JNUSU 2025: जबरदस्त होगा जेएनयू छात्रसंघ चुनाव, जाने कौन से पद पर कौन कर रहा दावेदारी?

JNUSU 2025: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) 2024-25 के चुनाव में किस्मत आजमाने वाले उम्मीदवार देश के कोने-कोने और विभिन्न समुदायों से हैं। इसमें अनुसूचित जाति, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र उम्मीदवार बने हैं। इन उम्मीदवारों में जम्मू का गुज्जर समुदाय, आदिवासी, मुस्लिम महिलाएं, बिहार की ग्रामीण पिछड़ा वर्ग की छात्राएं और राजस्थान के आदिवासी छात्र शामिल हैं। चुनाव में मुकाबला आइसा-डीएसएफ के यूनाइटेड लेफ्ट, एसएफआई-बापसा-एआईएसएफ-पीएसए के अंबेडकरवादी और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बीच है। एनएसयूआई ने भी हर पद के लिए उम्मीदवार उतारे हैं।

अध्यक्ष पद पर कौन दावेदारी कर रहा है। JNUSU 2025

1: शिखा स्वराज (एबीवीपी): बिहार के नवादा की रहने वाली हैं। उन्होंने पटना साइंस कॉलेज से बायोलॉजी में ग्रेजुएशन किया है। इसके बाद उन्होंने जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से ‘पॉलिटिक्स विद स्पेशलाइजेशन इन इंटरनेशनल स्टडीज’ में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिलहाल शिखा जेएनयू के अमेरिकन स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च स्कॉलर हैं। फिलहाल वह जेएनयू एबीवीपी की महासचिव हैं।

2: चौधरी तैय्यबा अहमद (एसएफआई-बाप्सा अंबेडकरवादी पैनल): जम्मू के पुंछ के गुज्जर समुदाय की पहली मुस्लिम आदिवासी महिला, जो सेंटर फॉर लॉ एंड गवर्नेंस में पीएचडी कर रही हैं। इंटरनेट कर्फ्यू के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में व्यवधान से प्रेरित होकर, उन्होंने डिजिटल विभाजन के खिलाफ अभियान चलाया।

3: नीतीश कुमार (यूनाइटेड लेफ्ट): बिहार के एक ग्रामीण पिछड़े वर्ग के परिवार से पहली पीढ़ी के छात्र, जो कैंपस में कई आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने जेएनयूएसयू अध्यक्ष धनंजय के साथ 14 दिनों की भूख हड़ताल में भाग लिया। यहां से उनकी छवि मजबूत हुई।

4: प्रदीप ढाका (एनएसयूआई): दिल्ली से कानून की पृष्ठभूमि वाले स्नातकोत्तर छात्र, प्रशासन में पारदर्शिता और करियर काउंसलिंग पर जोर देते हैं।

ये दिग्गज उपाध्यक्ष पद की दौड़ में हैं। JNUSU 2025

1: निथु गौतम (एबीवीपी): वे तेलंगाना के कामारेड्डी जिले के निवासी हैं। वे लिंग्याज विद्यापीठ, फरीदाबाद (हरियाणा) से कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। वे वर्तमान में जेएनयू के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज से कंप्यूटर विज्ञान में पीएचडी कर रहे हैं।

2: मनीषा (AISA-DSF): हरियाणा की पहली पीढ़ी की दलित विद्वान, जिन्होंने जेएनयू तक पहुँचने के लिए प्रणालीगत जातिगत पूर्वाग्रह से लड़ाई लड़ी। लैंगिक न्याय और आरक्षण अधिकारों के लिए मुखर प्रचारक, वे ग्रामीण और हाशिए की पृष्ठभूमि से कई लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।

3: संतोष कुमार (SFI-AISF): SLL&CS में पीएचडी स्कॉलर।मोहम्मद कैफ (NSUI): उन्हें फ्रेटरनिटी मूवमेंट के साथ प्रगतिशील गठबंधन में उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा गया है। यह रणनीतिक गठबंधन विभिन्न समुदायों में लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष छात्र बलों के बीच एकता पर जोर देता है।

यह महासचिव पद के उम्मीदवार हैं।

1: कुणाल राय (ABVP): मूल रूप से छपरा, बिहार से हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक हैं। वर्तमान में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, JNU में एक शोध विद्वान हैं। वे एक किसान परिवार से आते हैं।

2: राम निवास गुर्जर (वामपंथी-अंबेडकरवादी): वे विधि एवं शासन विभाग में शोधार्थी हैं।

3: मुंतहा फातिमा (संयुक्त वामपंथी): एसआईएस में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की छात्रा, वे अल्पसंख्यक अधिकारों और समावेशिता की वकालत करती रही हैं।

4: अरुण प्रताप (एनएसयूआई): दलित छात्र नेता अरुण प्रताप, जो सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज से पीएचडी कर रहे हैं, को महासचिव पद के लिए नामित किया गया है। अरुण सामाजिक न्याय की अपनी मजबूत वकालत के लिए जाने जाते हैं।

संयुक्त सचिव पद के लिए ये हैं दावेदार।

1: वैभव मीना (एबीवीपी): मूल रूप से राजस्थान के करौली से हैं, वे एक आदिवासी किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से स्नातक किया है। वर्तमान में, वे जेएनयू के भाषा, साहित्य और संस्कृति संस्थान के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी साहित्य में शोधार्थी हैं।

2: नरेश कुमार (संयुक्त वामपंथी): बिहार के मजदूर वर्ग से छात्रवृत्ति और छात्रावास सुविधाओं के लिए अभियान में सक्रिय।

3: सलोनी खंडेलवाल (एनएसयूआई): जेएनयूएसयू चुनाव में हर क्षेत्र और समुदाय के उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

4: निगम कुमारी (अंबेडकरवादी): पीएसए की सदस्य हैं। वह एमए की छात्रा हैं। एसएलएल और सीएस की काउंसलर रह चुकी हैं।

इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार भी अपने विचार रख रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश से यारी नामई, जो पूर्वोत्तर के छात्रों की मौजूदगी और आवाज की वकालत कर रही हैं।

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