क्या सरल, सीधा होना ही साधारण होना है ?

न्याज़िया बेगम
मंथन।
नहीं न? सरलता क्या है हम आसानी से सामने वाले कि बात मान लेते हैं या उसकी सुविधा के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं, ज़ाहिर है जिसकी सहूलियत का ख्याल हम कर रहे हैं उसका हमारा सरोकार बराबरी का है यानी अगर हम उसके लिए कुछ करते हैं तो वो भी हमारे लिए कुछ करता है फिर अक्सर ऐसा क्यों होता है कि लोग सीधे लोगों को बेवकूफ़ समझ लेते हैं ,क्यों उनके भले बुरे के बारे में नहीं सोचते, कैसी है ये मानसिकता? जो सिर्फ अपना फायदा देखती है शायद यही वो वजह है जो हमें मिलकर काम नहीं करने देती जबकि कुछ जगह बहुत ज़रूरी होता है।

इस तरह की होती है समस्या

टीम वर्क पर ये सोच किसी ग्रुप ,संस्था ,समाज या परिवार को ही आगे नहीं बढ़ने देती ,संपन्न और सूखी नहीं होने देती ,जिसकी वजह से काम तो होता है पर बैलेंस नहीं बन पाता ,न किसी ऐसी संरचना का निर्माण होता है जिससे हर किसी पर भार बराबर हो और उसकी काबिलियत का इस्तेमाल भी सही तरीके से हो सके वो भी बिना किसी को परेशान किए क्योंकि जब कोई खुश होगा तभी तो वो काम भी अच्छा करेगा। शायद इसके लिए एक दूसरे को समझना और सम्मान देना, उसकी खुशी को समझना भी बहोत ज़रूरी है, क्योंकि अगर हमने उसे अपने किसी भी काम में शामिल किया है उसकी भागीदारी हमारे लिए मायने रखती है तो उसकी थोड़ी क़द्र तो हमें करनी पड़ेगी नहीं तो अगर सामने वाला सफर करेगा तो वो अपनी ज़िम्मेदारी उस तरह नहीं निभा पाएगा जिसकी हमें उम्मीद है, उसके लिए उसके दायित्व बोझ के सिवा कुछ नहीं होंगे।

एक दूसरे को समझना जरूरी

ये भी समझना ज़रूरी है कि कोई एकदम परफेक्ट नहीं हो सकता अगर उसमें कोई कमी है तो हममें भी कोई कमी है और हम एक हुए ही हैं ,एक दूसरे की कमी पूरी करने के लिए ताकि जो एक से नहीं आता वो दूसरा कर दे और जो जिस काम में माहिर है ख़ुशी ख़ुशी वो करे जिससे हमें रिज़ल्ट अच्छा मिले जो हमारे लिए सबसे ज़्यादा अहम है।कभी ऐसा भी हो सकता है कि कोई बहोत काबिल योग्य इंसान अपनी योग्यता से कम या छोटा काम कर रहा हो, तो इसका मतलब ये नहीं कि वो नासमझ या बेवकूफ़ है बल्कि ये उसकी मजबूरी या ज़रूरत भी हो सकती है ,शायद इसलिए कभी नफ़े नुकसान को दर किनार करके इंसानियत के नाते भी किसी के लिए कुछ कर देना चाहिए बिना ये सोचे कि हमें बदले में क्या मिलेगा।

निस्वार्थ भाव के अच्छे फल

वैसे भी ये कुदरत का नियम है, हम कितना भी निस्वार्थ भाव से किसी के लिए कुछ करें लेकिन उसका फल हमें ज़रूर मिलता है ,आज नहीं तो कल मिलता है, फिर चाहे कोई पौधा लगा दें या अपनी संतान को पाल लें ,पौधा भी जब तक छोटा होता है तब तक सेवा मांगता है ,बड़ा होने में बहोत वक्त भी लेता है लेकिन उसे धीरे – धीरे बड़ा होते देखना ही हमें बहुत ख़ुशी देता है हम आनंदित होते है उसकी कोपलों ,कलियों और पंखुड़ियों को देखकर आंखों में एक चमक आ जाती है उसकी हरियाली देखकर ये सोचकर कि इसे हमने लगाया है, ऐसे ही बच्चा है जिसकी सेवा करते हुए भी उसकी एक मुस्कुराहट हमारी सारी थकान मिटा देती है हमें ऐसी ऊर्जा से भर देती है जो अनमोल है, तो सोचिएगा ज़रूर इस बारे में फिर मिलेंगे मंथन की अगली कड़ी में।

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