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Kishore Kumar death anniversary: किशोर कुमार के कई गाने जो हमारे दिलों में आज भी उनकी याद बनके दीपक की तरह झिलमिलाते हैं

Kishore Kumar death anniversary

Kishore Kumar death anniversary

Kishore Kumar death anniversary: हम उन्हें कैसे याद करें आज बस , जब उन्हें हम कभी भूले ही नहीं , बस उन्हीं की गाई बात को दोहरा देते हैं ,तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं ,शिकवा नहीं ,शिकवा नहीं, तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी तो नहीं, ज़िंदगी नहीं ज़िंदगी नहीं ,ज़िंदगी नहीं…..क्योंकि उनके गाए गीतों में वो तासीर थी कि हर एहसास हर जज़्बा बोलों में यूं घुलता था मानों वो हमारे आपके दिल की ही बात हो बस उसे कहने में वो माद्दा चाहिए था जो किशोर दा ने दे दिया और ये गीत हमारे दिलों में बस गए जैसे:- ओ मेरे दिल के चैन…. ,हमें तुमसे प्यार कितना… ,मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू…. ,कुछ तो लोग कहेंगे… ,मेरे सामने वाली खिड़की में…. ,कहना हैं आज उनसे… ,जीवन से भरी तेरी आँखें …,सागर किनारे दिल ये पुकारे… , ज़िंदगी एक सफर है सुहाना …और भी ऐसे कई गाने जो हमारे दिलों में उनकी याद बनके दीपक की तरह झिलमिलाते हैं।

उनकी ज़िंदगी की बात करें तो किशोर कुमार का जन्म 04 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खण्डवा शहर में वहाँ के जाने माने वकील श्री कुंजीलाल जी के यहाँ हुआ था उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था, किशोर कुमार चार भाई बहनों में चौथे नम्बर पर थे। किशोर कुमार जब इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़े रहे थे तो उनकी आदत थी कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खुद भी खाना और दोस्तों को भी खिलाना, वो ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर कुमार पर जब कैंटीन वाले के पाँच रुपया बारह आना उधार हो गए और कैंटीन का मालिक जब उनको अपने पाँच रुपया बारह आना चुकाने को कहता तो वे कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर गिलास और चम्मच बजा बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में उन्होंने, “पाँच रुपया बारह आना” के बोलों का “चलती का नाम गाड़ी ” फिल्म के गीत में बहुत ही भली-भांति प्रयोग किया और ये गीत आज भी एक सदाबहार नग़्में की तरह हमारे दिलों पे राज करता है,कुछ नया तलाशने की ललक उनमें ऐसी थी कि,हमारे किशोर दा अपने हमसफर में भी जाने क्या तलाश कर रहे थे इसलिए उन्होंने पहली शादी की , बंगाली गायिका और अभिनेत्री रुमा गुहा ठाकुरता उर्फ ​​रुमा घोष के साथ और ये विवाह सम्बन्ध 1950 से 1958 तक चला फिर किशोर दा ने शादी का प्रस्ताव मधुबाला को उस वक्त दिया जब वो बहोत बीमार थीं और किशोर दा ये अच्छे से जानते थे कि वो लाइलाज बीमारी वेंट्रिकुलर सेप्टल डिसीस से पीड़ित है यानी उनके दिल में छेद है जिसे उस दौर में नहीं ठीक किया जा सकता था ,फिर भी उन्होंने अभिनेत्री मधुबाला से घर वालों के खिलाफ जा कर सन 1960 में शादी की। उनके लिए इस्लाम क़ुबूल किया और कहते हैं अपना नाम उसमें करीम अब्दुल लिखवाया। आप दोनों ने फिल्म चलती का नाम गाड़ी (1958) और झुमरू (1 9 61) सहित कई फिल्मों में साथ काम किया।
और वो भी दिन आ गया जब किशोर दा की मोहब्बत की आगो़श में 23 फरवरी 1969 को मधुबाला इस फानी दुनिया को अलविदा कह गईं ।किशोर दा ने तीसरी शादी की योगिता बाली सेे ,जो 1976 से 4 अगस्त 1978 तक चली फिर किशोर कुमार का चौथा और अंतिम विवाह 1980 मे लीना चन्दावरकर से हुआ था।

अब एक नज़र डालते हैं उनके फिल्मी सफर की ओर , किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म शिकारी (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें पहली बार गाने का मौका मिला 1948 में बनी फ़िल्म जिद्दी में, जिसमें उन्होंने देव आनन्द के लिए गाना गाया। किशोर कुमार के एल सहगल के बड़े प्रशंसक थे, इसलिए उन्होंने ये गीत उन की शैली में ही गाया। पर जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला फिर उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘आन्दोलन’ में बतौर हीरो काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई।

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1954 में उन्होंने बिमल राय की ‘नौकरी’ में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपने उम्दा अदाकारी के हुनर से भी हमारा तार्रुफ कर दिया । इसके बाद तो मानो उनकी बेहतरीन फिल्मों का दौर चल पड़ा 1955 में बनी “बाप रे बाप”, 1956 में “नई दिल्ली”, 1957 में “मि. मेरी” और “आशा” और फिर 1958 में बनी थी “चलती का नाम गाड़ी” जिसमें किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया और उनकी अभिनेत्री थी मधुबाला। ये भी मज़ेदार बात है कि किशोर कुमार की शुरुआत की कई फ़िल्मों में जैसे ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में मोहम्मद रफ़ी ने किशोर कुमार के लिए अपनी आवाज़ दी थी और मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया। गीत गाने के लिए किशोर कुमार सबसे पहले एस डी बर्मन के पास गए थे, जिन्होंने पहले भी उन्हें 1950 में बनी फ़िल्म “प्यार” में गाने का मौका दिया था। एस डी बर्मन ने उन्हें फिर “बहार” फ़िल्म में एक गाना गाने का मौका दिया जिसमें कुसुर आप का गाना बहुत हिट हुआ।

शुरू में किशोर कुमार को एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए, लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म “फंटूस” में दुखी मन मेरे गीत गाकर अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एस डी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौके दिये फिर क्या था,आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने ‘मुनीम जी’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘फंटूश’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘गाईड’, ‘ज्वेल थीफ़’, ‘प्रेमपुजारी’, ‘तेरे मेरे सपने’ जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज़ से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया।कहते हैं उन्होंने अपने करियर के दौरान करीब 2700 से अधिक गाने गाए।

किशोर कुमार ने हिन्दी के साथ ही तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी लगभग 700 गीत गाए। किशोर कुमार को आठ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले, उनको पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1969 में अराधना फ़िल्म के गीत “रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना “के लिए दिया गया था। फिर किशोर कुमार ने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज़ दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज़ ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों। किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय किया और 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। फ़िल्म ‘पड़ोसन’ में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे ,गाने में भी” युड लइ युड लइ” के बोलों जैसे नए प्रयोग करते रहे और अपनी खुशमिजा़जी तो कभी अपने हरफन मौला अंदाज़ में पान खाकर “खाई के पान बनारस वाला “जैसे गीतों से हमारा दिल बहलाते रहे।
इसी अंदाज़ के चलते उन्होंने 1975 में देश में आपातकाल के समय एक सरकारी समारोह में भाग लेने से साफ मना कर दिया था जिस पर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला ने किशोर कुमार के गीतों के आकाशवाणी से प्रसारित किए जाने पर पर रोक लगा दी थी । किशोर कुमार ने भारतीय सिनेमा उस स्वर्ण काल में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारे के रूप में स्थापित हो चुके थे। मनोज कुमार किशोर कुमार को लेकर एक यादगार किस्सा सुनाते हुए कहते थे कि उनकी फ़िल्म ‘ उपकार ‘ के लिए किशोर कुमार को गाना गाने के लिए बुलाया तो वो ये कहकर भाग खड़े हुए कि वे तो सिर्फ फ़िल्म के हीरो के लिए ही गाने गाते हैं, किसी खलनायक पर फ़िल्माया जाने वाला गाना नहीं गा सकते लेकिन जब ‘ उपकार ‘ का ये गीत जो था ‘ कसमे वादे प्यार वफ़ा …’ हिट हुआ तो किशोर कुमार मनोज कुमार के पास गए और कहने लगे इतने अच्छे गाने का मौका उन्होने छोड़ दिया। इसके साथ ही उन्होंने ये स्वीकार करने में भी देर नहीं की कि मन्ना डे ने जिस खूबसूरती से इस गाने को गाया है ऐसा तो मैं कई जन्मों तक नहीं गा सकूंगा और अच्छा ही हुआ कि मैने इस गाने को नहीं गाया नहीं तो लोग इतने अच्छे गीत में मन्ना डे की इस खूबसूरत आवाज़ से वंचित रह जाते।

उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण में खण्डवा को याद किया, वे जब भी किसी सार्वजनिक मंच पर या किसी समारोह में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे, गर्व से कहते थे किशोर कुमार खण्डवे वाले, अपनी जन्म भूमि और मातृभूमि के प्रति ऐसी श्रद्धा बहुत कम लोगों में दिखाई देती है। उन के दो बेटे हैं, अमित कुमार रुमा से और सुमित कुमार लीना चन्दावरकर से । लता मंगेशकर के अलावा आशा भोंसले के साथ भी उनके चुलबुले और मस्ती भरे गीत खूब पसंद किए जाते हैं।13 अक्टूबर 1987 को 58 साल की उम्र में वो हमें छोड़ कर चले गए लेकिन वो अपने दिलकश गीतों के ज़रिए हमेशा हमारे दिलों के पास रहेंगे उनकी जगह आज तक कोई नहीं ले पाया ।

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