‘कैलाश खेर’ जिन्होंने कम उम्र में छोड़ दिया था घर, अंदाज फिल्म ने दिलाई थी पहचान

Kailash Kher Birthday | न्याज़िया बेगम: दिल को छू लेने वाली सधी सी आवाज़ और उसमें लोक संगीत और सूफ़ी की मिठास, मानो अदभुत है इस गायकी का एहसास।
कोई और नहीं अपनी अलग शैली को बनाने वाले कैलाश खेर की हम कर रहे हैं बात। जो संगीतकार भी हैं और शास्त्रीय संगीतकार कुमार गंधर्व, हृदयनाथ मंगेशकर, भीमसेन जोशी और नुसरत फतेह अली खान से मुतासिर हैं।

कम उम्र में छोड़ दिया था घर

7 जुलाई 1973 को दिल्ली के मयूर विहार में, एक कश्मीरी परिवार में जन्में कैलाश के पिता, मेहर सिंह खेर एक पारंपरिक लोक गायक थे और कैलाश के संगीत की प्रथम पाठशाला भी। आपने महज़ 12,13 साल की उम्र में संगीत गुरु और ज्ञान की तलाश में घर छोड़ दिया था, भटकते हुए ऋषिकेश पहुंचे और गंगा नदी के तट पर साधू संतों की संगत में भक्ति में लीन हो, संगीत साधना करने लगे, भजनों में डूब गए कई सालों तक शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत का रियाज़ करते रहे।

लौटकार जुड़े व्यापार से

1999 वे में जब घर लौटे तो हैंडीक्राफ्ट का बिज़नेस शुरू किया जो अच्छे से चल नहीं पाया और कैलाश फिर मायूस हो गए। कुछ वक्त बाद सन 2001 में अपने उन दोस्तों के पास मुंबई आए, जो पहले से फिल्म संगीत से जुड़े थे, जिनके ज़रिए उन्हे कुछ जिंगल्स में काम मिला और धीरे-धीरे बड़े ब्रांड के लिए भी गाने लगे।

अंदाज फिल्म ने दिलाई पहचान

इतने संघर्ष के बाद किसी तरह फिल्म मिली “अंदाज़” जिसका गाना ‘रब्बा इश्क न होवे’ लोकप्रियता की सारी हदें पार करने लगा और हर किसी की ज़ुबान पर चढ़ गया। इसके बाद “अल्लाह के बंदे हंस दे “गीत ने तो मानो सबको नए जोश से भर दिया और वो पहचाने जाने लगे एक सिंगिंग स्टार के रूप में।

बाहुबली फिल्म के लिया भी गाया गीत

फिर उन्होंने बॉलीवुड फिल्म मंगल पांडे: द राइज़िंग में कई गाने गाए, आपका दूसरा लोकप्रिय गाना बना, कॉरपोरेट का “ओ सिकंदर”। उसके बाद आपने बैंड कैलासा में गाना “तेरी दीवानी” और फिल्म सलाम-ए-इश्क: ए ट्रिब्यूट टू लव का गाना “या रब्बा” गाया और आलम ये हुआ कि उन्हें फिल्म बाहुबली 2: द कन्क्लूजन के लिए गाने का मौका मिला। इस फिल्म में उनके गाने ” जय जय करा ” और “जल रही है चिता” काफी लोकप्रिय हुए बस तब से लेकर अब तक ये सुरीला सफर मुसलसल जारी है।

मिल चुके हैं दो फिल्मफेयर पुरस्कार

कैलाश खेर को 2017 में भारत सरकार से पद्म श्री पुरस्कार मिला, उन्हें सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के लिए दो फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिले हैं। एक हिंदी फ़िल्म फ़ना (2006) के लिए और एक तेलुगु फ़िल्म मिर्ची (2013) के लिए। अब तक कई तरह के गीतों से हमें लुत्फ अंदोज़ करने वाले कैलाश, मंद, माध्यम और तीव्र स्वरों में इतनी शिद्दत से गाते हैं की एक रूहानी सुकून मिलता है सुनने वालों को।

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