Karva Chauth Vrat Katha: वीरावती और उसके भाइयों की अमर प्रेमगाथा

Karva Chauth Vrat Katha : वीरावती और उसके भाइयों की अमर प्रेमगाथा – हिंदू संस्कृति में करवा चौथ का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्त्री-शक्ति, प्रेम और समर्पण का पर्व है। इस दिन विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं।

जहाँ एक ओर करवा और मगरमच्छ की कथा प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर वीरावती और उसके भाइयों की कथा इस पर्व की आस्था को भावनात्मक गहराई प्रदान करती है। यह कथा प्रेम, भक्ति, और पारिवारिक बंधन का ऐसा संगम है जो आज भी हर सुहागिन को प्रेरित करता है।

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करवा चौथ पर पढ़ी-कही और सुनी जाने वाली कहानी वीरावती और भाइयों का प्रेम

बहुत समय पहले की बात है। एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में वीरावती नाम की कन्या का जन्म हुआ। वह अपने पिता वेद शर्मा, जो अत्यंत विद्वान ब्राह्मण थे, की एकमात्र पुत्री थी। घर में उसके सात भाई थे जो अपनी बहन पर प्राण न्योछावर करते थे। वीरावती सौम्य, संस्कारी और सुंदर थी,जब उसका विवाह हुआ, तो वह अपने पति के घर प्रेम, स्नेह और आदर के वातावरण में रहने लगी, सभी उसे बहुत मानते थे।

एक बार कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी आई, इस दिन का महत्व सुनकर वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखने का संकल्प लिया। सुबह से ही उसने नहाकर, पूजा करके देवी पार्वती और भगवान शिव का ध्यान किया। उसने प्रण लिया कि दिनभर अन्न-जल का त्याग कर वह अपने पति की लंबी उम्र की कामना करेगी और व्रत के दिन पूजन व घरेलु कामों में दिन बीतता गया।

सूर्य की किरणें ढलने लगीं, परंतु वीरावती ने अन्न का एक कण तक नहीं छुआ। भूख-प्यास से उसका शरीर कमजोर पड़ने लगा, चेहरा पीला पड़ गया और आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। यह दृश्य देखकर उसके सातों भाई बहुत दुखी हो गए, भाइयों ने सोचा कि अगर उन्होंने कुछ नहीं किया, तो उनकी प्यारी बहन भूख-प्यास से बेहोश हो जाएगी।

उन्होंने देखा कि अभी तो चांद निकलने में अभी बहुत देर है। तब उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने घर के पास एक पीपल के पेड़ पर दीपक जलाकर उसे इस तरह रखा कि वह आकाश में चमकते चांद जैसा प्रतीत हो। वे सब बहन के पास गए और बोले “बहन – देखो, चन्द्रमा निकल आया है, अब तुम पूजा करके व्रत खोल लो।”

अपने भाइयों की बातों पर भरोसा करके वीरावती ने दीपक की ओर देखा। उसे लगा कि सचमुच चन्द्रमा उदित हो गया है। उसने थाली सजाई, पूजा की, और व्रत खोल लिया। लेकिन वास्तविक चंद्रमा अभी आकाश में नहीं निकला था। इस तरह अनजाने में उसका व्रत भंग हो गया। रात ढलते-ढलते वीरावती को अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। यह सुनते ही उसकी दुनिया उजड़ गई।

वह रोती-बिलखती भगवान से प्रार्थना करने लगी “हे माता पार्वती, मुझसे भूल हो गई। मैंने व्रत समय से पहले तोड़ दिया। कृपा करके मेरे पति को जीवनदान दीजिए।” पति के वियोग से वीरावती का जीवन शोकमय हो गया। उसने अन्न और जल का त्याग कर दिया। दिन-रात वह मंदिरों में भटकती, पूजा-पाठ करती और अपनी गलती पर पश्चाताप करती रही। उसकी भक्ति और निष्ठा देखकर देवी पार्वती उसके सामने प्रकट हुईं।

मां ने कहा “वीरावती, तुमने अनजाने में व्रत का नियम तोड़ा है, किंतु तुम्हारी निष्ठा सच्ची है। अगले वर्ष करवा चौथ के दिन विधिपूर्वक व्रत करो, तुम्हारा पति पुनः जीवित होगा।”
अगले वर्ष करवा चौथ का दिन आया। वीरावती ने देवी पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए पूरे विधि-विधान से व्रत किया। उसने प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लिया, दिनभर निर्जला उपवास रखा और रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा की। उसकी सच्ची आस्था और अडिग विश्वास से प्रसन्न होकर देवी पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया“तेरे पति को पुनः जीवन प्राप्त होगा।” जैसे ही वीरावती ने यह आशीर्वाद सुना, उसके पति की जीवन-रक्षा हो गई। वह जीवित होकर लौट आया। घर में फिर से खुशियाँ लौट आईं।

कथा के माध्यम से समाज को दिया सकारात्मक व अनुकरणीय सन्देश

वीरावती की कथा केवल धार्मिक कथा नहीं, बल्कि जीवन की एक गहरी सीख है। यह बताती है कि श्रद्धा, धैर्य और नियमों का पालन किसी भी साधना की आत्मा होते हैं। भाइयों का प्रेम भावनात्मक था, लेकिन अधूरी आस्था ने अनर्थ कर दिया। वहीं वीरावती की दृढ़ भक्ति और निष्ठा ने मृत्यु को भी मात दे दी।

कथा यह संदेश देती है कि किसी भी व्रत या अनुष्ठान को पूर्ण नियम और समयानुसार करना चाहिए। आस्था अधूरी नहीं, संपूर्ण होनी चाहिए। प्रेम और भक्ति का संगम ही सच्चा धर्म है।
सच्चे मन से किया गया प्रायश्चित भी ईश्वर को प्रसन्न कर देता है।

करवा चौथ की परंपरा पर प्रभाव

वीरावती की कथा ने भारतीय समाज में करवा चौथ व्रत के महत्व को और गहराई दी। तभी से महिलाएं इस व्रत को केवल एक रस्म नहीं, बल्कि अपने प्रेम की शक्ति का प्रतीक मानती हैं। आज भी जब महिलाएं चांद की ओर छलनी से देखकर पति के दीर्घ जीवन की कामना करती हैं, तो कहीं न कहीं वीरावती की श्रद्धा उनके मन में जीवित रहती है।

विशेष – आस्था की अमर गाथा

वीरावती और उसके भाइयों की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची निष्ठा और श्रद्धा से असंभव भी संभव हो सकता है। जहां अधूरी जानकारी और असावधानी अनिष्ट ला सकती है, वहीं सच्ची आस्था और प्रायश्चित जीवन को पुनः प्रकाशमय बना सकते हैं। करवा चौथ की यह कथा आज भी हर स्त्री को यह संदेश देती है, “यदि मन में सच्चा प्रेम, विश्वास और समर्पण हो, तो देवी की कृपा से मृत्यु भी जीवन में बदल सकती है।” यह कथा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह उस अमर प्रेम की कहानी है, जहाँ एक नारी की भक्ति ने मृत्यु को भी पराजित कर दिया।

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