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बस वक़्त की क़ीमत होती है…

न्याज़िया

मंथन। वक़्त का तकाज़ा देखकर ही चलना चाहिए जब जो वक़्त कहे वो करना चाहिए,ये सुना तो है हमने पर इस पर अमल करना इतना आसान नहीं क्योंकि इसके आड़े आते हैं हमारे अरमान, हमारे सपने जिन्हें हम जाने कब से संजोते हैं और वक़्त का एक प्रहार इन पर पानी फेर देता है ,तो कैसे दिल को बहलाए, वक़्त के सितम से कैसे खुद को बचाएं।

हमने जो किया ,सही किया

शायद ऐसे में खुद पर ,अपने फैसले पर यक़ीन रखना बहोत ज़रूरी है, हमने जो भी फैसला लिया हो उसे सही मानना चाहिए ,पर हां उसके अंजाम से अंजान नहीं रहना है, ये अलग बात है कि हमारे पास विकल्प की कमी रही हो और हमारे फैसले के फायदे के साथ ,कोई नुकसान भी हमें भुगतना पड़े, लेकिन फिर भी अपने को ग़लत या कमज़ोर न समझें और आगे बढ़ते रहें, उस चीज़ को अहमियत दें जिसके लिए आपने ये फैसला लिया या समझौता किया है।

वक़्त के साथ न चले तो हम पीछे रह जाएंगे

हमारी ज़िंदगी में वक़्त से ज़्यादा अहम वैसे भी कुछ नहीं होना चाहिए क्योंकि सही वक़्त पे किया गया कोई भी फैसला हमें जो परिणाम देता है उससे हमारी ज़िंदगी से जुड़े और भी काम सही समय पर होने लगते हैं जो हमें समय के साथ चलने का मौक़ा देते हैं ,क्योंकि समय से पीछे छूटने का मतलब हमारा पिछड़ जाना होता है इस दुनिया की रेस में, इसलिए हर चीज़ पीछे छोड़ी जा सकती है लेकिन वक़्त नहीं क्योंकि उससे कीमती कुछ नहीं है, फिर हमारे शरीर को भी उम्र के हिसाब से बांटा जाता है तो हर उम्र के अपने अलग कामों के साथ अलग दायित्व होते हैं जिनका पालन हमें समय रहते कर लेना चाहिए नहीं तो हमारे हिस्से की खुशियां फीकी पड़ जाएंगी ।

क्या करें अपने सपनों का

अब सवाल ये उठता है कि हमारे अरमानों ,हमारे सपनों का क्या! तो इन्हें बिखरने न दीजिए क्योंकि खुशियां मनाने के लिए मौक़े नहीं तलाशने पड़ते और आखिरकार ये भी तो वक़्त से जुड़े हैं। वक़्त निकल गया तो फिर नए सपने संजोइए क्योंकि अगर आपका वक़्त सही है तो उस वक़्त के भी अपने अलग अरमान होंगे ,हमारे लिए नहीं तो हमारे अपनों के लिए जिन्हें अपनों की तरह अपना बनाया जा सकता है और वैसे भी सबकी ख़ुशी में खुश होना ही तो ज़िंदगी है , नहीं! ज़िंदगी वो कारवां है जिसमें लोगों का जुड़ना ज़रूरी है ग़म और खुशी को बांटना ज़रूरी है,जुड़ने और बांटने के तरीके मायने नहीं रखते।

यही मंत्र है खुशहाल जीवन का

एक ही फलसफा है यहां खुशियां बढ़ानी है और ग़म कम करने है और इसके लिए जो ज़रूरी है वही हमने किया ,ये किसी भी मसले को सुलझाने का तरीका भी है, ये विश्वास रखकर ही आगे बढ़ना है। तभी जीवन में किसी लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। उसके लिए नीति निर्धारण की जा सकता है। सबके भले के बारे में सोचना ही हमारी सफलता और जीवन की सार्थकता की ओर हमारा पहला क़दम है। तो ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बारे में फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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