क्या वास्तव में औरत कंमजोर है!

न्याज़िया
मंथन।
औरत कौन होती है वो लड़की जिसकी क़ुव्वत क़ुदरत धीरे-धीरे उसे बता देती है इसके बावजूद दुनिया कहती है कि वो कमज़ोर है और वो कभी-कभी तो मान भी लेती है,उसके श्रृंगार के समान भी उसे बोझ लगने लगते हैं ,वो भूल जाती है कि ये उसके हथियार भी हो सकते हैं , घूंघट ,कंगन झुमके बाली सब जहां उसको खूबसूरत बनाते हैं वहीं उसको ताक़तवर भी महसूस कराते हैं ,वो कोमल काया जिसे नए जीवन को धरती पे लाने का दायित्व सौंपा गया है वो, किसी मनुष्य से बस इसलिए डर जाती है कि वो आदमी है क्या ये सही है ?

शेरनी की तरह करती है हिफाजत

क्या ये भूलने वाली बात है कि जब वो मां बनती है तो एक शेरनी की तरह अपने बच्चों की हिफाज़त करती है ,जहां उसके बच्चों का सवाल आता है वहां वो किसी से नहीं डरती है,घूंघट में रहने वाली नववधू अपने नौनिहाल के लिए उसकी जान उसकी ताक़त उसका प्यारा सा हौसला होती है जो कहदे , तो वो दौड़ता है ऊंचाई पे चढ़ जाता है ,अपनी हर हद को पार कर आगे बढ़ जाता है पहली बार, बार – बार आगे बढ़ने के लिए क्योंकि उसकी मां पीछे खड़ी होती है हमेशा, कभी स्वयं तो कभी आशीर्वाद बनके ।

माता पिता की बनती है मान

ये प्रेम की मूरत ,सुकुमारी ,अपने माता पिता के लिए भी उनकी हिम्मत उनका मान बनकर रहती है फिर शादी के बाद अपने पति का अभिमान बनती है, तो! कितनों की जान बस्ती है इस औरत में और बच्चों की तो पूरी दुनिया ही मां होती है पर इस सबके बावजूद ये औरत डर जाती है ,इस बात पर कि कोई उसकी इज़्ज़त न छीन ले,पर क्या वो चोर वो लुटेरा एक औरत ने ही नहीं पैदा किया है! क्या वो बेटा अपनी मां के कहने पे नहीं चला और अगर नहीं चला तो क्या ये उस मां की कमी या ग़लती नहीं है जिसका खामियाज़ा पूरी नारी जाती को भुगतना पड़ रहा है ! क्या मां को ये नहीं जानना चाहिए कि वो अपने बच्चे के लिए क्या क्या कर सकती है कि वो ग़लत रास्ते पर न जाए उसके आक्रामक रूप धरने से पहले !

दरअसल नारी खुद को पहचानने में शायद इस लिए भी पीछे रह जाती है कि इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का वर्चस्व इतना ज़्यादा है कि बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ नहीं की उसे पुरुषों वाला वीआईपी ट्रीटमेंट घर में मिलने लगता है और मां कब उसकी दासी बन जाती है दोनों को ये पता ही नहीं चलता और मां बेटे का ये खूबसूरत रिश्ता एक खोखले रौब की भेंट चढ़ कर धुंधला हो जाता है। मां के लिए ये समस्या दुविधा ,इसलिए बन जाती है कि ये उसके घर की परंपरा रीत रिवाज से जुड़ा मुद्दा होता है जिसे वो चाह कर भी कभी-कभी कभी बदल नहीं पाती है।

बच्चे पर मां का पहला अधिकार

पर आपको नहीं लगता ,बच्चे पर पहला अधिकार उसकी मां का ही होता है ख़ासकर जब तक वो छोटा है , उसकी मां ही उसके हक़ में सही फैसले ले सकती है, उस गीली माटी को गढ़ सकती है मन चाहे सुंदर रूप में ! फिर उसके क़दम किधर जा रहे हैं या वो कहां भटक रहा है इसकी ख़बर तो मां को होनी ही चाहिए , नहीं! “मां “सिर्फ एक रिश्ते का नाम नहीं है ये वो शब्द है जो तप धैर्य और प्रेम का फल है जिसके हृदय में सारे जग के लिए प्रेम का अथाह सागर होता है ,इसीलिए विधाता ने भी उसे अनमोल कृति के रूप में चुना है, तो क्यों न हर महिला पुनर्विचार करे अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में बेटा-बेटी को ऐसे पालें कि वो किसी से न डरें , इतने मज़बूत बनें कि अपनी और अपने से कमज़ोर की रक्षा कर सकें साथ ही इज़्ज़त देना मान रखना भी जानें, तभी तो घर परिवार ,समाज और देश में भी वो अपनी अहम भूमिका निभा पाएंगी, फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में।

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