khaleda zia Death : शर्मीली हॉउसवाइफ से बन गई पहली महिला PM, फिर बनी Bangladesh की Iron Lady

khaleda zia Death : ‘शर्मिली हाउसवाइफ’ से बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं और फिर पति की हत्या ने खालिदा जिया को आयरन लेडी बना दिया। बांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की, जिनका आज 80 साल की उम्र में निधन हो गया है। जिसके चलते बांग्लादेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया। कल, बुधवार को उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। 

एक नहीं कई बीमारियों से जूझ रही थी खालिद जिया 

बांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का 30 दिसंबर को सुबह 6 बजे ढाका के एवरकेयर अस्पताल में निधन हो गया। वह लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं, जिनमें किडनी, हृदय रोग, निमोनिया, लिवर सिरोसिस, गठिया, मधुमेह और फेफड़ों की जटिलताएँ शामिल थीं। उनकी पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP), ने उनके निधन की पुष्टि की है। उनकी मृत्यु का समाचार पूरे देश में शोक और श्रद्धांजलि की लहर दौड़ गई है।

शर्मीली हॉउसवाइफ थी खालिदा जिया 

खालिदा जिया का जन्म 1945 में पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन सामान्य रहा, लेकिन अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने वह मुकाम हासिल किया, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनका परिवार व्यवसायिक था; उनके पिता इस्कंदर मजूमदार एक सफल बिजनेसमैन थे, और मां तैयबा मजूमदार एक गृहणी थीं। 1960 में, उन्होंने दिनाजपुर गर्ल्स स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद, 1965 तक वह पाकिस्तान आर्मी में कैप्टन जिया उर रहमान के साथ शादी के बंधन में बंध गईं। उस समय वह एक सामान्य हाउसवाइफ थीं, जिनका जीवन परिवार की देखभाल और अपने बच्चों की परवरिश में बीत रहा था।

पति की हत्या के बाद खालिदा ने राजनीति में की एंट्री 

जब 1971 में मुक्ति संग्राम शुरू हुआ, तो जिया उर रहमान ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बगावत की। उस वक्त तक खालिदा राजनीतिक रूप से अनजान थीं। उन्होंने अपने पति की देशभक्ति और साहस को देखा, जिसने उन्हें भी प्रेरित किया। जिया उर रहमान ने कहा था कि वह एक शर्मिली हाउसवाइफ हैं, जो अपने परिवार का पालन-पोषण ही उनकी प्राथमिकता थी। लेकिन जब 30 मई, 1981 को उनके पति जिया उर रहमान की हत्या कर दी गई, तो जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ। इस दुःखद घटना ने खालिदा को राजनीति के मैदान में उतारने का मार्ग प्रशस्त किया।

1984 में खालिदा जिया पहली महिला नेता बनी 

पति की मौत के बाद खालिदा ने अपने पति की विरासत को संभाला। 1984 में, उन्होंने राजनीतिक दुनिया में कदम रखा। वह पार्टी में शामिल हुईं और तुरंत ही अपने नेतृत्व का परिचय दिया। 12 जनवरी, 1984 को उन्हें पार्टी की वाइस-प्रेसिडेंट बनाया गया। कुछ महीनों बाद, 10 मई, 1984 को उन्हें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का चेयरपर्सन चुना गया। इस तरह, वह देश की पहली महिला नेता बन गईं। अपने कठोर संघर्ष और अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर, उन्होंने देश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई।

A20 मार्च 1991 में खालिदा पहली महिला पीएम बनी 

20 मार्च, 1991 को, खालिदा जिया ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उस समय वह पूरे देश की आशाओं का केन्द्र थीं। उनके नेतृत्व में, बांग्लादेश ने आर्थिक और सामाजिक विकास के नए आयाम छुए। वह दोबारा प्रधानमंत्री बनीं, 1996 में, जब वह फिर से देश की सत्ता संभालने में कामयाब रहीं। इस दौरान उन्होंने स्वच्छ प्रशासन, गरीबों के उत्थान और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। उनके समय में, उन्होंने देश के लिए एक ऐतिहासिक फैसला लिया। उन्होंने संविधान में संशोधन कर, निष्पक्ष केयर टेकर सरकार का प्रावधान किया। यह कदम, चुनावों में निष्पक्षता लाने और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए था।

खालिदा जिया तीन बार जेल भी गई 

हालांकि, इस दौरान, उन्हें राजनीतिक विरोधियों और विपक्ष का सामना भी करना पड़ा। 2001 के चुनाव में, उन्होंने फिर से भारी बहुमत से जीत हासिल की। लेकिन, 2007 में सेना समर्थित केयर टेकर सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। 2007-2008 के बीच, खालिदा को जेल में डाल दिया गया। उस समय, भ्रष्टाचार के आरोप भी उनके ऊपर लगाए गए। इन आरोपों को उन्होंने राजनीति का एक हिस्सा माना और अपनी बेगुनाही का दलील दिया। 2018 में, फिर से उन्हें जेल जाना पड़ा, जब उन पर जिया अनाथालय ट्रस्ट में भ्रष्टाचार का आरोप लगा। हालांकि, कोरोना महामारी के दौरान, उन्हें कुछ समय के लिए रिहा कर दिया गया। 6 अगस्त 2025 को, राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए, खालिदा जिया की सजा को माफ कर दिया। यह फैसला उनके जीवन के आखिरी दिनों में आया, जब वह बीमार थीं और उम्र का अंतिम पड़ाव था।

खालिदा जिया का जीवन एक शर्मिली हाउसवाइफ से लेकर, बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का सफर, संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है। 

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