Irrfan Khan: A shining star in the sky of Hindi cinema| इरफ़ान खान: हिंदी सिनेमा के आकाश का एक चमकता सितारा

न्याजिया बेगम

Irrfan Khan: A shining star in the sky of Hindi cinema : वो आंखों से भी बोलते थे होंठों की जुबां से रस घोलते थे
अदाकारी में उनकी मुकम्मल शख्सियत का जलवा दिखता था
जब भी वो किसी किरदार में ढलते थे ,
वो अपने किरदारों में हमेशा जावेदा रहेंगे ये उनके चाहने वालों की जिंदगी का हिस्सा है,फिर चाहे वो टेलीविजन की दुनिया से उन्हें जोड़ता धारावाहिक चाणक्य का सेना पति भद्रसाल हो या चंद्रकांता का बद्रीनाथ हो या फिर द ग्रेट मराठा का नजीबुद्दौला (रोहिल्ला सरदार) क्यों न हो क्योंकि ये उनकी अभिनय करियर की शुरुआत थी पर पारखियों के लिए वो तभी ये साबित कर चुके थे कि वो एक मंझे हुए कलाकार हैं, और आगे चलकर कमियाबी उनके कदम चूमेगी
और फिर जल्द ही उन्होने द वारियर, मकबूल, हासिल, द नेमसेक, रोग जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया।
काबिलियत की इंतहां तो तब हो गई जब हासिल फिल्म के लिये उन्हे वर्ष २००४ का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी जीत लिया और
ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर, लाइफ ऑफ़ पाई और द अमेजिंग स्पाइडर मैन फिल्मों में अपने अभिनय की अमित छाप छोड़ी ।
2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया और
60 वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार दिया गया।
2017 में प्रदर्शित हिंदी मीडियम फिल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता चुना गया।
जिनमें एक राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार , एक एशियाई फ़िल्म पुरस्कार और छह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार शामिल हैं । 2011 में, उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
उनका ये कारवां इतना उम्दा था कि हर पड़ाव पर एक नायाब नगीने की मानिंद उनकी अदाकारी का तोहफा हमारे लिए पेश करते थे पर ये कारवां थम गया 2020 में प्रदर्शित अंग्रेज़ी मीडियम उनकी प्रदर्शित अंतिम फ़िल्म रही।
2021 में, उन्हें मरणोपरांत फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया ।
७ जनवरी १९६७,को पैदा हुए साहबजा़दे
इरफ़ान अली खान राजस्थान के रहने वाले थे ,उनके वालिद वालिदा , यासीन अली खान और सईदा बेगम खान टोंक जिले के खजुरिया गाँव से थे और टायर का कारोबार चलाते थे। उनका परिवार टोंक के नवाब परिवार से ताल्लुक रखता था, उन्होंने अपना बचपन टोंक तथा जयपुर में बिताया और पढ़ाई पूरी की वो क्रिकेट बहुत अच्छा खेलते थे जिसकी वजह से इरफान और उनके सबसे अच्छे दोस्त सतीश शर्मा को क्रिकेट में सीके नायडू प्रतियोगिता के लिए 23 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों हेतु प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कदम रखने के लिए चुना गया लेकिन बदकिस्मती से, उस वक्त उनके पास इतना भी पैसा नहीं था कि वो इस कॉम्पटीशन में पार्टिसिपेट करने जा सकें ,
फिर साल 1984 में उन्हें स्कॉलरशिप मिली जिससे वो अपने अंदर छुपी एक और प्रतिभा को विस्तार देने ,नई दिल्ली में एनएसडी यानी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अभिनय को सीखने समझने चल दिए ।
यहां प्रशिक्षण लेने के दौरान उनकी मुलाक़ात हुई थी
फिल्म लेखक और साथी एनएसडी स्नातक सुतापा सिकंदर से जिनसे 23 फरवरी 1995 को आपने शादी की।
आपके दो बेटे हैं: बाबिल और अयान। उनके बेटे बाबिल भी अभिनेता हैं, आप उन्हें 2022 की फिल्म कला में देख चुके हैं।
अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत आपने 1988
की फिल्म
सलाम बॉम्बे! में एक छोटी सी भूमिका के साथ की, जिसके बाद कई वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने कुछ फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के छात्र फ़िल्मों में अभिनय किया, जैसे रिकॉनसेंस , जिसे संदीप चट्टोपाध्याय ने निर्देशित किया था।
फिर ब्रिटिश फ़िल्म द वॉरियर में अभिनय करने के बाद, उन्हें हासिल और मकबूल में मुख्य भूमिकाओं के साथ सफलता मिली। उन्होंने द नेमसेक में अपनी भूमिकाओं के लिए आलोचनात्मक प्रशंसा प्राप्त की, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक पुरुष के लिए इंडिपेंडेंट स्पिरिट अवार्ड , लाइफ इन ए… मेट्रो , और पान सिंह तोमर के लिए नामांकित किया गया था । द लंचबॉक्स , पीकू, और तलवार में उनकी अभिनीत भूमिकाओं के लिए और अधिक सफलता मिली और उन्होंने हॉलीवुड फिल्मों द अमेजिंग स्पाइडर-मैन लाइफ ऑफ पाई (२०१२), जुरासिक वर्ल्ड (२०१५), और इन्फर्नो (२०१६) में सहायक भूमिकाएँ निभाईं। उनकी अन्य उल्लेखनीय भूमिकाएँ स्लमडॉग मिलियनेयर (२००८), न्यूयॉर्क (२००९), हैदर (२०१४), और गुंडे (२०१४), और टेलीविजन श्रृंखला इन ट्रीटमेंट (२०१०) में थीं। उनकी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म कॉमेडी-ड्रामा हिंदी मीडियम ( २०१७ ) के साथ आई , और उनकी अंतिम फिल्म उपस्थिति इसके सीक्वल अंग्रेजी मीडियम (२०२०) में थी

एक इंटरव्यू में सिकंदर ने उनके बारे में बताया था कि”वो हमेशा फोकस्ड रहते हैं। मुझे याद है कि वो घर आकर, सीधे बेडरूम जाकर किताबें पढ़ने लगते थे।” उन्होंने अपने नाम की अंग्रेजी वर्तनी “Irfan” में बीच में एक अतिरिक्त “R” (आर) डालकर “Irrfan” कर दिया है क्योंकि उनके मुताबिक उन्हें अपने नाम में एक अतिरिक्त र स्वर की ध्वनि पसंद है। उन्होंने खान को भी अपने नाम से हटा दिया है क्योंकि वो चाहते थे कि उनका काम उन्हें परिभाषित करे, न कि उनका वंश।
ऐसे थे हम सबके चहीते इरफान खान
वर्ष २०१८ में उन्हें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर जिसके बाद वे एक साल के लिए ब्रिटेन इलाज के लिए गए थे फिर एक साल की राहत के बाद वे पुनः कोलोन संक्रमण की शिकायत से मुम्बई में भर्ती होना पड़ा इस बीच भी उन्होंने अपनी आखिरी फ़िल्म अंग्रेज़ी मीडियम की शूटिंग पूरी की ,
तब तक वो हिन्दी सिनेमा की ३० से ज्यादा फिल्मों में अभिनय कर चुके थे ।
इरफान को द गार्जियन के पीटर ब्रैडशॉ ने “हिंदी और अंग्रेजी भाषा की फिल्मों में एक प्रतिष्ठित और करिश्माई स्टार के रूप में वर्णित किया था, जिनका करियर दक्षिण एशियाई और हॉलीवुड सिनेमा के बीच एक बहुत ही मूल्यवान पुल था”। उन्हें 93वें अकादमी पुरस्कार के ‘इन मेमोरियम’ खंड में सम्मानित किया गया ।

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