मोगुबाई कुर्दिकर, जो खुद जयपुर घराने की मशहूर शास्त्रीय गायिका थीं, ने किशोरी और उनके दो छोटे भाई-बहनों का पालन-पोषण किया। किशोरी ने अपनी मां से संगीत की शुरुआती शिक्षा ली। मोगुबाई एक सख्त शिक्षिका थीं और बच्चों को संगीत के वाक्यांश गाकर दोहराने के लिए कहती थीं। शुरुआती दिनों में किशोरी अपनी मां के साथ उनके संगीत कार्यक्रमों में जाती थीं, जहाँ वे तानपुरा बजातीं और उनकी संगत करती थीं।

1940 के दशक में किशोरी ने भेंडी बाजार घराने की अंजनी बाई मालपेकर से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने आगरा घराने के अनवर हुसैन खान, ग्वालियर घराने के शरदचंद्र अरोलकर और बालकृष्णबुवा पर्वतकर जैसे गुरुओं से भी संगीत सीखा। अंजनी बाई ने उन्हें नोट्स के बीच “मींड” (ग्लाइडिंग) की तकनीक सिखाई, जिसे वे अपने गायन में खूबसूरती से इस्तेमाल करती थीं।

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संगीत के प्रति उनका दृष्टिकोण

किशोरी अमोनकर का मानना था कि संगीत में घरानों की कोई सख्त सीमा नहीं होनी चाहिए। वे कहती थीं, “घराना नाम की कोई चीज नहीं है। वहाँ केवल संगीत है। इसे घरानों में बाँधना संगीत को जातियों में बाँटने जैसा है।” उनके लिए संगीत भावनाओं और आध्यात्मिकता का माध्यम था। वे कहती थीं कि शास्त्रीय संगीत में खुद को भूलकर उसमें डूब जाना जरूरी है, तभी आप इसके साथ न्याय कर सकते हैं। उनका मानना था कि संगीत का आधार व्याकरण (अलंकार और राग) समझना है, लेकिन उससे आगे भावनात्मक अभिव्यक्ति को प्राथमिकता देनी चाहिए।

जयपुर घराने में बदलाव और आलोचना

किशोरी ने जयपुर घराने की शैली को आधार बनाया, लेकिन उसमें कई अन्य घरानों की खूबियों को मिलाकर उसे संशोधित किया। उन्होंने अलापचारी को अपनाया और लय व सुर के बीच के सख्त नियमों को शिथिल किया। इस नवाचार के लिए उनकी तारीफ भी हुई और आलोचना भी। पारंपरिक जयपुर घराने की लयबद्ध और संरचनात्मक शैली से हटकर वे भावनाओं पर ज्यादा ध्यान देती थीं। उनका कहना था कि घराने गायक की तकनीक को बाधित नहीं करने चाहिए, बल्कि उसे अपनी शैली विकसित करने की आजादी देनी चाहिए।

गुरु और आत्म-विकास

किशोरी अपनी मां को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा मानती थीं। वे कहती थीं, “गुरु आपको शक्ति देता है, लेकिन आगे बढ़ना आपको खुद ही होगा। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो आप साधारण रह जाएँगे। मेरी मां ने सुनिश्चित किया कि मैं साधारण न रहूँ।” वे अपने गायन को बेहतर करने के लिए अपने रिकॉर्डेड प्रदर्शन सुनती थीं और उसका विश्लेषण करती थीं। उनके लिए संगीत की शिक्षा एक सतत प्रक्रिया थी, जो कभी खत्म नहीं होती।

भावना और आध्यात्मिकता का संगम

किशोरी के लिए संगीत सिर्फ कला नहीं, बल्कि परमात्मा से संवाद था। वे कहती थीं, “मेरे लिए संगीत परमात्मा के साथ बातचीत है। यह एक गहन और केंद्रित संचार है।” उनके गायन में भावना और आध्यात्मिकता का गहरा मेल था, जो सुनने वालों को ऊँचा उठाने का काम करता था। 2010 में, उन्होंने मराठी में “स्वरार्थ रमानी” नाम की किताब लिखी, जिसमें उन्होंने संगीत सिद्धांत और अभ्यास पर अपने विचार साझा किए।

करियर का उतार-चढ़ाव

किशोरी का शास्त्रीय गायन करियर 1960 और 70 के दशक में अपने चरम पर पहुँचा। इससे पहले एक बीमारी के कारण उनकी आवाज प्रभावित हुई थी और उन्हें कुछ समय के लिए गायन छोड़ना पड़ा था। लेकिन इस ब्रेक का इस्तेमाल उन्होंने अपनी शैली को निखारने में किया। वे ठुमरी और भजनों में भी उतनी ही माहिर थीं। उन्होंने फिल्मों में भी गाया, जैसे 1964 की फिल्म “गीत गाया पत्थरों ने” और 1990 की “दृष्टि”। हालाँकि, बाद में उन्होंने फिल्म संगीत से दूरी बना ली, क्योंकि उन्हें लगा कि यह स्वरों से समझौता करता है। उनकी मां भी फिल्म संगीत के खिलाफ थीं और उन्हें तानपुरा छूने से मना करने की धमकी दी थी।

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व्यक्तिगत जीवन और स्वभाव

किशोरी की शादी रवींद्र अमोनकर से हुई थी। उन्हें कभी-कभी “स्वभावहीन” कहा जाता था, क्योंकि वे अपने सम्मान की रक्षा के लिए सख्त थीं और कार्यक्रमों से पहले अकेले तैयारी करना पसंद करती थीं। वे कहती थीं, “मुझे अकेलापन पसंद है, और आप इसमें दखल नहीं दे सकते।” उन्हें प्रेस से बात करना भी पसंद नहीं था। वे महिला कलाकारों के साथ भेदभाव से नाराज रहती थीं और कई बार उन्होंने ऐसे आयोजनों से इनकार कर दिया, जहाँ उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ।

संगीत में योगदान

किशोरी ने कई रागों के लिए बंदिशें बनाईं और पूरे भारत में संगीत पर व्याख्यान दिए। वे “रस की भूमि” पर अपने लेक्चर के लिए मशहूर थीं। उनकी ठुमरी और भजनों ने भी लोगों का दिल जीता।

अंतिम समय और सम्मान

3 अप्रैल, 2017 को 84 साल की उम्र में नींद में उनका निधन हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताया और कहा, “किशोरी अमोनकर का निधन भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए अपूरणीय क्षति है।” उन्हें पद्म भूषण (1987), पद्म विभूषण (2002), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1985) और कई अन्य सम्मानों से नवाजा गया

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संगीतकारों की नजर में किशोरी

तबला वादक ज़ाकिर हुसैन ने कहा कि उनकी राग भूप जैसी प्रस्तुतियाँ ऐतिहासिक हैं। कर्नाटक गायक टी.एम. कृष्णा ने उनकी रचनात्मकता की तारीफ करते हुए कहा, “वे हर बार नया बनाने की कोशिश नहीं करती थीं, बल्कि संगीत के प्रति समर्पण से उसे ताजगी देती थीं।”

किशोरी अमोनकर एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने संगीत को न सिर्फ जिया, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनकी आवाज और विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।

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