भारत शेयर बाजार में आईपीओ की संख्या लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है लेकिन इनमें से एक महत्वपूर्ण समाचार जो लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है वह यह है कि कंपनियां आईपीओ से जुटाए गए धन का इस्तेमाल कहां पर कर रही है कुछ ताजा डाटा के अनुसार या साफ पता चलता है कि मौजूदा दौड़ में आईपीओ प्रोसीड्स का हिस्सा है जहां Debt repayment और सीमित मात्रा में कैपिटल एक्सपेंडिचर में उपयोग हो रहा है। या बदलाव निवेश करने वाले लोगों के लिए एक नई उम्मीद लाता है और बहुत जोखिम भी।
कर्ज चुकाने पर अधिक फोकस
IPO से जुटाई गई कुल राशि का एक बड़ा हिस्सा कंपनियाँ अपने पुराने कर्ज को चुकाने में इस्तेमाल कर रही हैं। यह दिखाता है कि कई कंपनियाँ पहले से वित्तीय दबाव में ही थीं और IPO उनके लिए बैलेंस शीट को मजबूत करने का अवसर बना हुआ है।
Debt repayment के ज़रिए कंपनियाँ अपने ब्याज खर्च को कम कर सकती हैं, credit-rating सुधार सकती हैं और भविष्य में आसानी से एक सस्ता वित्त प्राप्त कर सकती हैं। हालांकि, इसका यह भी मतलब है कि IPO proceeds का कुछ हिस्सा growth-oriented projects में नहीं जा रहा है।
Capex में निवेश, कुछ सीमाओं के साथ
यानी नए प्रोजेक्ट्स, मशीनरी, उत्पादन क्षमता बढ़ाने या तकनीकी सुधारों पर निवेश, किसी भी कंपनी के भविष्य की दिशा को तय करते हैं। हालाँकि, रिपोर्ट्स बताती हैं कि IPO funds का केवल एक-चौथाई ही हिस्सा Capex के लिए इस्तेमाल हो रहा है। यह प्रतिशत तो कम है, लेकिन इसका असर long-term business expansion पर सीधा पड़ सकता है।

कुछ कंपनियाँ पहले debt और operational pressures को संभालकर आगे Capex बढ़ा सकती हैं, लेकिन फिलहाल यह ratio growth ambition की सीमित तस्वीर को दिखाता है।
OFS का बढ़ता प्रभाव
कई IPOs में बड़ा हिस्सा Offer for Sale (OFS) का ही होता है, जिसमें पुरानी हिस्सेदारी बेचकर promoters या शुरुआती निवेशक पैसा निकाल लेते हैं, ऐसे मामलों में IPO proceeds कंपनी के पास नहीं जाते, बल्कि investors के accounts में निकल जाते हैं।
इससे ये स्पष्ट होता है कि बाजार में IPO केवल new capital infusion का ही माध्यम नहीं है, बल्कि promoters के लिए exit route भी बन चुका है।
निवेशकों के लिए रणनीति
IPO में निवेश करने से पहले सिर्फ brand नाम या listing gains देखकर निर्णय लेना ही जोखिम भरा हो सकता है।
निवेश करने वाले लोगों को निवेश करने से पहले यह देखना चाहिए कि Debt repayment कितना है?, Capex allocation कितना मजबूत है?, OFS का अनुपात कितना है?, Fund utilisation पारदर्शी है या नहीं? अगर पैसा बड़े कब पैमाने पर केवल डेबिट रीपेमेंट में जा रहा है तो लॉन्ग टर्म ग्रंथ की संभावनाएं सीमित हो जाती है।
IPO proceeds का इस्तेमाल बदल तो रहा है। कंपनियाँ expansion से पहले अपने बकाया और वित्तीय दायित्वों को भी हल कर रही हैं।
Debt repayment आसानी से short-term stability लाता है, लेकिन Capex कम होने से लंबे समय तक ग्रोथ होने पर सवाल खड़े होते हैं।
निवेशक के लिए यही समझना जरूरी है, की IPO केवल valuation का खेल नहीं है बल्कि fund utilisation का भी खेल है।
