नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने खड़ा किया सवाल

B.V. Nagrathna

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना (B.V. Nagrathna) ने एक बार फिर नोटेबंदी पर सवाल उठाये हैं. अब उन्होंने कहा है कि नोटेबंदी के बाद 500 और 1000 के नोटों का लगभग 98 प्रतिशत हिस्सा वापस रिजर्व बैंक के पास आ गया. तो कालाधन ख़त्म कहाँ हुआ. उन्होंने इसे काले धन को सफेद करने का तरीका बताया। जस्टिस बीवी नागरत्ना शनिवार, 30 मार्च को हैदरबाद में NALRS लॉ यूनिवर्सिटी में आयोजित अदालतों और संविधान के पांचवें वार्षिक सम्मलेन में पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने कई बड़ी बातें कहीं।

उन्होंने कहा “हम सब जानते हैं कि 8 2026 को क्या हुआ था. जब 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए थे. दिलचस्प पहलु ये है कि उस समय भारतीय इकॉनमी की 86 प्रतिशत मुद्रा 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में थी. जिसे सरकार ने उस समय में अनदेखा कर दिया।

उन्होंने आगे कहा “उस मजदुर के बारे में सोचिये, जो रोज अपनी दिनभर की मजदूरी के बाद 500 1000 रुपये का नोट पाता था और फिर शाम के समय में उसे बदलता था. जिससे वो अपने घर के लिए राशन खरीद सके.

आपको बता दें कि जस्टिस नागरत्ना (B.V. Nagrathna) नोटेबंदी के सरकार के फैसले को वैध ठहराने वाली पीठ में एकमात्र जज थीं, जो इससे असहमत थीं. उन्होंने शनिवार को फिर से दोहराया कि उन्हें नोटेबंदी से असहमत होना पड़ा, क्योंकि आम आदमी की परेशानी ने उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य कर दिया था.

राज्यपालों पर भी बोलीं जस्टिस नागरत्ना

द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अपने संबोधन में जस्टिस नागरत्ना (B.V. Nagrathna) ने पंजाब के राज्यपाल से जुड़े मामले का भी जिक्र किया। लोगों द्वारा चुनी गई सरकार के पारित विधेयकों पर राज्यपाल लम्बे समय तक फैसला नहीं लेते। इस पर उन्होंने कहा कि राज्यपाल के ऑफिस की एक संवैधानिक प्रकृति होती है, जिसे समझना बहुत जरुरी है. उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा मामले को राज्यपाल के अतिरेक का एक और उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के पास शक्ति परीक्षण की घोषणा के लिए पर्याप्त आधार नहीं थे. हैदराबाद की NALSR लॉ यूनिवर्सिटी के जिस कार्यक्रम में जस्टिस नागरत्ना ये सब बोल रहीं थीं, उसमें नेपाली सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस सपना प्रधान मल्ला, पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस सैयद मंसूर अली शाह और तेलांगना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अलोक अराधे भी शामिल हुए थे.

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