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Karwa Chauth: माता पार्वती की भक्ति और परंपरा की कहानी

The story of Mother Parvati's Karva Chauth

The story of Mother Parvati's Karva Chauth

Karwa Chauth Story: भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार, करवाचौथ 10 अक्टूबर को पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक व्रत रखती हैं। इस पावन पर्व की शुरुआत माता पार्वती की भक्ति से जुड़ी है, जिन्हें वैवाहिक प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

माता पार्वती और करवा चौथ की कथा

करवा चौथ की परंपरा

करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक कुछ भी नहीं खातीं-पातीं। व्रत की शुरुआत सुबह सरगी से होती है, जो सास द्वारा बहू को दी जाने वाली भोजन की थाली है। दिनभर पूजा-अर्चना के बाद, शाम को करवा माता की पूजा की जाती है, जिसमें मिट्टी के करवे (घड़े) का विशेष महत्व है। रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद, महिलाएं अपने पति के हाथों से पानी पीकर और भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं। इस दौरान पति अपनी पत्नी को उपहार देकर उनकी भक्ति और प्रेम का सम्मान करते हैं।

आज के समय का करवाचौथ

आज के समय में करवा चौथ केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास का उत्सव भी बन गया है। बाजारों में मेहंदी, श्रृंगार और उपहारों की दुकानों पर रौनक देखी जा रही है। कई जगहों पर सामूहिक पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। करवा चौथ का यह पर्व न केवल परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि वैवाहिक जीवन में प्रेम और समर्पण के महत्व को भी रेखांकित करता है।

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