Khem Chandra Prakash Biography | किशोर-लता को स्टार बनाने वाले संगीतकार की अनसुनी कहानी!

Khem Chandra Prakash Biography

Khem Chandra Prakash Biography In Hindi | आज बात ऐसे संगीत निर्देशक की जिसने फिल्म संगीत को नई दिशा दी उसमें नई परंपरा का सूत्रपात किया , कैसे ? तो चलिए हम आपको बताए देते हैं ,वो गाना तो आपने सुना ही होगा,’ आयेगा आने वाला …’ जी हां महल फिल्म का ये गीत है और इसे संगीत बद्ध किया हमारे इन्हीं संगीतकार ने जिन की वजह से आल इंडिया रेडियो में गायक और संगीतकार का नाम भी बताए जाने की मांग बढ़ी और फिर ये मांग पूरी भी की गई ,इसके बाद जब अनाउसमेंट हुआ इस गाने के लिए तो उसमें बताया गया कि ,महल फिल्म के इस गीत को गाया है लता मंगेशकर ने और संगीतकार हैं खेमचंद्र प्रकाश। इसके बाद से ही एचएमवी को अपने रिकॉर्ड्स में सिंगर का नाम भी शामिल करना पड़ा और ‘गायक का श्रेय’ देने की लड़ाई भी तेज़ हो गई फिर अंततः गायकों की भी जीत हुई ।

क्या ख़ास था इस गाने में

महल फिल्म के इस गाने में लता मंगेशकर की आवाज़ गूंजती हुई सुनाई देती है और ये फिल्म की डिमांड थी क्योंकि एक भटकती आत्मा की सदा बनके एक डर का माहौल गाने के ज़रिए लता जी को पैदा करना था और ये गाना सुनकर ऐसा भय और संशय उत्पन्न हुआ कि नायक अशोक कुमार की तरह हम भी पर्दे पर इधर-उधर उस भटकती आत्मा को ढूंढते हुए नज़र आए जो कभी झूला झूलते तो कभी नाव चलाते दिखती थी। हालांकि उस ज़माने में जब तकनीक इतनी विकसित नहीं थी तब ये इफेक्ट लाना आसान नहीं था लेकिन गाने में ये गूंज लेकर आए खेम चन्द्र प्रकाश जी जिन्होंने लता जी को रिकॉर्डिंग बूथ के दरवाज़े से कमरे के केंद्र में माइक की ओर धीरे-धीरे गाते हुए चलके आने के लिए कहा और हॉरर इफेक्ट देता ये गीत तैयार हो गया और नई तकनीक के साथ ये चलन आगे आने वाली कई थ्रिलर फिल्मों जैसे ‘ मधुमती’ ,’ वो कौन थी ‘ और’ मेरा साया ‘ में देखने को मिला ।

पियानो और शहनाई का किया एक साथ इस्तेमाल

प्रकाश जी ने न केवल हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की धुनों को फिल्म संगीत में प्रयोग किया बल्कि वाद्यों में भी पारंपरिक वाद्यों के साथ वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट को मिलाकर एक नया और मोहक संगीत बनाया है। वो केवल संगीत की समझ ही नहीं रखते थे बल्कि पारखी थे,शास्त्रीय गायक और कथक नर्तक भी थे ये कला ,ये गुण उन्हें अपने परिवार से ही मिला था। जयपुर में 12 दिसंबर, 1907 को पैदा हुए प्रकाश जी के पिता भी , पंडित गोवर्धन प्रसाद एक प्रसिद्ध ध्रुपद वादक और कथक नर्तक थे।

संगीतबद्ध किया लता और किशोर का पहला युगल गीत

लता मंगेशकर और किशोर कुमार की पहली मुलाकात का क़िस्सा तो आपने सुना ही होगा,जब वे दोनों रिकॉर्डिंग स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज जा रहे थे, और रास्ते से किशोर कुमार साहब को अपने पीछे आते देख लता जी को लगा कि किशोर कुमार उनका पीछा कर रहे हैं लेकिन जब दोनों एक ही वक़्त पर स्टूडियो पहुंचे तो प्रकाश जी से पता चला कि वो दोनों ही 1948 की फिल्म ‘ज़िद्दी ‘से अपना पहला युगल गीत ‘ये कौन आया रे’ रिकॉर्ड करने के लिए बुलाए गए हैं, इन दोनों महान कलाकारों को मिलवाने वाले प्रकाश जी ही थे यहां आपको ये भी बता दें कि ‘ ज़िद्दी ‘ फिल्म देव आनंद के पहले बड़े ब्रेक के लिए भी याद की जाती है।

राज दरबारों में प्रस्तुति देते हुए बनें दरबारी गायक

प्रकाश जी बचपन से ही राजस्थान के राज दरबारों में प्रस्तुति देने लगे थे , किशोरावस्था तक पहुंचे तो नेपाल के तत्कालीन राजा के निमंत्रण पर, राज दरबारी गायक बनने के लिए नेपाल चले गए और अगले सात सालों तक, प्रकाश नेपाल में ही रहे और फिर राज दरबार छोड़कर कलकत्ता में एक संगीत निर्देशक के रूप में अपना करियर शुरू किया।

इतनी प्रतिभा के बावजूद नहीं मिल रहा था काम

प्रकाश जी के अंदर इतनी संगीत प्रतिभा होने के बावजूद, कलकत्ता में उनके दिन चुनौतियों से भरे थे उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं मिल रहा था इसलिए वो ऑल इंडिया रेडियो में बतौर कलाकार काम करने लगे, फिर केएल सहगल अभिनीत 1935 की फिल्म देवदास के संगीत निर्देशक तिमिर बरन ने उन्हें सहायक के रूप में चुना और तब प्रकाश जी ने छोटी मगर ज़बरदस्त सफलता का स्वाद चखा।

नौशाद साहब बने उनके संगीत सहायक

प्रकाश जी 1930 के दशक के अंत में कलकत्ता से बम्बई आ गए और यहां उन्हें मिली सुप्रीम पिक्चर्स के बैनर तले बनी स्वतंत्र संगीत निर्देशक के रूप में पहली फ़िल्म ” ग़ाज़ी सलाउद्दीन” जिसमें बतौर संगीत सहायक नौशाद जी ने उनका साथ दिया।
नौशाद साहब ने कहा था कि वो प्रकाश जी के फ़िल्म संगीत में रागों के इस्तेमाल के हुनर से बहुत मुतासिर थे, वो एक महारती थे और 1943 की फिल्म ‘तानसेन ‘ इस महारत का प्रमाण है।

इसी कड़ी में कुछ और फिल्मों का ज़िक्र करें तो याद आती हैं बेहद संगीतमय फिल्में ,’ बैजू बावरा’, ‘ बसंत बहार’ , ‘ संगीत सम्राट’, ‘रानी रूपमती’ और ‘मीरा’ प्रकाश जी ने क़रीब 40 फ़िल्मों में काम किया और उन्हें अपार सफलता भी मिली लेकिन अचानक 10 अगस्त 1950 को सांसे थम गई और ज़िंदगी रुक गई ,कारण था ,लिवर सिरोसिस , उनके जाने से संगीत प्रेमियों को ,फिल्म जगत को गहरा सदमा लगा और सबने यही कहा कि ऐसे न जाते तो जाने और क्या-क्या करते फिल्म जगत के लिए। प्रकाश जी हिट और बेमिसाल गीतों में एक गीत ‘ 1944 की फिल्म ‘ भर्तृहरि ’ से ‘कूकट कोइलिया कुंजन में’ को आप केतन मेहता की 1985 की फिल्म ‘ मिर्च मसाला ‘ में भी सुन सकते हैं, जिसमें एक सीन में इसे एक पुराने ग्रामोफोन पर सुना जाता है , इसके ज़रिए आप उनके अमूल्य योगदान को महसूस कर सकते हैं।

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