शख़्सियत साँची | Javed Akhtar Biography | जावेद अख्तर बर्थडे स्पेशल

Javed Akhtar Biography

Javed Akhtar Biography | फूलों की फितरत ही है खिल के बिखर जाने की और खुशी देने की पर एक शायर ही तसव्वुर कर सकता है दर्द के फूल भी इस पर भी दिल को बहलाने का ये ख्याल उम्दा है कि ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं बेशक आप हमारा इशारा समझ गए होंगे और आपको जावेद अख़्तर का ये बेशकीमती शेर भी याद आ गया होगा कि दर्द के फूल भी खिलते है बिखर जाते हैं ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं फिर ज़िंदगी को तीन पायदानों में समेट कर खुद को मुकम्मल करके आगे और भी ज़रूरी काम कर लेने का हुनर वही सिखा सकते हैं ये कहकर कि लो देख लो ये इश्क है ये वस्ल है ये हिजरा है अब लौट चलें आओ बहोत काम पड़ा है पर इन तिलिस्मई ख्यालों का कारवां शुरू हुआ बतौर स्क्रिप्ट राइटर फिल्म हाथी मेरे साथी में सलीम खान के साथ जोड़ी बनाकर ये बात है 1970 के दशक की जब , आमतौर पर पटकथा, कहानी और संवाद के लिए एक ही लेखक होने का कोई चलन ही नहीं था, न ही राइटर्स को टाइटल में कोई क्रेडिट दिया जाता था फिर राजेश खन्ना ने सलीम खान और जावेद अख्तर को हाथी मेरे साथी में पटकथा लेखक बनने का पहला मौका दिया।

इसके बाद आप दोनों की जुगलबंदी ने इतनी दमदार कहानियां हमारी फिल्म इंडस्ट्री को दीं कि हिट फिल्मों की झड़ी लग गई ये फिल्में थीं ,- सीता और गीता ,यादों की बारात , ज़नजीर , हाथ की सफाई ,अधिकार , आखिरी दांव , ईमान धरम ,शान ,दीवार , शोले ,चाचा भतीजा, डॉन , त्रिशूल ,दोस्ताना , क्रांति , ज़माना और मिस्टर इंडिया । आपने दो कन्नड़ फिल्मों – प्रेमदा कनिके और राजा नन्ना राजा सहित 24 फिल्मों में एक साथ काम किया है । हालाँकि 1982 में आप दोनों इतनी बेमिसाल फिल्मों का तोहफा हमें देकर अलग हो गए, पर आज भी जावेद साहब फिल्म जगत में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं,और एक्टिंग में भी हांथ आज़मा चुके हैं पर सलीम-जावेद, का नाम आज भी सबसे पहले और कमियाब स्क्रिप्ट राइटर्स “में गिना जाता है। उनकी क़लम का उजाला एक तिलिस्म के मानिंद नज़र आता है जिसे उनके वालिद जां निसार अख़्तर जो बॉलीवुड के जाने माने गीतकार और उर्दू शायर थे उन्होंने जावेद साहब के बचपन में ही महसूस कर लिया था और उन्हें नाम दिया था जादू जिसे

अपनी शायरी में कुछ यूं शामिल किया –

“लम्हा , लम्हा किसी जादू का फ़साना होगा” पर ये उनके दिल की गहराइयों में छुपे जज़्बात थे जिसे उन्होंने जावेद नाम का गिलाफ दिया ,जब जावेद साहब बहोत छोटे थे तब उनकी मां गुज़र गईं पर मां और बच्चे के रिश्ते को उन्होंने दुनिया के सामने इस तरह पेश किया कि हर इंसान हैरान रह गया कि माँ की थपकी से बच्चा सो क्यों जाता है उन्होंने कहा कि ये थपकी बच्चे को मां के दिल की धड़कन, उसके अंदर की गर्माहट का एहसास दिलाती है जिसे वो ताउम्र तलाश करता है और मां की गोद का सुख सिवाय मां के ,उसे कहीं और कभी नहीं मिलता।


जावेद अख्तर ने अपनी किताब तरकश में अपनी माँ को कुछ इस तरह याद किया है –

तख़्त पर सफ़ेद कफन में मेरी माँ का चेहरा खुला हुआ है। सिरहाने बैठी मेरी बूढ़ी नानी थकी-थकी सी हौले-हौले रो रही हैं। दो औरतें उन्हें संभाल रही हैं। मेरी खाला हम दोनों बच्चों को उस तख़्त के पास ले जाती हैं और कहती हैं, अपनी माँ को आखिरी बार देख लो। मैं कल ही आठ बरस का हुआ था। समझदार हूँ, जानता हूँ मौत क्या होती है। मैं अपनी माँ के चेहरे को बड़े गौर से देखता हूँ कि अच्छी तरह याद हो जाए। मेरी खाला कह रही हैं इनसे वादा करो कि तुम जिंदगी में कुछ करोगे। मैं कुछ कह नहीं पाता, बस देखता रहता हूँ और फिर कोई और औरत मेरी माँ के चेहरे पर कफन ओढ़ा देती हैं।

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