Katchatheevu Island Dispute Explained: श्री लंका का कच्चाथीवू द्वीप, इस वक़्त का ट्रेंडिंग टॉपिक बना हुआ है. रामेश्वरम से मात्र 19 किलोमीटर दूर 285 एकड़ में फैला हुआ ये खूबसूरत द्वीप कभी ऐतिहासिक रूप से रामनाद साम्राज्य की जमींदारी हुआ करता था. ये द्वीप कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ने वाला ये द्वीप भारत और श्रीलंका के रिश्तों में दादर भी पैदा करता है. भारत के लोग खासकर तमिलनाडु के लोग इस द्वीप को लेकर बेहद भावुक हैं. इस द्वीप को श्री लंका से वापस लेकर दोबारा भारत का हिस्सा बनाने की भी मांग दशकों से की जा रही है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर किसने कच्चाथीवू द्वीप को श्री लंका के नाम कर दिया? इसकी क्या जरूरत थी और इसके पीछे क्या मकसद था?
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा है. उन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस ने कच्चाथीवू द्वीप श्री लंका को गिफ्ट में दे दिया। कांग्रेस ने 75 सालों में भारत की एकता-अखंडता को कमजोर करने का काम किया है.
Katchatheevu Island India Vs Sri Lanka Dispute: दरअसल तमिलनाडु के भाजपा चीफ अन्नामलाई ने कच्चाथीवू द्वीप को लेकर एक RTI लगाई थी. इस रिपोर्ट से एक बहुत बड़ा तथ्य सामने निकलकर आया. रिपोर्ट में बताया गया कि 1974 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने श्री लंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक समुद्री सीमा का समझौता किया था और इस डीड के बदले श्री लंका को भारत के हिस्सा रहे कच्चाथीवू द्वीप सौंप दिया था. दावा किया गया कि इंदिरा गांधी ने तमिलनाडु लोकसभा कंपैन के चलने ये समझौता किया और श्रीलंका को ये द्वीप गिफ्ट में दे दिया।
पीएम मोदी ने सबसे पहले कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा तब उठाया था जब सदन में विपक्षी दलों ने मणिपुर मामले में उनपर देश को तोड़ने का आरोप लगाया था. तब पीएम ने जवाब देते हुए कहा था कि विपक्ष के लोगों से पूछिए कच्चाथीवू द्वीप क्या और कहाँ है? तमिलनाडु के आगे और श्रीलंका के पीछे एक टापू को किसने, किसी दूसरे को दे दिया? क्या वो भारत मां का अंग नहीं था? इंदिरा गांधी की सरकार ने भारत को इस द्वीप से अलग करने का काम किया और अब DMK वाले मुझे चिट्ठी लिखते हैं कि मोदी जी कच्चाथीवू को वापस ले आइये।
कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास
History Of Katchatheevu Island: दरअसल कच्चाथीवू द्वीप की कहानी 14वीं शताब्दी से शुरू होती है. तब एक ज्वालामुखी के विस्फोट से श्री लंका और भारत के समुद्री हिस्से में 285 एकड़ के एक द्वीप ने आकर लिया था. ये द्वीप 17वीं सदी में मदुरई के राजा रामनाद की जमींदारी के अधीन हुआ करता था. जब भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आई तो ये भूभाग भी मद्रास प्रेसिडेंसी के हिस्से में आ गया. 1902 में अंग्रेजों ने रामनाथपुरम साम्राज्य की जमीन छीन कर उन्हें ही वापस पट्टे में दे दी. देश की आजादी के बाद सरकारी दस्तावेजों में यह द्वीप भारत का हिस्सा बताया गया लेकिन श्रीलंका इसपर अपना दावा ठोंकता रहा. और 1974 में इंदिरा गांधी ने यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया। इंदिरा गाँधी ने भारत की जमीन दूसरे देश को उपहार में देदी।
कच्चाथीवू द्वीप विवाद क्या है?
इंदिरा गांधी और श्रीलंका के बीच हुए इस समझौते का तमिलनाडु सरकार ने विरोध भी किया था. तब तत्कालीन सीएम एम करूणानिधि ने इंदिरा गांधी को पत्र लिख इस भूभाग के ऐतिहासिक महत्त्व से भी वाकिफ कराया था. लेकिन तबतक श्री लंका इसपर अपना कब्जा जमा चुका था. इस समझौते के तहत कच्चाविथु में भारतीय मछुआरों को मछली पकड़ने और जाल सुखाने की इजाजत दी गई थी. लेकिन 1976 में हुए दूसरे समझौते में कहा गया कि भारतीय मछुआरे और मछली पकड़ने वाले जहाज श्रीलंका के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में नहीं जा सकते। समझौते ने कच्चाथीवू द्वीप विवाद को और भड़का दिया।
1991 में तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमे कच्चाथीवू को वापस भारत से मिलाने की बात कही. 2008 में जयललिता इस मामले को लेकर कोर्ट पहुंच गई थीं. उन्होंने तर्क दिया था कि संविधान संशोधन के बिना सरकार देश की जमीन दूसरे देश को नहीं दे सकती। 2008 तक भारतीय मछुआरे भी कच्चाथीवू द्वीप जाते रहे लेकिन 2009 में श्रीलंका की नौसेना ने भारतीयों को इस द्वीप में जाने पर गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।
2014 में भारत सरकार ने एक जनहित याचिका में मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि कच्चाथीवू श्रीलंका की सम्प्रभुता का स्पष्ट मामला है और भारत के मचुराओं को इस क्षेत्र में मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है. 2015 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसंघे ने एक टीवी चैनल पर विवादित बयान देते हुए कहा था कि- अगर भारतीय मछुआरे कच्चाथीवू द्वीप वाले श्रीलंकाई जलक्षेत्र में घुसपैठ करते हैं तो उन्हें गोली मारी जा सकती है, उन्होंने यह तक कह दिया था कि भारतीय हमारे जल क्षेत्र में क्यों आ रहे हैं?
जब 2023 में विक्रमसंघे भारत आए तब तमिलनाडु के सीएम एमके स्तालिन ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखते हुए इस द्वीप को वापस भारत में शामिल करने की मांग की थी. इसके बाद में ही पीएम मोदी ने संसद में कच्चाथीवू का मामला उठाते हुए विपक्ष को घेरा था और अब एक बार फिर अन्नामलाई की RTI सामने आने के बाद पीएम ने कच्चाथीवू को लेकर विपक्ष को निशाने में लिया है.
बता दें कि हर साल फरवरी के महीने में रामेश्वरम से हजारों लोग कच्चाथीवू जाते हैं. यहां एक सेंट एंथनी चर्च है जिसे तमिल कैथोलिक श्रीनिवास पदैयाची ने 110 साल पहले बनवाया था। कच्चाथीवू द्वीप को लेकर शुरू हुए इस विवाद को लेकर आपकी क्या राय है हमें कमेंट कर जरूर बताएं।