कवि प्रदीप का वह गीत जिसे सुनकर रो पड़े पंडित नेहरु

कवि प्रदीप एक गीतकार और कवि, जिनकी कलम से उस दौर में नगमें निकले वो देश की आजादी के लिए किए जाने वाले संघर्षों का दौर था, गाँधीवाद का दौर था, इसीलिए उन्होंने देश भक्ति से ओत-प्रोत गीतों की रचना की। कवि प्रदीप जिनका पूरा नाम रामचन्द्र नारायणजी द्विवेदी था, उनका जन्म आज के मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के बड़नगर में हुआ था, उनकी प्राथमिक शिक्षा इंदौर और फिर इलाहाबाद से हुई, लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही कविताएँ लिखने लगे और कवि सम्मेलनों में भी भाग लेने लगे थे।

ऐसे ही मुंबई में हुए एक कवि सम्मेलन में उनकी मुलाक़ात ‘बॉम्बे टॉकीज’ के मालिक हिमांशु रॉय से हुई, हिमांशु रॉय ने उन्हें अपनी कंगन नाम की फिल्म में गीत लिखने का ऑफर दिया, 1939 में रिलीज हुई अशोक कुमार और लीला चिटनीस अभिनीत इस फिल्म में कवि प्रदीप ने चार गीत लिखे थे, जो बहुत ही पॉपुलर हुए थे। लेकिन उन्हें प्रसिद्धि मिली 1940 में आई शशिधर मुखर्जी की फिल्म बंधन से, इस फिल्म में भी अशोक कुमार और लीला चिटनीस की जोड़ी थी, इसका संगीत दिया था, सरस्वती देवी ने और इस फिल्म का एक गीत ‘चल चल रे नौजवाँ’ आंदोलनों के दौर के युवाओं के बीच खूब लोकप्रिय हुआ। उसके बाद 1943 में रिलीज हुई फिल्म ‘किस्मत’ से जिसे इंडियन सिनेमा की पहली गोल्डन जुबली हिट माना जाता है, इसमें उनके द्वारा लिखे गए एक गीत “आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों, हिंदुस्तान हमारा है” कि वजह से वह ब्रिटिश सरकार के कोपभाजन बने और उन्हें भूमिगत होना पड़ा था। इसके अलावा भी उन्होंने बहुत सारे फिल्मों पुनर्मिलन, झूला, नया संसार, नास्तिक, जागृति, पैगाम, जय संतोषी माँ के साथ ही और भी कई फिल्मों के लिए उन्होंने गीत लिखे थे।

फिल्मों के गीतों के लिए उन्हें खूब प्रसिद्धि मिली, लेकिन अभी एक और बड़ी प्रसिद्धि उनका इंतजार कर रही थी, ऐसी प्रसिद्धि जिसने उन्हें अमरत्व दे दिया, इसके बाद या पहले भी वह कुछ ना लिखते, तो उनकी ख्याति ऐसे ही बनी रहती। यह गीत था “ऐ मेरे वतन के लोगों” जिसने कवि प्रदीप के साथ ही इसको अपनी आवाज देने वाली लता मंगेशकर को भी अमर कर दिया।

उधार की पेन और सिगरेट की डिब्बी में लिखे गीत के बोल

1962 के भारत-चीन युद्ध के समय की बात है, इस युद्ध में हमारे बहुत सारे सैनिक शहीद हुए थे, चीन से मिली पराजय के बाद देश पीड़ा और उसके निराशा के एक दौर में डूबा हुआ था, एक शाम कवि प्रदीप भी मुंबई के माहिम बीच में टहल रहे थे उनके दिमाग में कुछ पंक्तियाँ आईं, अब टहलने के समय में हाथ में कागज कलम तो थे नहीं, पंक्तियाँ भूल ना जाएँ इसीलिए प्रदीप जी ने एक दूसरे राहगीर से पेन मांगी और अपनी सिगरेट की डिब्बी में यह लाइंस उकेर लीं।

ऐ मेरे वतन के लोगों, वह गीत जिसने लता मंगेशकर और कवि प्रदीप को अमर कर दिया

गीत के बोल थे “ऐ मेरे वतन के लोगों तुम आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी”, उनके दिमाग में एक और ख्याल आया क्यों ना युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवारों की मदद के लिए, गीत लिख कर फंड जुटाया जाए, उन्होंने इसके लिए फिल्म निर्माता महबूब खान को मनाया, इसके अलावा सी. रामचंद्रन को संगीत देने के लिए तैयार किया, जबकि सुप्रसिद्ध संगीतकार और गायक हेमंत कुमार को निर्देशन के लिए चुना गया। प्रदीप यह गीत लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे, लेकिन संगीत देने वाले सी. रामचंद्रन और लता जी के बीच किसी बात को लेकर अनबन थी, इसीलिए वो आशा भोंसले से यह गीत गवाना चाहते थे, लेकिन प्रदीप लता जी के लिए जिद पकड़े थे, इसीलिए लता मंगेशकर को मनाने की जिम्मेदारी, कवि प्रदीप को ही दी गई, लता जी गाने के लिए मान तो गईं, लेकिन शर्त रखी, तभी गाऊँगी जब आप वहाँ उपस्थित भी रहेंगे, प्रदीप इसके लिए तैयार भी हो गए, लेकिन लता जी साथ ही साथ में यह भी चाहती थीं कि इस गाने में आशा भोंसले भी अपनी आवाज दें, ना कहते हुए भी प्रदीप इसके लिए भी तैयार हो गए, तय किया गए इस गीत को दोनों बहनें ड्यूएट में गायेंगी, आशा जी ने पहले तो हामी भर दी थी, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों वश उन्होंने इंकार कर दिया, और गीत को लता जी ने अकेले गाया था।

जब गीत सुनकर रो पड़े प्रधानमंत्री नेहरु

इसकी पहली प्रस्तुति गणतंत्र दिवस के दूसरे दिन अर्थात 27 जनवरी 1963 को नैशनल स्टेडियम दिल्ली में हुई, जहां पर तत्कालीन राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए, लता जी ने बड़े मनोयोग से ये यह गीत गाया, गीत खत्म होते-होते लता जी कुछ भावुक हो गईं, कहते हैं इस गीत को सुनकर पंडित नेहरु की आँखें भी नम हो गईं।

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