जजों के खिलाफ कैसे होता महाभियोग: प्रक्रिया, कार्रवाई और इतिहास

Justice Yashwant Verma Impeachment: भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग (Impeachment) एक संवैधानिक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया तब शुरू की जाती है जब कोई जज सिद्ध कदाचार (Proven Misconduct) या अक्षमता (Incapacity) का दोषी पाया जाता है। हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की चर्चा ने इस प्रक्रिया को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि महाभियोग क्या है, इसकी प्रक्रिया और कार्रवाई कैसे होती है, और इतिहास में इसके उदाहरण क्या हैं।

महाभियोग क्या है?

महाभियोग एक ऐसी संवैधानिक प्रक्रिया है जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को उनके पद से हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 124(4), 124(5), 217, और 218 के तहत परिभाषित है और न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 (Judges Inquiry Act, 1968) द्वारा नियंत्रित होती है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब कोई जज संविधान का उल्लंघन, भ्रष्टाचार, कदाचार, या मानसिक/शारीरिक अक्षमता जैसे गंभीर आरोपों का सामना करता है।

महाभियोग की प्रक्रिया और कार्रवाई

महाभियोग की प्रक्रिया जटिल लेकिन पारदर्शी है, जो निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है:

  1. प्रस्ताव पेश करना:
    • महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जा सकता है।
    • लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है।
    • प्रस्ताव में जज के खिलाफ सिद्ध कदाचार या अक्षमता के स्पष्ट आरोप होने चाहिए।
  2. प्रस्ताव की स्वीकृति:
    • लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति प्रस्ताव की प्रारंभिक समीक्षा करते हैं और इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, 2018 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया था।
  3. जांच समिति का गठन:
    • अगर प्रस्ताव स्वीकार होता है, तो तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई जाती है, जिसमें शामिल होते हैं:
      • सुप्रीम कोर्ट का एक जज।
      • हाई कोर्ट का एक मुख्य न्यायाधीश।
      • एक प्रतिष्ठित कानूनविद (जैसे 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन के मामले में फली नरीमन)।
    • यह समिति आरोपों की जांच करती है, सबूत इकट्ठा करती है, गवाहों की गवाही लेती है, और जरूरत पड़ने पर जज का मेडिकल टेस्ट भी करा सकती है।
  4. संसद में मतदान:
    • समिति की रिपोर्ट संसद को सौंपी जाती है। अगर समिति जज को दोषी पाती है, तो दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में प्रस्ताव पर चर्चा होती है।
    • प्रस्ताव को पास होने के लिए दो-तिहाई बहुमत (Two-thirds Majority) की जरूरत होती है।
    • अगर दोनों सदन प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो जज को पद से हटा दिया जाता है।
  5. राष्ट्रपति की मंजूरी:
    • अंतिम चरण में, संसद का निर्णय राष्ट्रपति को भेजा जाता है, जो जज को औपचारिक रूप से हटाने का आदेश देते हैं।

यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Judicial Independence) बनी रहे और जजों को मनमाने ढंग से न हटाया जाए।

अबतक कितने जजों के खिलाफ महाभियोग लाया गया?

भारत में अब तक किसी भी जज को महाभियोग के जरिए पद से नहीं हटाया गया है, लेकिन छह बार इस प्रक्रिया को शुरू करने की कोशिश की गई है। प्रमुख उदाहरण:

  1. जस्टिस वी. रामास्वामी (1993):
    • सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी पहले जज थे जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। उन पर वित्तीय अनियमितताओं (Financial Irregularities) का आरोप था।
    • मई 1993 में लोकसभा में प्रस्ताव पेश हुआ, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया, जिसके कारण यह प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत न मिलने के कारण विफल हो गया।
  2. जस्टिस सौमित्र सेन (2011):
    • कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन पर वित्तीय कदाचार (Financial Misconduct) का आरोप था।
    • जांच समिति ने उन्हें दोषी पाया, और राज्यसभा ने प्रस्ताव पारित कर दिया। हालांकि, लोकसभा में मतदान से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
  3. जस्टिस दीपक मिश्रा (2018):
    • सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन पर प्रशासनिक अनियमितताओं का आरोप था।
    • उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने प्रस्ताव को प्रारंभिक जांच के बाद खारिज कर दिया।
  4. जस्टिस जेबी पारदीवाला (2015):
    • गुजरात हाई कोर्ट के जज (अब सुप्रीम कोर्ट जज) जेबी पारदीवाला के खिलाफ 58 सांसदों ने आरक्षण और भ्रष्टाचार पर उनकी टिप्पणियों के लिए महाभियोग प्रस्ताव पेश किया।
    • टिप्पणियां आदेश से हटाए जाने के बाद प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा।

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की चर्चा

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की खबरें सुर्खियों में हैं। खबरों के अनुसार, उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में जली हुई भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले ने विवाद खड़ा किया है। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई है। सरकार संसद के मानसून सत्र में उनके खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने कहा कि यह मामला अभी प्रारंभिक चरण में है, और कांग्रेस समर्थन पर विचार करेगी। हालांकि, कुछ लोग इस मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की बात भी उठा रहे हैं। यह मामला न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability) और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है।

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