Islam in Kashmir | जानें कश्मीर घाटी में कैसे आया इस्लामिक युग

History Of Islam In Kashmir In Hindi: वर्तमान में कश्मीर घाटी की 97 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। लेकिन लगभग 700-800 सौ साल पहले कश्मीर में हिंदुओं का ही प्रभुत्व था। जब पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामिक शासन स्थापित हो गया था, तब भी कश्मीर पर हिंदू राजा ही शासन किया करता था। और फिर कश्मीर पर एक बौद्ध शरणार्थी रिंचन का आगमन हुआ। जिसके बाद कश्मीर पर इस्लामिक शासन हुआ और 19 वीं शताब्दी तक चला।

Islam in Kashmir

कश्मीर की इस्लामिक शासन के पहले की स्थिति | Islam in Kashmir

14वीं शताब्दी की बात है पूरे भारत में इस्लामिक शासन स्थापित हो चुका था। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की इस्लामिक सेनाओं ने दूर-दूर तक विजय अभियान किए थे। लेकिन कश्मीर अब भी इस्लामिक शासन से मुक्त था। वहां सहदेव नाम का राजा शासन किया करता था। जो जनता में बेहद अलोकप्रिय था। राज्य की शासन व्यवस्था सहदेव का प्रधानमंत्री और सेनापति रामचंद्र संभाला करता था।

कश्मीर पर अरबों और तुर्कों के असफल अभियान | Islam in Kashmir

ऐसा नहीं था कश्मीर पर यहाँ तुर्को और अरबों के आक्रमण नहीं हुए। लेकिन कश्मीर की भौगोलिक स्थित और मौसम की वजह से यहाँ उन्हें सफलता नहीं मिली। जुनैद के समय से ही 724 ईस्वी में अरबों ने यहाँ आक्रमण किए थे। लेकिन तब कश्मीर के पराक्रमी राजा लालितादित्य ने उन्हें पराजित कर पीछे धकेल दिया। बाद में लोहार वंश के राजा संग्रामराज के समय में भी कश्मीर पर 1015ईस्वी और 1021ईस्वी में मुहम्मद गजनवी के दो आक्रमण हुए, लेकिन खराब मौसम की वजह से गजनवियों को पीछे हटना पड़ा।

मंगोल आक्रमण से कश्मीर में राजनैतिक अस्थिरता | Islam in Kashmir

1320 ईस्वी में कश्मीर में जुलचू मंगोल सेनापति ने आक्रमण किया, जिसके कारण राजा सहदेव किश्तवाड़ भाग गया। जूल्चू लगभग 8 महीनों तक कश्मीर में उत्पात मचाता रहा, और लौटते वक्त कश्मीर के बर्फीले तूफान के नीचे दबकर सेना सहित उसकी मृत्यु हो गई। अब कश्मीर पर सीधे-सीधे प्रधानमंत्री रामचंद्र का शासन हो गया।

रिंचन का कश्मीर में आना | Islam in Kashmir

इसी दौरान रिंचन नाम का एक लद्दाख का लामा, गृहयुद्ध से परेशान होकर अपने कुछ हथियारबंद सैनिकों के साथ कश्मीर आया। उसने रामचंद्र को बताया कि उसके पिता की गृहयुद्ध के दौरान हत्या हो गई है। वह जोजिला दर्रे के रास्ते अपनी जान बचा कर यहाँ आया है। उसने रामचंद्र से शरण मांगी और रामचंद्र ने दी। इसी बीच रिंचन ने साजिश रचकर रामचंद्र की हत्या करवा दी और स्वयं कश्मीर का शासक बन गया।

रिंचन द्वारा छल से कश्मीर की गद्दी हथियाना | Islam in Kashmir

रामचन्द्र की एक बहुत ही खूबसूरत बेटी थी कोटा। उसने कोटा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। हालांकि पहले तो कोटा अपने पिता के हत्यारे के साथ विवाह के लिए तैयार नहीं हुई, लेकिन कालांतर में वह तैयार हो गई उसने रिंचन से हिंदू धर्म स्वीकार करने के लिए भी कहा। इन सबके बाद उसने रिंचन के साथ विवाह कर लिया।

रिंचन द्वारा हिंदू धर्म अपनाने को लेकर दुविधा | Islam in Kashmir

अब एक नई समस्या पैदा हो गई, कश्मीर हिंदू बाहुल्य था। उस पर भी ब्राम्हणों का प्रभुत्व वहाँ ज्यादा था। लेकिन रिंचन बौद्ध था और बौद्ध ही नहीं वह तिब्बती भी था। इसीलिए एक हिंदू कन्या से विवाह और कश्मीर के राजा बनने के बाद उसका विरोध होना भी स्वाभाविक था। कोटारानी भी रिंचन को हिंदू बनाना चाहती थी, रिंचन खुद भी हिंदू बनना चाहता था, लेकिन समस्या यह थी, कि ब्राम्हणों ने उसे हिंदू धर्म में दीक्षित करने से इंकार कर दिया। क्योंकि हिंदू धर्म अपनाने के बाद वह कौन सा वर्ण और जाति में जाएगा, ब्राम्हण तो उसे स्वीकार करेंगे नहीं।

रिंचन द्वारा इस्लाम स्वीकार करना | Islam in Kashmir

कश्मीर में मुस्लिम शासन भले नहीं आया था, लेकिन तुर्क और अफ़गान वहाँ की सेनाओं में जरूर भर्ती होने लगे थे। इसी बीच वहाँ सूफी संतों का भी प्रवेश होने लगा था। भारतीय उपमहाद्वीप और कश्मीर के आस-पास का क्षेत्रों में ना केवल इस्लाम का प्रभाव था बल्कि बड़ी-बड़ी सल्तनतें भी थीं। ब्राम्हणों के इंकार के बाद रिंचन कश्मीर में रह रहे सूफी संत बुलबुल शाह से मिला। उनके प्रभाव में आकर उसने इस्लाम अपना लिया और सुल्तान सदरुद्दीन के नाम से कश्मीर का शासक बना। इस्लाम स्वीकार करना उसके लिए राजनैतिक रूप से भी मुफीद था।

कश्मीर में कोटारानी का शासन | Islam in Kashmir

रिंचन ने अपने चाचा ससुर रावणचंद्र और प्रशासन के कई बड़े आला-अधिकारियों को भी इस्लाम स्वीकार करवाया। कश्मीर की पहली मस्जिद भी रिंचन ने ही बनवाई। लेकिन रिंचन शांतिपूर्वक शासन ना कर सका। 1323 ईस्वी में एक बीमारी से उसकी मृत्यु हो गई। अपने नाबालिग बेटे को गद्दी में बैठाकर कोटारानी स्वयं कश्मीर पर शासन करने लगी, लेकिन इस बीच वहाँ के भगोड़े राजा सुहादेव के भाई उदयनदेव ने विद्रोह कर दिया और रानी कोटा को विवाह के लिए भी मजबूर किया। लेकिन कुछ वर्षों बाद ही उदयनदेव की भी मृत्यु हो गई, रानी कोटा अपने पति के नाबालिग पुत्र को गद्दी पर बिठा स्वयं शासन करने लगी। की सेना में बहुत सारे मुस्लिम सैनिक और अधिकारी थे, इन्हीं में से एक प्रमुख था शाहमीर था। वह कश्मीर की गद्दी को हथियाना चाहता था, इसीलिए वह स्वयं प्रधानमंत्री बनना चाहता था। लेकिन रानी ने भट्ट भिक्षणा को अपना प्रधानमंत्री बनाया। शाहमीर ने छल से भट्ट भिक्षणा की हत्या कर दी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसने कोटारानी को विवाह का प्रस्ताव दिया लेकिन रानी ने इंकार कर दिया और आत्महत्या कर ली।

शाहमीर वंश की स्थापना | Islam in Kashmir

शाहमीर ने रानी के दोनों पुत्रों की हत्या करके स्वयं कश्मीर का शासक बन गया। इस तरह कश्मीर में औपचारिक रूप से इस्लामिक सल्तनत की शुरुआत हुई। लेकिन कश्मीर का सबसे विवादित और क्रूर सुल्तान हुआ सिकंदर शाहमीरी जो 1389 में कश्मीर की गद्दी पर बैठा। सुहाभट्ट नाम का एक कश्मीरी पंडित उसका मुख्य सलाहकार था। उसने सूफी संत सैय्यद हमदीनी के प्रभाव में आकर मुस्लिम हो गया था। और अपना नाम सैफुद्दीन कर लिया था, उसी की सलाह पर सुल्तान सिकंदर ने कश्मीरी पंडितों को इस्लाम स्वीकार करने का आदेश दिया और जो इस्लाम स्वीकार ना करे उसे कश्मीर छोड़ने का आदेश भी दिया गया। कश्मीरी हिंदुओं पर इस दौरान बहुत अत्याचार किए गए। उनके मंदिर तोड़े गए, सोने-चांदी की देव मूर्तियों को टकसाल में भेजकर सिक्कों में परिवर्तित कर दिया गया।

मुग़लों द्वारा कश्मीर का अधिग्रहण | Islam in Kashmir

लेकिन सुल्तान सिकंदर का बेटा जैनुल आबदीन अपने पिता से विपरीत काफी सहिष्णु था। 1420 में वह कश्मीर का सुल्तान बना। उसकी सहिष्णु नीतियों के कारण ही उसे अकबर का पूर्वगामी कहा जाता है। 1561 में ही मुग़ल बादशाह अकबर की सेनाओं ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर ली और वहाँ मुग़ल शासन स्थापित हो गया।

कश्मीर में डोगरा राज स्थापित होना | Islam in Kashmir

इसके बाद कुछ समय तक अफ़गान हमलों के फलस्वरूप कश्मीर पर अफगानों का शासन हो गया। बाद में महाराज रंजीत सिंह के दौर में सिखों ने डोगरा राजपूतों के साथ मिलकर कश्मीर पर शासन स्थापित कर लिया। सिख साम्राज्य के पतन के बाद कश्मीर अंग्रेजों को प्राप्त हो गया और अंग्रेजों ने जम्मू के डोगरा राजा गुलाब सिंह को 75 लाख नानकशाही रुपये के बदले कश्मीर दे दिया। इस तरह कश्मीर पर डोगरा राजपूतों का आधिपत्य हो गया जो देश की आजादी तक चलता ही रहा।

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